यौन हिंसा तथा राज्य के दमन के विरुद्ध महिलाएं (डब्लूएसएस) फादर स्टैन स्वामी की गिरफ्तारी पर अंचभित है। फादर स्टैन स्वामी एक बुज़ुर्ग पादरी हैं जो पिछले पांच दशकों से आदिवासी मुद्दों पर काम करते रहे हैं। उन्हें 8 अक्टूबर, 2020 की रात में बदनाम भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद षडयंत्र प्रकरण में गिरफ्तार किया गया। एक सच्चे कार्यकर्ता और प्रतिष्ठित विद्वान की इस गिरफ्तारी की डब्लूएसएस भर्त्सना करता है और बताना चाहता है कि इस दयालु व विनम्र व्यक्ति के खिलाफ लगाए सारे आरोप हास्यास्पद हैं।
हम बताना चाहते हैं कि 1 जनवरी, 2018 के दिन हुई भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच दरअसल देश के अग्रणी मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को सताने का एक ज़रिया बन गयी है। इस जांच के दौरान 15 अन्य वकीलों, कार्यकर्ताओं, लेखकों, कवियों, बुद्धिजीवियों को इसी तरह के बेतुके आरोपों में बंदी बनाया गया है। कुछ तो दो साल से भी अधिक अवधि के लिए कारागार में बंद रहे हैं।
फादर स्टैन स्वामी मूलत: तमिलनाड़ु के त्रिची से हैं। वे एक युवा पादरी के रूप में झारखंड आए थे ताकि आदिवासी लोगों की समस्याओं को समझ सकें। दो साल तक वे झारखंड के पूर्वी सिंहभूम ज़िले के एक आदिवासी गांव में रहे। इस दौरान उन्होंने आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक हालात, उनके समुदायों और मूल्यों, तथा शोषण की उस व्यवस्था पर शोध किया जो उन्हें जकड़े हुए है। बैंगलुरु के इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में 15 साल सेवा देने, जिस दौरान 10 साल वे इंस्टीट्यूट के निदेशक भी रहे, के बाद वे एक बार फिर झारखंड लौटे। झारखंड में वे झारखंड ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर ह्यूमन राइट्स (जोहार) से जुड़ गए तथा झारखंडी ऑर्गेनाइज़ेशन अगेन्स्ट युरेनियम रेडिएशन (जोअर) के साथ भी काम किया। जोअर युरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की वजह से हो रहे पर्यावरण विनाश तथा निर्धनीकरण के विरुद्ध काम करता है। वे रांची में बगइचा केंद्र की स्थापना में भी शामिल रहे – यह आदिवासी युवाओं के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र है तथा साथ ही हाशियाकृत आबादियों की कार्य योजनाओं पर अनुसंधान व सहयोग का केंद्र भी है।
झारखंड में फादर स्टैन के काम के दो प्रमुख क्षेत्र रहे और दोनों ने ही उन्हें केंद्र सरकार द्वारा रक्षित शक्तिशाली हितों के खिलाफ खड़ा कर दिया। उनके काम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उस कॉर्पोरेट-राज्य गठबंधन को चुनौती देना रहा है जो आदिवासियों के पारंपरिक स्रोतों की लूट-खसोट करता है। झारखंड एक खनिज-समृद्ध प्रांत है। देश के 40 प्रतिशत खनिज संसाधन यहीं हैं फिर भी इसकी 39 प्रतिशत आबादी, ज़्यादातर आदिवासी गरीबी रेखा से नीचे जीती है। प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों के शोषण की दौड़ में अक्सर राज्य की मशीनरी आदिवासियों के खिलाफ खड़ी होती है। आदिवासियों को विस्थापन तथा और निर्धनीकरण का डर सताता है।
इस संदर्भ में फादर स्टैन स्वामी ने उन कानूनों की पैरवी की जो भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची के धरातल पर टिके हैं। इनके अंतर्गत आदिवासी क्षेत्रों को कुछ स्वायत्तता तथा स्व-शासन का आश्वासन दिया गया है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि झारखंड में पेसा (पंचायती राज – अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार अधिनियम, 1996) सम्बंधी नियम ही नहीं हैं, जिसकी वजह से इस अधिनियम का क्रियान्वयन असंभव हो गया है। उन्होंने विभिन्न सरकारों पर संजीदगी के अभाव का आरोप लगाया क्योंकि एक के बाद एक सरकार ने वन अधिकार कानून के बुनियादी मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया। यह कानून हज़ारों आदिवासियों और अन्य वनवासियों को पट्टे की सुरक्षा दे सकता था। फादर स्टैन स्वामी ने कई छोटे-बड़े संघर्षों को पूरा समर्थन दिया। वे झारखंड में पाथलगड़ी आंदोलन के मुखर समर्थक थे – यह आदिवासी समुदाय के आत्मसम्मान का आंदोलन था। इसने भारत के संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के कुछ फैसलों से प्रेरणा लेकर अपने गांवों में आदिवासी नियंत्रण की मांग रखी थी लेकिन राज्य सरकार ने इस आंदोलन को गैर-कानूनी घोषित कर दिया और फादर स्टैन तथा अन्य पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए। चुनाव उपरांत नयी सरकार के गठन के बाद ही ये आरोप वापिस लिए गए, जिससे पता चलता है कि ये आरोप राजनीति से प्रेरित थे।
हाल के वर्षों में फादर स्टैन का दूसरा संजीदा सरोकार उन आदिवासी युवाओं से रहा है जो झारखंड के जेलों में इस मनगढ़ंत आरोप में बंदी हैं कि वे नक्सल गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। अपनी पुस्तक ‘‘जेल में बंद कैदियों का सच’’ के लिए किए गए उनके अनुसंधान से पता चला कि जिन 3000 बंदियों से सीधे या परिवार के ज़रिए साक्षात्कार किए गए थे, उनमें से 98 प्रतिशत का नक्सल गतिविधियों से कुछ लेना-देना नहीं था लेकिन उन्हें रिहाई के इन्तज़ार में बरसों कारागर में बिताने पड़े थे। इस अनुसंधान के आधार पर उन्होंने झारखंड उच्च न्यायालय में जनहित याचिका के माध्यम से ऐसे युवाओं को अंतरिम ज़मानत, प्रकरणों के त्वरित निपटारे की अपील की तथा एक जांच आयोग के गठन का आव्हान किया जो झारखंड के समस्त 24 ज़िलों में इस मुद्दे पर समग्र तथ्यान्वेषण करे। फादर स्टैन स्वामी ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के समक्ष भी ऐसे मामलों की शिकायत दर्ज की जहां कई साधारण गांववासियों को न्यायेतर ढंग से मार दिया गया अथवा दबाव डालकर उनसे ‘आत्मसमर्पण’ करवाया गया।
कारागार में बंदी आदिवासी युवाओं में उनकी रुचि व एकाग्रता का ही परिणाम था कि उन्होंने मध्य भारत के विभिन्न राज्यों में झूठे आरोपों में बंद आदिवासी कैदियों के साथ काम कर रहे वकीलों और कार्यकर्ताओं के साथ 2015 में एक बैठक का आयोजन किया था। इस बैठक का आयोजन अधिवक्ता सुधा भारद्वाज के साथ संयुक्त रूप से किया गया था और इसी में पर्सीक्यूटेड प्रिज़नर्स सॉलिडेरिटी कमिटी (पीपीएससी) का जन्म हुआ था। यह समिति पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा ओड़ीशा के जेलों में पड़े आदिवासियों और दलितों के मुद्दों पर काम करती है।
जिस तरह से एनआइए द्वारा 9 अक्टूबर को भीमा कोरेगांव मामले में चार्जशीट दाखिल करने के ठीक एक दिन पहले फादर स्टैन को गिरफ्तार करके मुंबई पहुंचाया गया, उससे स्पष्ट है कि अधिकारियों को बहुत हड़बड़ी थी कि भीमा कोरेगांव सम्बंधी एक ही एफआइआर में सारे लोगों के नाम जोड़ दिए जाएं। अन्यथा उन्हें तब भी गिरफ्तार किया जा सकता था जब 2018 और 2019 में उनके परिसर की तलाशी ली गयी थी या अभी दो महीने पहले 15 घंटे की पूछताछ के बाद भी पकड़ा जा सकता था। माओवादी आंदोलन में शामिल होने के आरोप में उनकी गिरफ्तारी खास तौर से विडंबनापूर्ण है क्योंकि फादर स्टैन तो इस तरह सताए गए कई अन्य लोगों के लिए न्याय की मांग करते रहे हैं। डब्लूएसएस का मत है कि फादर स्टैन की गिरफ्तारी की वास्तविक वजह उनके द्वारा उस कॉर्पोरेट-हितैषी तथा जन-विरोधी राजनीति की मुखालफत है जिसे भाजपा-नीत सरकार ने गले लगाया है।
हम उनकी पहले की गई गिरफ्तारियों की तरह इस गिरफ्तारी की भी निंदा करते हैं। जिस तरह से केंद्र सरकार एनआईए तथा अन्य जांच एंजोसियों का इस्तेमाल अपने राजनैतिक अजेंडा को लागू करने के लिए कर रही है, हम उसकी भी कड़ी भर्त्सना करते हैं। इस मामले में हम बंदियों को अपना पूरा समर्थन देते हैं और कामना करते हैं कि वे धैर्य और ताकत के साथ इस दौर का सामना करेंगे। उनकी आज़ादी के लिए हम अपने प्रयास तो पूरी ताकत से करेंगे ही।
WSS के बारे में:
नवम्बर 2009 में गठित ‘विमन अगेन्स्ट सेक्शूअल वायलेंस एंड स्टेट रिपरेशन’ (WSS) एक गैर-अनुदान प्राप्त ज़मीनी प्रयास है। इस अभियान का मकसद हमारी देह व समाज पर की जा रही हिंसा को खत्म करना है। हमारा यह अभियान देशव्यापी है और इसमें शामिल हम महिलाएँ अनेकों नारी, छात्र, जन व युवा एवं नागरिक अधिकार संगठनों तथा व्यक्तिगत स्तर पर हिंसा व दमन के खिलाफ सक्रिय हैं। हम हर प्रकार के राजकीय दमन और औरतों व लड़कियों के विरुद्ध की जाने वाली हिंसा के खिलाफ हैं।
संपर्क: againstsexualviolence@gmail.com