डॉ. मोहनलाल पांडा को सम्मान: अटल के ‘राजधर्म’ से जनमित्र के ‘स्वधर्म’ को मिली मान्यता


यह समय है जब हम सामाजिक संतुलन को तोड़ते हैं और सुधार को मजबूत करते हैं। कोई भी व्यक्ति, कोई समूह या कोई भी नेटवर्क कहीं भी स्थिति को बदल सकता है। हमें यह देखना होगा कि अधिक से अधिक लोग पिरामिड के निचले भाग में अधिक संपत्ति बनाने का प्रयास करें। लोकतांत्रिक पूंजीवाद की छत्रछाया में नवाचार और प्रतिस्पर्धा होने दें। सामाजिक उद्यमियों की संख्या जितनी अधिक होगी, देश उतना ही आत्मनिर्भर बनेगा।

21 दिसम्बर, 2022 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में अटल अचीवमेंट पुरस्‍कार पाने के बाद डॉ. मोहनलाल पांडा ने यह बात कही।

डॉ. पांडा के जन्मदिन पर यह उनके लिए यादगार तोहफा था। दिल्ली में रहने वाले डॉ. मोहनलाल पांडा के पास जेएनयू से पीएच.डी. की डिग्री है और विकास से जुड़े मुद्दों पर सलाहकार व स्वतंत्र परियोजना मूल्यांकनकर्ता हैं। वह जनमित्र न्यास के सेंटर फॉर लाइवलीहुड एंड सोशल एंटरप्रेन्योरशिप के निदेशक भी हैं। यह केंद्र समाज के सबसे हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिए आजीविका के अवसर पैदा कर रहा है और स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं को उपलब्ध व्यावसायिक अवसरों से भी जोड़ रहा है।

डॉ. पांडा को मिला सम्‍मान अटल बिहारी वाजपेयी के राजधर्म की अवधारणा में जनमित्र न्‍यास के स्‍वधर्म को मिली एक मान्‍यता है। राजनीति के जिस दौर में न तो राजधर्म और न ही स्‍वधर्म की परवाह की जा रही हो, डॉ. पांडा को मिला यह पुरस्‍कार इस बात की तसदीक करता है कि स्‍वधर्म से ही राजधर्म को पूरा किया जा सकता है और राजधर्म ही स्‍वधर्म को अपनाने की संभावनाएं पैदा करता है।

मोहनलाल पांडा का जन्म बौध, ओडिशा में हुआ था। उन्होंने बौध में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और संबलपुर चले गए, जहां उन्होंने गंगाधर मेहर कॉलेज, जो अब एक स्वायत्त विश्वविद्यालय, संबलपुर, ओडिशा है, से कला स्नातक (राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान), 1987 में पूरा किया। उन्होंने राजनीति विज्ञान में संबलपुर विश्वविद्यालय, बुर्ला से स्नातकोत्तर किया। उन्हें 1999 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से डॉक्टरेट ऑफ फिलॉसफी की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

डॉ. पांडा का खानदानी रिश्‍ता कांग्रेस पार्टी के साथ रहा है। उनके पिता श्री गिरीश चंद्र पांडा एक व्यापक रूप से सम्मानित वकील और प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने ओडिशा के फूलबनी जिले में संगठन निर्माण के माध्यम से कांग्रेस पार्टी को जमीनी स्तर पर लोकप्रिय और मजबूत किया और 1974 में चार में से तीन  विधानसभा सीटों पर जीत हासिल कर पार्टी को सफलता दिलायी। उनके दादा, एक राजनेता और व्यवसायी थे जिन्‍होंने बौध के राजा की परिषद और प्रजामंडल समिति की स्थापना की।

इंदिरा गांधी के साथ श्री गिरीश चंद्र पांडा

डॉ. पांडा ने ग्रामीण विकास फाउंडेशन, फ्रेडरिक नौमन स्टिफ्टंग, दक्षिण एशिया कार्यालय और जनमित्र न्यास के साथ अपने कार्यकाल के दौरान लोकतांत्रिक शासन, मानवाधिकार और कौशल विकास की विभिन्न परियोजनाओं पर काम किया है। एक मूल्यांकन और निगरानी सलाहकार के रूप में उन्होंने UNDEF, UNWOMEN और अन्य अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों जैसे संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं का मूल्यांकन किया है।


(प्रेस विज्ञप्ति)


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