“काशी में शंकराचार्य परम्परा और सनातन धर्म को खण्डित करने का षड्यन्त्र”!


संवत् 2077 ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तदनुसार दिनांक 2 जून 2020

काशी को ज्ञान एवं मुक्ति की नगरी के रूप में स्थापित करने में अनेक महापुरुषों सहित भगवत्पाद आदि शंकराचार्य से लेकर अब तक के अनेक शंकराचार्यों का योगदान रहा है पर अब जिस तरह से निरन्तर आदि शंकराचार्य जी के जीवन और उनकी परम्पराओं से जुड़ी स्मृतियों को यहाँ से मिटाया जा रहा है उसे देखकर यही लगता है कि प्रशासन द्वारा शंकराचार्य परम्परा और सनातन धर्म को समाप्त करने का षड्यन्त्र किया जा रहा है। इससे हम शंकराचार्य परम्परा और सनातन धर्म के अनुयायियों मन अत्यन्त आहत है।

स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती

उक्त उद्धार स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ने काशी के सरस्वती फाटक पर स्थित आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देवी सरस्वती के मन्दिर को तोड़ने और उन की प्रतिमा को प्रशासन द्वारा कल गंगा दशहरा के दिन हटा दिए जाने पर व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि विश्वनाथ धाम के सुन्दरीकरण के नाम पर चलाए जा रहे मन्दिर विध्वंस के क्रम में कल आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देवी सरस्वती जी के प्राचीन मन्दिर को तोड़ दिया गया और मूर्ति को अपने मूल स्थान से हटा दिया गया है जो कि सर्वथा अनुचित है। इसके पहले भी कई मन्दिरों और मूर्तियों को नष्ट किया गया जो अनुचित है।

उन्होंने कहा कि काशी विद्वत् परिषद् द्वारा जिस शास्त्रोक्त चालन पद्धति का हवाला देते हुए मूर्ति का स्थान परिवर्तित किया जा रहा है वह चालन पद्धति मूर्ति के खण्डित होने पर अथवा मन्दिर के जीर्ण शीर्ण होने की दशा में जीर्णोद्धार के संकल्प पर ही लागू हो सकती है। जबकि वहाँ मन्दिरों का जीर्णोद्धार नहीं अपितु कुछ अन्य नया निर्माण हो रहा है। जिस प्रकार बिना बीमारी की दशा को प्राप्त हुए औषधि लेना निषिद्ध है उसी प्रकार बिना जीर्णता को प्राप्त हुए ही मन्दिर तोडकर मूर्ति का स्थान परिवर्तित करना भी शास्त्रों में निषिद्ध है।

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Posted by Swaamishreeh avimukteshwaraanandah स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः on Tuesday, June 2, 2020

उन्होंने कहा कि इससे पहले भी भगवत्पाद आदि शंकराचार्य जी के शिष्य श्री मण्डन मिश्र जी (जो बाद में शंकराचार्य जी से शास्त्रार्थ कर सुरेश्वराचार्य नाम से विख्यात हुए थे और द्वारका पीठ के प्रथम शंकराचार्य बने थे) की मूर्ति को खण्डित कर दिया गया था। और काशी के परंपरा के अनन्य व्यास जी को उनके घर और मंदिर को गिरा कर अन्यत्र जाने को मजबूर किया गया था। इस धक्के को वह नहीं सके और उनका शरीर छूट गया।

उन्होंने आशंका जताते हुए कहा कि काशी में भगवत्पाद शंकराचार्य जी आए थे और उन्होंने इस नगरी में रहकर साधना की और सौन्दर्य लहरी और चर्पट पञ्जरिका जैसे महान् स्तोत्र की रचना की थी और पूरे संसार को अद्वैत का सिद्धांत देकर एकता के सूत्र में पिरोने का सुन्दर प्रयास किया था। ऐसी महान् विभूति की उपेक्षा कर उनसे जुडी स्मृतियों को हटाया जाना और सनातन धर्म के आस्था केंद्रों प्राचीन मंदिरों यहां तक कि पौराणिक मंदिरों को भी और उनके अंदर की मूर्तियों को भी तोड़ कर फेंक देना अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है।

स्वामिश्रीः ने यह भी कहा कि जो लोग यह कह रहे हैं कि यह मन्दिर इसलिए तोड़े जा रहे हैं कि इनको पुनः नया बनाया जाएगा उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसके पहले काशी विश्वनाथ मन्दिर में जब तारकेश्वर मन्दिर और रानी भवानी मन्दिर तोड़े जा रहे थे उस समय भी विरोध किया गया था तब विश्वनाथ मन्दिर प्रशासन ने लिखित दिया था कि हम यहाँ पर जो मूर्तियाॅ तोड़ी गई हैं उनको पुनः स्थापित करेंगे । 203 मूर्तियों की सूची बनाकर लिखित रूप से स्वीकार किया गया था लेकिन आज तक उन मूर्तियों को पुनः स्थापित नहीं किया गया । यही नहीं कुछ दिन पहले काशी विद्वत् परिषद के लोगों के हवाले से यह वक्तव्य आया था कि काशी खण्डोक्त मन्दिर नहीं तोड़े जाएंगे लेकिन आखिर तोड़े ही गए । इसलिए विश्वनाथ मन्दिर के प्रशासन के कहे पर सनातनियों को अब भरोसा नहीं रहा।


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8 Comments on ““काशी में शंकराचार्य परम्परा और सनातन धर्म को खण्डित करने का षड्यन्त्र”!”

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