बिहार में आज 71 सीटों पर विधानसभा के पहले चरण का मतदान हो रहा है। इन सीटों पर उम्मीदवारों की कश्ती पार लगेगी या डूबेगी, यह जनता तय कर के ईवीएम में बंद कर देगी। इनमें से अधिकांश सीटें फिलहाल राजद के पास हैं या जेडीयू के पास। भाजपा के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है क्योंकि उसके केवल 13 विधायक हैं। अधिकांशतः भोजपुरी बोलने वाले या नक्सल-प्रभावित इन इलाकों में आरजेडी और तेजस्वी का ही समझिए, बहुत कुछ दांव पर लगा है।
मुंगेर में दुर्गापूजा विसर्जन को लेकर जिस तरह पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग की है, उसे नीतीश कुमार ने भले अपने विज्ञापन के जोर से मेनस्ट्रीम मीडिया में नहीं आने दिया है, लेकिन सोशल मीडिया पर मुंगेर की खूंरेज़ तस्वीरों को दिखाकर भाजपा को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। रही-सही कसर वहां की एसपी लिपि सिंह के होने ने पूरी कर दी है। यह लिपि सिंह उसी आरसीपी सिंह की बेटी हैं, जो पिछले 15 वर्षों से जेडी(यू) को चला रहे हैं। अंदरखाने तो ख़बर यह भी है कि इस सरकार में आरसीपी टैक्स नामक एक नया टैक्स भी लागू हुआ है।
बहुत अंदर की पूछने पर जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार दरअसल लिपि सिंह को अपनी बहू बनाना चाहते थे, इसलिए उनको इतना भाव दिया गया, लेकिन अब वह उनके गले की हड्डी बन गयी हैं। मुंगेर में पुलिसिया दमन के वीडियो हरेक स्मार्टफोन पर घूम रहे हैं और नीतीश-मुलायम की तुलना के साथ ही नीतीश कुमार को राक्षस और महिषासुर के नाम से नवाजा जा रहा है। मतदान से एक रात पहले ट्विटर पर #मुंगेर_नरसंहार और #जनरल_डायर_नीतीश_कुमार ट्रेंड कर रहा था।
परमानेंट डीसीएम (डिप्टी सीएम) सुशील मोदी को भाजपा ने भले ही कोरोना के नाम पर क्वारंटाइन कर रखा है, लेकिन वह रायता फैलाने में लगातार जुटे हुए हैं। उन्होंने मुंगेर के मसले पर लीपापोती शुरू कर दी है और चुनाव आयोग से कार्रवाई की लगे हाथों मांग भी कर दी है।
परमानेंट डीसीएम की इस भोली अदा पर खीझते हुए बिहार भाजपा के एक प्रवक्ता कहते हैं, ‘ये भोले बलम काहे भाजपा में रहकर जेडी(यू) का काम करते हैं, आज तक समझ में नहीं आया। जाकर सीधा जेडी(यू) ज्वाइन कर लें। हम लोगों को भी चैन मिले।’ बात आगे तक जाती है तो ऑफ द रिकॉर्ड कुछ नेता यह भी कहते हैं कि क्या परमानेंट डीसीएम को ‘आरसीपी टैक्स’ का कट नहीं जाता है, वे पिछले 15 वर्षों में क्या कुछ नहीं कर गुज़रे हैं।
बहरहाल, भाजपा के लिए टर्फ केवल मुंगेर का ही कठिन नहीं है, आज जिन 16 जिलों में चुनाव हो रहे हैं, वे आरजेडी का मजबूत दुर्ग हैं और 2015 में लालटेन और तीर ने मिलकर कमल को बर्बाद कर दिया था। भाजपा ने टिकट बंटवारे में भी काफी भूल की है औऱ उसके राजेंद्र सिंह, रामेश्वर चौरसिया, जैसे दिग्गज बाग़ी होकर चुनाव लड़ रहे हैं, तो जहानाबाद और उससे सटे इलाकों में भूमिहार खासे नाराज़ चल रहे हैं क्योंकि सीट बंटवारे में वहां भी जेडी(यू) की ही चली है, भाजपा ने अपने जातिगत समीकरणों का ध्यान नहीं रखा है।
इन सबके बावजूद जो दिल्ली में बैठे आर्मचेयर विश्लेषक और एक्टिविस्ट तेजस्वी की ताजपोशी तय मानकर लहालोट हो रहे हैं, उनको एकाध दिन बिहार का मिजाज देखना चाहिए। दरभंगा की कनिया भौजी के शब्दों में, ‘देखू बउआ, नीतीशवा त चोट्टा हइए हइ, लेकिन एक्कर मतलब की। भोट वाला दिन त कमल चाहे तीरे पर न बटन दबतै। ललुआ के राज बिसैर जैबे की, आ ऊ मुंहझौंसा अप्पन घर के भरला के अलावा हमरा सब लेल की कैलक। मोदी के ऐला से कमसे कम हम पक्का घर में त रहै छी, 12 हजार के 10 हजार ही भेंटल लेकिन पैखाना लेल अब भोरहिं उइठ क नदी दिस त नइ जाइ छी..!’
तेजस्वी की सभाओं में उमड़ती भीड़ को पैमाना मानने वाले बुद्धि-वरेण्यों को एक बार योगी आदित्यनाथ, तेजस्वी सूर्या और असदुद्दीन ओवैसी की सभाओं में उमड़ने वाली भीड़ को देखना चाहिए। अपने पिता लालू यादव की कॉपी करने में सीमा लांघ कर राजपूतों पर जिस अंदाज में और जैसी टिप्पणी तेजस्वी ने की है, वह भी लोगों के स्मार्टफोन पर है, राजपूतों को बाकायदा शपथ खिलायी जा रही है और यह किसी भी समीक्षक कलाकार को नहीं भूलना चाहिए।
वैसे, सासाराम में सभा कर के पीएम मोदी ने भाजपा को संभालने की कोशिश की है, लेकिन भाजपा के लिए राह कठिनतर होती जा रही है। इसीलिए मतदान के पहले ही दिन प्रधानमंत्री को खुद मैदान में उतरना पड़ा है और पटना, मुजफ्फरपुर व दरभंगा में उनकी जनसभाएं बैक टु बैक आयोजित होनी हैं।
नतीजे 10 नवंबर को आएंगे, लेकिन एक बात तो तय है- वोटर्स को बूथ तक जो पार्टी खींच ले गयी, वह जीत जाएगी। यह चुनौती भाजपा के लिए बड़ी है क्योंकि उसके अधिकांश वोटर्स अन्यमनस्क हो चुके हैं और वोटिंग के दिन चादर तानकर सोने का कार्यक्रम बना रहे हैं।
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