राग दरबारी: नरसिंह राव में पटेल का अक्स तलाशती भाजपा


कम से कम पिछले छह वर्षों से संघ-भाजपा से इतर जिस व्यक्ति के लिए भारतीय जनता पार्टी का अपार प्रेम टपक रहा है उसका नाम पीवी नरसिंह राव है. स्वतंत्रता के बाद जनसंघ और भाजपा का यही प्रेम सरदार बल्लभ भाई पटेल के लिए था लेकिन हाल-फिलहाल जिस गैर-संघी व्यक्ति के लिए सबसे गहरा प्यार बीजेपी दिखा रही है वह देश के नौवें प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव हैं.

आखिर क्या कारण है कि जिसे कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री बनाया, उसे आज के दिन सबसे ज्यादा प्यार कांग्रेस से नहीं बल्कि बीजेपी से मिल रहा है? बीजेपी के बारे में जो बात समान्यतया कही जाती है, वह यह कि बीजेपी इकलौती ऐसी पार्टी है जिसके पास एक भी वैसा इतिहास पुरूष नहीं है जिसकी बदौलत जनता में अपनी पुरानी विरासत का दावा वह पेश कर सके. वर्तमान में जो राजनीतिक स्थिति है, उसके हिसाब से तो बीजेपी को हालांकि इसकी बहुत जरूरत अब रह नहीं गयी है फिर भी पता नहीं क्यों बीजेपी को पुराने कांग्रेसी या फिर शुद्ध कांग्रेसी की तरफ लालायित होकर देखना पड़ रहा है?

हम इस बात को भली-भांति जानते हैं कि कांग्रेस भले ही उस समय इकलौती पार्टी थी लेकिन हिन्दुत्व के इर्द-गिर्द घूम रहे बहुत से नेता उसी नाव में सवार थे. उदाहरण के लिए, 1924-25 में देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद हिन्दू महासभा ले न सिर्फ बड़े नेता थे बल्कि बिहार में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष भी थे. संघ या वर्तमान भाजपा की असली परेशानी यही है. जब तक सिर्फ संघ था तब तक तो यह आसानी से कहा जा सकता था कि चूंकि आरएसएस का कोई राजनीतिक मंच नहीं था इसलिए संघ समर्थित सारे नेता कांग्रेस पार्टी में थे. आजादी के बाद जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी राजनीतिक पार्टी लॉन्च कर दी तो उनके पास कोई बहाना नहीं रह गया कि फलाना नेता कांग्रेस के साथ हैं!

आरएसएस की स्थापना के 25 साल बाद जनसंघ की स्थापना हुई और 1951 में जब वह पार्टी बनी तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अलावा उस समय भारतीय राजनीति की मुख्यधारा का कोई बड़ा नाम नहीं था जो इसमें शामिल हुआ हो. हां, उसी दौरान बलराज मधोक, प्रेम लाल डोगरा, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग ही पार्टी में शामिल हो पाये थे. उस समय के नामों में प्रेमलाल डोगरा व दीनदयाल उपाध्याय के अलावा शायद ही किसी की वह हैसियत थी जो जनता में अपने नाम से असर कर पाये!

और यह सफलता उन्हें सिर्फ दो कांग्रेसियों में दिखती है, जिनका निजी वजूद भी रहा है. एक सरदार बल्लभ भाई पटेल और वर्षों बाद देश के नौवें प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव. हालांकि भाजपा व संघ जिस रूप में बल्लभ भाई पटेल की डुगडुगी बजाते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि आरएसएस पर सबसे पहले प्रतिबंध सरदार पटेल ने ही लगाया था. यह अलग बात है कि उस प्रतिबंध को नेहरू ने खत्म किया था जिन्हें आज भी आरएसएस-बीजेपी अपनी विचारधारा का सबसे बड़ा शत्रु मानती है.

बहरहाल, सवाल यही है कि बीजेपी को पीवी नरसिंह राव से इतना प्यार क्यों है, जबकि उन्होंने कभी अपने को संघ का समर्थक नहीं कहा? इसका कारण शायद यह है कि नरसिंह राव ही वह शख्स हैं जिन्होंने सांप्रदायिक हिंसा को संस्थागत रूप दिया था. ऐसा नहीं है कि आजादी के बाद देश में सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जिस रूप में राजधानी दिल्ली में सिखों का नरसंहार हुआ था, वह उनकी मिलीभगत के बगैर संभव नहीं था, भले ही सारे लोग उस पूरी घटना का सारा दोष तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर डाल दें! देश की राजधानी में तीन दिनों तक चले इस कत्लेआम को बिना गृह मंत्री की सहमति के अंजाम नहीं दिया जा सकता था. यह वही नरसंहार था जिसे हिन्दुओं द्वारा अंजाम दिया गया था और उसके बाद तो देश में सांप्रदायिक नरसंहार का दौर ही शुरू हो गया क्योंकि दंगाइयों ने मान लिया कि अब इस देश में सांप्रदायिक दंगा करने से किसी के ऊपर काररवाई नहीं होती है.

जब 1992 में भाजपाइयों ने बाबरी मस्जिद तोड़ी थी तब यही नरसिंह राव देश के प्रधानमंत्री थे. अगर आज के नरेन्द्र मोदी को छोड़ दीजिए तो कोई यह कह सकता है कि कोई भी प्रधानमंत्री इस तरह का अपराध होने की इजाज़त देता, जो राव ने होने दिया था? उस समय आइबी ने बार-बार प्रधानमंत्री को आगाह किया था कि अगर उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार रहेगी तो बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया जाएगा लेकिन राव ने बाबरी मस्जिद को तोड़े जाने पर सहमति दे दी. राव ने आइबी की रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके कहा है कि वह मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचने देगी.  शायद राव बीजेपी के लिए इसलिए भी अराध्य हैं.

जिस दिन बाबरी मस्जिद तोड़ी गयी उसी दिन संसद के पटल पर राव ने प्रधानमंत्री की हैसियत से कहा था कि तोड़ी गयी मस्जिद की जगह पर सरकार फिर से मस्जिद का निर्माण कराएगी लेकिन दो साल से अधिक प्रधानमंत्री और दस साल से अधिक समय तक जिंदा रहने के बाद कभी भी उस व्यक्ति ने मस्जिद निर्माण का ज़िक्र तक नहीं किया.

कांग्रेस के भीतर एक खास खेमा ऐसा है जो सॉफ्ट हिन्दुत्व लाइन के खिलाफ था. यही नेहरू की विरासत थी जिसे इंदिरा गांधी ने बाद में आकर डाइल्यूट किया था. पीवी नरसिंह राव कांग्रेस के अंतिम अध्यक्ष थे जिनकी लाइन सॉफ्ट हिन्दुत्व वाली थी. यही कारण था कि बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के कुछ महीने बाद पार्टी प्रवक्ता वीएन गाडगिल ने पार्टी की प्रेस कांफ्रेंस में इस बात की ताकीद की थी कि भाजपा को रोकने के लिए अब कांग्रेस पार्टी सॉफ्ट हिन्दुत्व की लाइन लेगी. याद कीजिए कि उस समय पार्टी अध्यक्ष राव थे, प्रधानमंत्री राव थे- फिर किसके कहने पर हिन्दुत्व की लाइन लेने की बात गाडगिल कर रहे थे? यही कारण है कि पटेल के बाद राव बीजेपी के आराध्य हैं.

भारतीय जनता पार्टी के साथ संकट यह है कि जब उसने पार्टी गठित कर ली और एक भी बड़े नाम को अपनी पार्टी में शामिल करने में असफल रही तो उसके लिए जरूरी यही है कि कांग्रेस के भीतर के कुछ वैसे नाम खोजकर अपने साथ चिपका लिए जाएं जिनकी राजनीति कांग्रेस में रहते हुए भी दक्षिणपंथी हिंदुत्व की तरफ झुकी हुई हो!



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