पंचतत्व: गंगाजल को गया तक ले जाना बिहार सरकार का विकट दृष्टिदोष है


एक तरफ गंगा खुद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही है, वहीं बिहार सरकार ने गंगा के 50 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी को गया भेजने के लिए भारी-भरकम योजना बना रखी है. गया में भूजल स्तर सुधारने के दूसरे मुफीद तरीके अपनाने के बजाय गंगा का पानी गया तक लाने के पीछे मंशा आखिर क्या है?

हमें सरकारों की मंशाओं पर सवाल उठाता रहना चाहिए क्योंकि सत्ताधारी पार्टियों की दृष्टि अगले चुनाव से ज्यादा दूर तक नहीं जाती. विकास कार्यों को लेकर सरकार का ब्लर विज़न दूर या निकट दृष्टिदोष नहीं, बल्कि विकट दृष्टिदोष से ग्रस्त होता है. वजह? हमारे अधिकतर नेता कुर्सी पर बैठने और बैठे रहने की जुगाड़ में ही रहते हैं और जिस काम के लिए कुर्सी पर बैठते हैं उसका सारा भार किसी हांजी सर कहने वाले नौकरशाह के मत्थे डाल देते हैं.

इस विकट दृष्टिदोष की ताजा मिसाल है बिहार सरकार की गंगा वॉटर लिफ्ट योजना. दस महीने पहले, 18 दिसंबर की शाम बिहार सरकार की कैबिनेट की मंजूरी के बाद सूबे के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने फूले न समाते हुए ट्वीट कियाः “जल संसाधन मंत्रालय के प्रस्ताव को मिली कैबिनेट मंजूरी से आह्लादित हूं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जल जीवन हरियाली अभियान के तहत यह बहुमुखी और अनूठी योजना गंगा वॉटर लिफ्ट स्कीम गया, बोधगया और राजगीर जैसे शहरों में पेयजल मुहैया कराएगी.”

उनका अगला ट्वीट अधिक सूचनाप्रद था जिसमें बिहार के जल संसाधन मंत्री ने बताया, “गंगाजल लिफ्ट स्कीम के पहले चरण का बजट 2,836 करोड़ रुपए है और इससे गया को 43 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) और राजगीर को 7 एमसीएम पानी मुहैया कराया जाएगा. यह जल दोनों ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के दोनों शहरों की जरूरतों के लिहाज से पर्याप्त होगा.”

झा का तीसरा ट्वीट यह बताने के लिए काफी था कि गंगा का पानी ही फल्गु नदी में श्रद्धालुओं के नहाने के लिए छोड़ा जाएगा क्योंकि इस भारी-भरकम बजट वाली योजना का कुछ फायदा तो आम लोगों के लिए दिखना चाहिए था. झा के ट्वीट के मुताबिक, ‘यह योजना बिहार सरकार की उस कोशिश का हिस्सा है जिसके तहत सरकार फल्गु नदी में साफ पानी उपलब्ध कराना चाहती है.’

सवाल है कि आखिर इस योजना को लेकर मेरे मन में शक क्यों है? शक इसलिए है कि फल्गु नदी को आखिर गंगा का पानी चाहिए ही क्यों?

गया की फल्गु नदी

गया जिले में बारिश कम नहीं होती. मौसम विभाग की वेबसाइट पर जाएं तो आंकड़े बताते हैं कि गया के पूरे इलाके में औसतन बरसात 110 सेमी के आसपास होती है, लेकिन सचाई यह है कि गया नगर निगम के तहत आने वाले 70 फीसद घरों में नल का पानी नहीं आता. पूरे जिले में भूजल तेजी से नीचे गिर रहा है.

यह स्थिति तब है जब गया में फल्गु नदी के साथ ही साथ पड़ोस में दो और नदियां, जमुनी और मोरहर मौजूद हैं. ढाई साल पहले गया के जिलाधिकारी ने इन नदियों का पानी शहर तक पहुंचाने की योजना बनाई थी पर इस योजना का नामलेवा कोई नहीं बचा. आखिर, सरकार पानी के नाम पर वाकई कुछ बड़ा करना चाहती थी. बिहार सरकार भी कभी फल्गु को गंगा से जोड़ने तो कभी फल्गु को सोन नदी से जोड़ने को लेकर दुविधा में रही.

बहरहाल, गंगा का पानी 170 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन के जरिये मोकामा से गया तक लाने का काम किसी को मछली पकड़ा देने जैसा है, जबकि मछली पकड़ना सिखाना बेहतर विकल्प होता. बिहार सरकार ने गया के पानी की समस्या को निबटाने के लिए गया के गिरते भूजल को सुधारने की योजना क्यों नहीं बनाई? खासकर तब, जब गया जैसे इलाके में तालाब और पोखरे बनाकर और वर्षा जल संचयन के जरिये भूमिगत जल का स्तर ठीक किया जा सकता था?

वैज्ञानिक मानते हैं कि पानी को आयात करना समस्या का महज फौरी निवारण ही है. वॉटरशेड मैनेजमेंट यानी स्थानीय बारिश को रोककर रखना, उससे भूमिगत जल के स्तर को दुरुस्त करना और बारिश के पानी को रोककर शहर में उसकी आपूर्ति करना न सिर्फ दीर्घकालिक समाधान होता बल्कि पाइपलाइन बिछाने से अधिक सस्ता और त्वरित भी होता. सरकार को गया, राजगीर, नवादा जैसे इलाकों में अधिकाधिक तालाब खुदवाने चाहिए थे. इससे मछली उत्पादन भी बढ़ता, खेतों के सिंचाई के लिए भी पानी मिलता और कुओं में भी पानी आ जाता. साथ भी यह ध्यान भी रखना चाहिए था कि गया के इलाके में अब भी अच्छी खासी खेती होती है, जो बिना पानी के मुमकिन नहीं है. गया का इलाका अभी बुंदेलखंड जैसी स्थिति में नहीं पहुंचा है. हां, नदियों को जोड़ना फैशन और चलन में आ गया है तो बात और है.

दूसरी तरफ, खुद गंगा अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है. अगर गर्मियों में उससे 50 एमसीएम पानी निकाल लिया जाएगा तो खुद इसके परितंत्र पर क्या असर पड़ेगा, इसका क्या कोई अध्ययन बिहार सरकार ने कराया है?

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असल में, सरकारों को लगता है कि नदी में पानी बहकर और बचकर निकल जाए तो वह पानी की बरबादी है जबकि ऐसा है नहीं और मोकामा से अगर 50 एमसीएम पानी निकाल लिया जाएगा तो उसके आगे बड़ी मात्रा में नदी के बेड में गाद भी जमा होगी. क्या राज्य सरकार उसके लिए तैयार है?

गया के आसपास जिस तरह की धरती है वहां वॉटरशेड प्रबंधन बहुत कारगर भी साबित होता. पिछली गर्मियों में मिथिला क्षेत्र के दरभंगा और मधुबनी जैसे जिलों में भी अमूमन सालों भर पानी से भरे रहने वाले पोखरे सूख गए थे, वैसे में उनको जिलाने की कोई योजना सरकार की निगाह में नहीं है. पर, गंगा का पानी गया भेजने की योजना को जिस तरह फटाफट लागू करने की तैयारी है और जिस तरह से उसके लिए रकम भी जारी की गई है, उससे तो सरकार के विकास वाले विज़न पर सवालिया निशान और भी गहरा ही हो गया है.

हां, अगर जद-यू सरकार करीब तीन हजार करोड़ रूपए की लागत से अपना वोटबैंक मजबूत करना चाहती है तो बात अलग है, वरना दक्षिण अफ्रीका की ऑरेंज और बिहार की फल्गु नदियों के बारे में भूवैज्ञानिक यही कहते रहे हैं कि इनकी जलधारा गुप्त रूप से जमीन के नीचे बहती है.

शायद, यह बात बिहार सरकार की पाइपलाइन वाली इस योजना के पीछे की मंशा के लिए भी सही है.



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