पंजाब : लैंड पूलिंग नीति 2025 पर घिर रही है आम आदमी पार्टी की सरकार


पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा लाई गई नई लैंड पूलिंग नीति 2025 का विरोध शुरू हो गया है। विपक्षी दलों ने इसे भगवंत मान सरकार द्वारा शहरी विकास के नाम पर गरीब किसानों की जमीन हथिया कर  बिल्डरों, डेवलपरों और बड़ी कंपनियों को देने की योजना  बताया है। विभिन्न किसान संगठनों ने सरकार को घेरने की तैयारी करना शुरू कर दी है।

भू-संपत्ति का अधिग्रहण भारतीय संविधान की समवर्ती सूचीमें आता है जिसका अर्थ है केन्‍द्र और राज्‍य सरकारें इस मामले में कानून बना सकती हैं, लेकिन पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार अपने कार्यकाल के लगभग साढ़े तीन साल बीत जाने के बाद नीति निर्धारण करके नियोजित शहरी विकास के उद्देश्य को आधार बना कर एक नयी पॉलिसी को प्रदेश में लागू कर रही है जिसे लैंड पूलिंग नीति 2025 कहा गया है। 2013 में अकाली दल सरकार के कार्यकाल में एक लैंड पूलिंग नीति बनाई गई थी। 

भूमि अधिग्रहण कानून के समानांतर इस नई नीति के माध्‍यम से पंजाब के 17 बड़े शहरों के आसपास की कृषि भूमि का उपयोग बदल कर सतत शहरी विकास के लिए उनका अधिग्रहण किया जाना है। इस योजना को लागू करने के लिए सरकार किसानों को ‘समझाने’ में लगी है।    



सार्वजनिक प्रयोजन यानी सार्वजनिक मान्यता प्राप्त उद्देश्य या  लोक कल्याणकारी उपक्रम के उपयोग के लिए सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहित की जाती है। अनिवार्य भूमि अधिग्रहण, जिसे भूमि अधिग्रहण भी कहा जाता है, सरकार की वह शक्ति है जिसके तहत वह निजी भूमि को सार्वजनिक हित में, भूमि के मालिक की सहमति के बिना, अपने कब्जे में ले सकती है। यह शक्ति आम तौर पर बुनियादी ढांचे के विकास, जैसे सड़कें, रेलवे, बांध, अस्पताल, स्कूल, बिजलीघर  और अन्य सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए उपयोग की जाती है। 

भारत में भूमि अधिग्रहण के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 जैसे कानून मौजूद हैं। परंपरागत भूस्वामियों से भूमि अधिग्रहण में राज्य सरकार उन्हें उचित मूल्य/मुआवजा देकर अधिग्रहण करता है, वहीं पंजाब सरकार की  नई लैंड पूलिंग नीतिमें भूस्वामियों को तत्काल मुआवजा और पुनर्वास देने के बजाय भविष्य में लाभ का आश्वासन स्वैच्छिक भूमि संग्रहण के लिए आधार बना दिया गया है। इस योजना के तहत पंजाब सरकार विभिन्न शहरों के आसपास की लगभग एक लाख एकड़ कृषि भूमि को सतत शहरी विकास के लिए योजनाबद्ध क्षेत्रीय  विकास के दायरे में परिवर्तित करना चाहती है।

भूमि अधिग्रहण के मामले में केंद्रीय या राज्य  सरकार जो भी अधिग्रहण कर रही है, उसमें भूमि मालिकों को उचित मुआवजा देना होता है जो कि भूमि के बाजार मूल्य संरचनाओं, पेड़ों और अन्य संपत्तियों के मूल्य पर आधारित होता है।  2013 के अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि सरकार को प्रभावित परिवारों के पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन के लिए भी व्यवस्था करनी होगी। इसके साथ-साथ भविष्य में परियोजनाओं के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करके वैकल्पिक व्‍यवस्‍था भी बनानी होगी। 

2013 का अधिनियम कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में 1894 के अधिनियम में कई कमियों को दूर करने के लिए लाया गया था जिसमें भूस्वामियों को उचित मुआवजे और पुनर्वास की बात शामिल थी।  2013 का भूमि अधिग्रहण अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि भूमि मालिकों को उनकी भूमि के लिए उचित मुआवजा मिले और परियोजना से प्रभावित परिवारों का पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन के लिए सरकार द्वारा उचित व्यवस्था की जाए।  

पंजाब सरकार की इस लैंड पूलिंग नीति 2025का विरोध होना शुरू हो गया है क्योंकि बुनियादी सवालों के जवाब इस नीति में गायब हैं। सतत शहरी विकास लक्ष्यों से पहले मौजूद शहरी मूल संरचना में जोखिम न्यूनीकरण और स्थानीय आपदा प्रबंधन की समस्याओं में वांछित सुधार और योजनागत प्रगति नगण्य है। अव्यवस्थित अतिक्रमण, कचरा प्रबंधन, मल जल निकासी, प्रदूषण नियंत्रण, स्वच्छ जल की उपलब्धता, स्वास्थ्य सुविधाएं, आदि के साथ असंतुलित रोजगार के अवसर और आय की असमानता एवं शहरी गरीबी की विसंगतियों के समाधान अभी पूरी तरह से हो नहीं पाए।  उच्च जनसंख्या घनत्व में मूल सुविधाओं के प्रति अधिक संवेदनशील प्रबंधन प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करते हैं। 

कृषि योग्य भूमि को शहरी विकास व आवास योजना में प्रवर्तित करके सरकार किस वर्ग को सुलभता प्रदान करना चाहती है, यह सवाल भी इस नीति के विरोध में उठे हैं। सरकार इस भूमि को जिस उद्देश्य के लिए विकसित करना चाहती है उसकी कोई समय सीमा तय नहीं है। मुख्यमंत्री भगवंत मान एक ओर सार्वजनिक मंचों से लैंड पूलिंग नीति के फायदे गिनवा रहे हैं कि जमीन के विकसित होने पर उसके मूल्य में वृद्धि होगी और उसका लाभ जमीन मालिक को (कुछ हिस्सा जमीन वापस मिलेगी) मिल सकेगा; वहीं विपक्षी सवाल उठा रहे हैं कि  पहले की अधिग्रहित जमीनों पर योजनाएं कितने लम्बे समय से लंबित हैं और  दशक बीत जाने के बाद भी पूरा विकास नहीं हो पाया। ऐसे में इस नीति की विश्वसनीयता सवालों में आ जाती है। भगवंत मान का कहना है प्रदेश में गैरकानूनी अनधिकृत कालोनियों के विस्तार को रोकने के लिए और अव्यवस्थित शहरी विकास को काबू करने के लिए यह नीति सहायक होगी, लेकिन विपक्षी सवाल उठा रहे हैं कि इस नीति के तहत संग्रहित भूमि में आवासीय  योजना के विकास के लिए सरकार के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, तो क्या निजी डेवेलपर्स को विकसित करने के लिए शामिल किया जाएगा? 

सरकार द्वारा अभी बताया गया है कि ग्रेटर मोहाली एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (GMADA ) द्वारा इस योजना को विकसित किया जाएगा। लैंड पूलिंग नीति के अंतर्गत बुनियादी ढांचे के विकास में भूस्वामियों की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए राज्य ने भूमि पूलिंग योजना अधिसूचित की है। इस योजना के तहत भूस्वामियों के पास अपनी अधिग्रहीत भूमि के बदले आवासीय और व्यावसायिक दोनों प्रकार की भूमि रखने का विकल्प है। भूमि मालिकों के पास अपनी पसंद के अनुसार भूखंडों का आकार चुनने का विकल्प होगा। उदाहरण के लिए, अधिग्रहित एक एकड़ भूमि के बदले भूमि मालिक 500, 400, 100 वर्ग गज, 500, 300 या 200 वर्ग गज के आकार के भूखंड ले सकता है।

व्यावसायिक भूमि आवंटित किए जाने के मामले में भूमि स्वामी को आकार चुनने का कोई विकल्प नहीं दिया जाएगा। व्यावसायिक स्थान को बड़े से छोटे आकार में वरीयता देते हुए आवंटित किया जाएगा। बूथ आवासीय एवं वाणिज्यिक स्थलों का आवंटन लॉटरी के माध्यम से किया जाएगा। भूमि मालिक संयुक्त रूप से या आश्रित रूप से भूमि पूलिंग के लिए आवेदन कर सकते हैं। 10 वर्ग गज से 40 वर्ग गज तक की जमीन अधिग्रहण करने पर साइट के बजाय बूथ अलॉट किया जाएगा। इन बूथों का निर्माण गमाडा द्वारा किया जाएगा, लेकिन निर्माण पर आने वाली लागत जमीन मालिकों द्वारा अग्रिम रूप से चुकाई जाएगी।

एक एकड़ से कम जमीन के लिए जमीन मालिक नकद मुआवजा ले सकता है या विशेष आशय पत्र (एलओआइ) प्राप्त कर सकता है, जिसे वह बेच या खरीद सकता है। किसी एक योजना के आशय पत्र (एलओआइ) और विशेष आशय पत्र को एक साथ जोड़ा जा सकता है। आशय पत्रों की बिक्री/खरीद पर दो फीसदी का हस्तांतरण शुल्क लिया जाएगा।

पुनर्वास नीति के अंतर्गत भूमि स्वामी द्वारा आच्छादित क्षेत्र के स्थानांतरण का विकल्प: सरकार ने गांव में रहने के इच्छुक भूमि स्वामियों के लिए एक पुनर्वास नीति तैयार की है। इस नीति के अनुसार, अधिग्रहित भूमि के आच्छादित क्षेत्र के अनुपात में स्वामी को गांव के बाहरी इलाके में भूमि आवंटित की जाएगी। निर्मित क्षेत्र का मुआवजा भूमि अधिग्रहण नीति के अनुसार दिया जाएगा।

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल व भाजपा लगातार इसका विरोध कर रहे हैं। राज्य के किसान संगठन भी इसके विरोध में उतर गए हैं और एक नए आंदोलन की तैयारी में हैं। पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा के तर्क और गणित के अनुसार पहले की सरकारें भू माफियाओं से मिली हुई थीं इसलिए किसान को जमीनों के उचित दाम नहीं मिले। इस नीति के तहत किसान को एक एकड़ पर  लगभग 4. 2 करोड़ का लाभ होगा। पुरानी नीति के अनुसार किसान की एक एकड़ जमीन की बाजार कीमत 1. 25 करोड़ रुपये है जबकि नई लैंड पूलिंग नीति के तहत एक एकड़ जमीन देने पर किसान को 1000 गज  रिहायशी और 400 गज वाणिज्यिक भूखंड मिलेगा जिसकी कीमत विकसित होने पर 30000  रूपये प्रति वर्ग गज (3  करोड़) और  वाणिज्यिक 60000 रूपये प्रति वर्ग गज (1.24 करोड़) होगी।

विपक्षी दलों का तर्क है कि नई नीति बनाने में किसी भी किसान से कोई परामर्श नहीं किया गया और न ही किसान संगठनों से। नई नीति भगवंत मान सरकार द्वारा उन पर थोपी जा रही है जबकि मुख्यमंत्री को पंजाब की कैबिनेट में प्रस्ताव पास करके सभी लोकल डेवलपमेंट बोर्डों के चेयरमैन पद से हटा दिया और  मुख्य सचिव को नया चेयरमैन नियुक्त कर  दिया गया।     

मोहाली में नए सेक्टरों को विकसित करने के लिए नौ गांवों की 6285 एकड़ जमीन अधिग्रहण के लिए चिन्हित की गई है जहां किसानों भू मालिकों ने  नई लैंड पूलिंग  नीति को अस्वीकार कर दिया है। विपक्ष का कहना है कि नई नीति केवल कॉरपोरेट और बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई है। किसानों के हितों का ध्यान नहीं रखा गया है। पंजाब के 17 शहरों को इस नीति के लिए चिन्हित किया गया है। पंजाब  में आवासीय विकास के लिए पुडा और गमाडा की ओर से विभिन्न शहरों के बाहरी इलाकों में कॉलोनियों और अन्य प्रोजेक्ट्स के लिए हजारों एकड़ जमीन बेकार पड़ी हैं। पंजाब में 50 हजार से अधिक बनी कॉलोनियों में आधे प्लॉट खाली पड़े हैं और उनमें बुनियादी सुविधाओं की कमी है। 

सवाल कई है और बड़े भी हैं। पूर्ववर्ती सरकारों पर आरोप लगा कर अपनी नीति को बेहतर बताने में क्या आम आदमी पार्टी भाजपा का अनुसरण करती नहीं दिखाई देने लगी? पंजाब में आम आदमी पार्टी इस सवालों के चक्रव्यूह  से निकलती दिखाई नहीं दे रही। आने वाले 2027 विधानसभा चुनावों में तक मुद्दा निरंतर आम आदमी पार्टी को चुभता रहेगा।    


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