गाज़ियाबाद से आजमगढ़ लौटे दलित युवक अंगद की पिछले 6 जून को हुई मौत प्रवासी श्रमिकों की त्रासदी का एक नया अध्याय खोल रही है। ये कहानी आने वाले दिनों में भारत के गावों की दर्दनाक तस्वीर बयान करने के लिए काफी है।
दिल्ली में काम करने वाले इस व्यक्ति की अपने गाँव धड़नी ताजनपुर में पेड़ से लटकी लाश को बरामद हुए एक हफ्ता हो रहा है लेकिन अब तक पुलिस इसे हत्या का केस मानने को तैयार नहीं है। परिजन लगातार गुहार लगा रहे हैं कि अंगद की हत्या की गई है लेकिन आजमगढ़ के अखबारों ने भी इसे संदिग्ध मौत बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। इस मामले में सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने मृतक के परिवार से मिलकर जो रिपोर्ट जारी की है, वह न सिर्फ पुलिस की भूमिका को संदिग्ध करार देती है बल्कि घर लौटे प्रवासी श्रमिकों के भविष्य की स्याह तस्वीर भी खींचती है।
अंगद राम (25) दिल्ली में सरकारी अस्पताल गुरु तेग बहादुर की कैंटीन में नौकरी करते थे। पहले वे दिल्ली के ताहिरपुर गांव में रहते थे पर कमरे का किराया काफी ज्यादा था तो वे गाजियाबाद के भोपुरा में रहने लगे। उनकी पत्नी रवीना गर्भवती थीं और लॉकडाउन में काम भी बंद हो गया था। इसी बीच उनकी पत्नी रवीना को प्रसव हुआ लेकिन बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। न खाने के कोई व्यवस्था थी, न ही चिकित्सा की। जांच में ही सारे पैसे खत्म हो चुके थे। इसके बाद रवीना ने अपनी मां के यहां से पैसे मंगाए और पट्टी के साथ ट्रेन से आजमगढ़ आईं।
रवीना पति की आत्महत्या की पूरी कहानी को न सिर्फ नकारती हैं बल्कि कहती हैं कि उनकी हत्या हुई है। वे बताती हैं कि अंगद राजेसुल्तानपुर अपने मौसी के घर गए हुए थे और 5 जून की शाम 6 बजे के करीब लौटकर आए। लौटने के बाद उन्होंने चाय तक नहीं पी और कहा कि प्रधान जी बुला रहे हैं, मैं मिलकर आता हूं।
रात आठ बजे के करीब उनकी माँ विमलौता अंगद का पता करने प्रधान के घर गईं तो प्रधान घर पर नहीं थे। अंधेरा होने के बाद भी जब अंगद नहीं लौटकर आए तो घरवाले चिंतित होकर उन्हें ढूंढने निकले। अगले दिन 6 जून को घर के लोग खेत में काम कर रहे थे कि सुबह के तकरीबन नौ बजे गांव के एक लड़के ने आकार सूचना दी कि अंगद की लाश नीबू के पेड़ पर लटक रही है। पूरा परिवार दौड़ते हुए वहां पहुंचा तो रास्ते में पहले से मौजूद प्रधान ने उन्हें घटनास्थल तक जाने नहीं दिया।
विमलौता के मुताबिक पुलिस से उन्होंने पूछा कि उन्हें लाश क्यों नहीं देखने दी जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि उनका बड़ा बेटा राजेश आजमगढ़ शहर में काम करता है, उसको तो आ जाने दीजिए। पुलिस ने एक नहीं सुनी और लाश को लेकर आनन-फानन में आजमगढ़ चली गई।
मां बताती हैं कि पड़ोसी से जमीन विवाद के चलते कई बार प्रधान ने उनके बेटों को जान से मारने की धमकी दी थी। वे कहती हैं, “मेरे बेटे के जहर खाने की झूठी बात प्रधान ने ही फैलाई।“ वे पूछती हैं कि आखिर प्रधान ने उनको यह सूचना क्यों नहीं दी जबकि वे रात में उनके घर गई थीं।
“प्रधान कह रहे हैं कि बेटे ने सुबह के आठ बजे फांसी लगाई, यह उन्हें कैसे मालूम है। क्या वो घटनास्थल पर मौजूद थे? अगर उन्हें मालूम था तो बचाया क्यों नहीं? हमको उसकी मौत की खबर नौ बजे के करीब मिली जबकि घटनास्थल से उनके घर की दूरी पांच मिनट की भी नहीं है।“
घटना के बारे में स्थानीय मीडिया में एक खबर आई कि एक माह पूर्व अंगद ने विषाक्त पदार्थ का सेवन कर आत्महत्या का प्रयास किया था। पत्नी रवीना ने इस बात को झूठा करार देते हुए बताया कि वे लोग 19 मई को गाजियाबाद से श्रमिक ट्रेन द्वारा चले और 20 मई को आजमगढ़ के सरायमीर रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। उसके बाद बस द्वारा सठियांव क्वॉरन्टीन सेंटर में रात गुजारी और अगले दिन घर आए, फिर 13 दिन तक घर के सामने की मड़ई में रहे। अचानक हुई बारिश के बाद उन्हें घर के अंदर दाखिल होना पड़ा।
वे कहती हैं, “जो मीडिया में आ रहा है कि एक महीने पहले वह जहर खाए थे, यह कैसे हो सकता है क्योंकि उस वक्त तो हम दिल्ली में ही थे।“ उनके और पति के बीच किसी भी तरह की नाराजगी या घर में किसी कलह से भी वे इनकार करती हैं।
रिहाई मंच ने अंगद राम की पेड़़ पर लटकी लाश की फोटो को लेकर बहुत से सवाल उठाए हैं। मंच का कहना है कि परिस्थितजन्य साक्ष्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता। पहली नजर में ही लग जाता है कि अंगद को मारकर पेड़ पर टांग दिया गया क्योंकि फोटो में साफ देखा जा सकता है कि अंगद के पैरों में जो चप्पल थी वो सामान्य स्थिति में पैरों में ही मौजूद थी, जो नहीं हो सकता। कोई व्यक्ति अगर फांसी लगाएगा तो तड़पेगा और छटपटाएगा। ऐसे में चप्पल उसके पैर में नहीं टिक सकती।
इसके अलावा पेड़ पर चढ़ने के गीली मिट्टी के जो निशान हैं वो पैरों के बताए जा रहे हैं। यह कैसे हो सकता है जबकि उसके पैरों में तो चप्पल मौजूद थी। क्या ऐसा हुआ होगा कि वो चप्पल निकालकर पेड़ पर चढ़ा होगा और फिर फांसी लगाते वक्त चप्पल पहना होगा?
जिस नीबू के पेड़ पर उसको टंगा हुआ बताया जा रहा है, उसमें उसका पैर वहां मौजूद पुलिस की कमर की ऊंचाई के बराबर दिख रहा है जो जमीन से लगभग तीन फुट के करीब है। नीचे ऐसे कोई निशान नहीं हैं जिससे यह कहा जाए कि उसने किसी सहारे पर खड़े होकर फांसी लगाई होगी।
वैसे भी नीबू का वह पेड़ झंखाड़ से घिरा है और उसकी डालें पतली-पतली और काफी सघन हैं। ऐसे में उस पर चढ़ना और फिर उस पर से फांसी लगाना संभव प्रतीत नहीं होता। मृतक की शारीरिक स्थिति भी परिजनों की आशंका को पुष्ट करती है। परिजनों ने फंदे में लटकी उसकी गर्दन की स्थिति और हाथों की स्थिति पर भी सवाल उठाया है।
अंगद की मां बताती हैं कि उनके बेटे-बहू दिल्ली से आए तो वे खुश थे। वे कहती हैं, “खुश हों भी क्यों न? इस महामारी में हर आदमी अपने परिवार में रहना चाहता है।“ मीडिया में आई बातों को परिजनों ने साफ तौर से प्रधान की मनगढ़ंत कहानी बताया है।
रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने अंगद की मौत के कारणों की उच्चस्तरीय जांच की मांग उठाई है। उनके मुताबिक यह मानवाधिकार का गंभीर मसला है क्योंकि कोरोना महामारी के दौर में प्रवासी मजदूर बहुत मुश्किल से अपने घरों को पहुंचे हैं और वहां पर अगर उनकी हत्या कर के उसे आत्महत्या बताया जा रहा है, तो ऐसे में यह आने वाले दिनों में एक गंभीर संकट खड़ा कर देगा।
इस मामले में न परिजनों से किसी प्रकार का पुलिस ने बयान लिया और न ही उनके आरोपों के आधार पर शिकायत दर्ज की है। इसी कारण से मंच ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय, मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय इलाहाबाद, राज्यपाल उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग, राज्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, गृह मंत्रालय, उत्तर प्रदेश, राज्य मानवाधिकार आयोग, उत्तर प्रदेश, आयुक्त आजमगढ़ मंडल, उप पुलिस महानिरीक्षिक आजमगढ़, जिलाधिकारी आजमगढ़, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आजमगढ़, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, नई दिल्ली, श्रम एवं सेवायोजन मंत्रालय, उत्तर प्रदेश को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की है।
अंगद के परिवार से मिलने गए प्रतिनिधिमंडल में बांकेलाल, विनोद यादव, अवधेश यादव और धर्मेन्द्र शामिल थे।
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