कोरोना वायरस से उपजी महामारी पर बहस करते हुए अक्सर दो बातें सामने आती हैं। एक, इस त्रासदी को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। दूसरी, इसे रोकने के लिए सरकारें उतनी तत्पर नहीं दिख रही हैं। इन दोनों ही धारणाओं के पीछे एक सहज सवाल पैदा होता हैः क्या इस महामारी के पीछे कोई एजेंडा है? अगर है, तो क्या?
कोरोना पर बात करते हुए एक और राय आम है जिस पर सहमति बनती देखी जा सकती है। वो यह, कि कोरोना के बाद की दुनिया अब से अलग होगी, नयी होगी। इसका मतलब ये हुआ कि यदि कोरोना नहीं आता तो दुनिया जस का तस रहती।
इसका मतलब यह निकलता है कि दुनिया को बदलने के लिए, एक नयी विश्व व्यवस्था (न्यू वर्ल्ड आर्डर या एनडब्लूओ) कायम करने के पीछे यह महामारी ही है। चूंकि इसे पैदा करने वाले वायरस के पीछे एजेंडे का संदेह है, तो निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि नयी विश्व व्यवस्था कायम करने के पीछे कुछ एजेंडा है, कोराना जिसका माध्यम है।
इस लेख में उन पांच प्रमुख एजेंडों की चर्चा है जिन्हें कोरोना वायरस के नाम पर साधा जा रहा है। आधिकारिक स्रोतों से जो भी समाचार या आँकड़े आ रहे हैं उन पर भरोसा करना कठिन है। मीडिया का काम है धारणा बनाना, वास्तविकता उससे अलग हो सकती है। किसी भी आपात स्थिति में लगभग हमेशा ही एक दूसरे से बिलकुल उलट होते हैं। यही मौका होता है दुनिया को चलाने वालों के पास, कि वह इस अराजकता के बीच नयी व्यवस्था कायम कर ले।
दुनिया भर के जानकारों ने अलग-अलग लेखों और वक्तव्यों में नयी विश्व व्यवस्था बनने के पीछे जिन एजेंडों को गिनवाया है, हम उनकी चर्चा यहां बिंदुवार करेंगे।
सूचना का केंद्रीकृत नियंत्रण यानी सेंसरशिप और नैरेटिव कंट्रोल
ईवेंट 201 एक ड्रिल (अभ्यास) था जिसमें एक ‘काल्पनिक’ महामारी के पैदा होने पर दी जाने वाली प्रतिक्रियाओं और उससे लड़ने के तरीकों पर चर्चा की गयी थी।वैश्विक व्यापार, सरकारों और सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों सहित कुल 15 घटकों ने इस अभ्यास में हिस्सा लिया था। ईवेंट 201 सिमुलेशन अक्टूबर 2019 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ साझेदारी में जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर द्वारा आयोजित किया गया था।
इस कार्यक्रम में मौजूद में वक्ताओं में से कुछ लोगों ने किसी महामारी के दौरान सूचना के केंद्रीकृत नियंत्रण की आवश्यकता की बात की। इसमें शामिल एक वक्ता लवन थिरु (सिंगापुर के एक मौद्रिक प्राधिकरण के सदस्य) ने “झूठे समाचार के खिलाफ कार्रवाई” का उल्लेख किया। कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि “बिग टेक” यानी बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां आज की तारीख में प्रसारक की भूमिका निभा रही हैं, इसलिए इन्हें फर्जी खबरों से निपटने के लिए तैयार किया जाना चाहिए। एक अन्य वक्ता ने “कॉन्स्पिरेसी थियरी” (साजिश के सिद्धांतों) को प्रदर्शित किया। ईवेंट 201 अपने आयोजन के छह सप्ताह बाद कोरोना महामारी के दौरान सच साबित हुआ। ध्यान देने वाली बात है कि 9/11 हमलों और लंदन मेट्रो के धमाकों के दौरान ऐसी ही एक ड्रिल रियल टाइम में चल रही थी।
आइए, कुछेक उद्धरणों में देखते हैं कि ईवेंट 201 में किस तरह की बातें की गयीं।
“गलत सूचनाएँ कहर बरपा रही हैं… दवा कंपनियों पर वायरस को फैलाने का आरोप लगाया जा रहा है कि वे ड्रग्स और टीकों से पैसा कमा रहे हैं जिससे उनके उत्पादों पर जनता का विश्वास कम हो रहा है। झूठी अफवाहों और विभाजनकारी संदेश के कारण अशांति बढ़ रही है और विश्वास कम होने के साथ ही बीमारी का प्रसार बढ़ रहा है और लोग प्रतिक्रिया के प्रयासों के साथ सहयोग करना बंद कर रहे हैं। यह एक बड़ी समस्या है, जो सरकारों और विश्वसनीय संस्थानों के लिए खतरा है।
राष्ट्रीय सरकारें गलत सूचनाओं से निपटने के लिए कई तरह के हस्तक्षेपों पर या तो विचार कर रही हैं या पहले ही लागू कर चुकी हैं। कुछ सरकारों ने इंटरनेट की राष्ट्रीय पहुंच पर नियंत्रण कर लिया है; अन्य लोग वेबसाइटों और सोशल मीडिया सामग्री को सेंसर कर रहे हैं, और एक छोटी संख्या ने गलत सूचना के प्रवाह को रोकने के लिए इंटरनेट का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दिया है। गिरफ्तारी सहित हानिकारक झूठ फैलाने के लिए जुर्माना लगाया गया है”
“मुझे लगता है कि एक ईमानदार ब्रोकर, एक केंद्रीकृत कमांड-एंड-कंट्रोल संगठन की जरूरत है जो वास्तव में सार्वजनिक-निजी क्षेत्र को एक वैश्विक दृष्टिकोण और एक स्थानीय दृष्टिकोण पर दोनों को एक साथ लाए…।”
“हां, मैं सहमत हूं, और मैं ईमानदार ब्रोकर के बारे में बात करना चाहता था, और मुझे लगता है कि इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र फिट बैठता है…।”
“यह महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र और डब्ल्यूएचओ का दृष्टिकोण स्पष्ट रहे, लेकिन जब वे सरकारों को सीधे चुनौती देते हैं, तो वे अक्सर संप्रभुता के इस मुद्दे में शामिल हो जाते हैं, और इसलिए मुझे लगता है कि यह वास्तव में महत्वपूर्ण है कि प्रतिक्रिया के रूप में केवल यही विकल्प हो… नरम शक्ति के प्रभाव को याद रखना वास्तव में महत्वपूर्ण है…।”
यह आखिरी बयान नयी विश्व व्यवस्था में एक प्रमुख एजेंडे को फिर से प्रकट करता है: नैरेटिव पर नियंत्रण।
कैशलेस एजेंडा
कैशलेस एजेंडा एक लंबी अवधि से चली आ रही एनडब्लूओ योजना है। इसके तहत समाज में हर चीज का डिजिटलीकरण शामिल है, जिसमें पैसा, सूचना और खुद “जीवन” आता है। सत्ता के भूखे सनकी लोग एक नकदरहित समाज के विचार से प्यार करते हैं क्योंकि तब हर एक आर्थिक लेन-देन का पता लगाया जा सकता है और उसे नियंत्रण में रखा जा सकता है, जो अधिकारियों को हर जीवित व्यक्ति का पूरा खाका बनाने की अनुमति देता है। यदि कोई आपकी आर्थिक हालत जानता है, यह जानता है कि आप कौन हैं, तो अवज्ञा या क्रांति होने के पहले ही उसे रोका जा सकता है। यह कर के माध्यम से सरकारी राजस्व को भी बढ़ाता है। चीन ने यह दावा करते हुए कैशलेस एजेंडे को आगे बढ़ाया कि काग़ज़ की मुद्रा को प्रचलन से बाहर कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इसमें COVID-19 का वायरस हो सकता है और इससे संक्रमण फैलाने में मदद मिल सकती है।
क्वॉरन्टीन और मार्शल लॉ
सरकारें मार्शल लॉ जैसे हालात को पसंद करती हैं क्योंकि इसमें लोगों के सहज सामान्य अधिकार कुछ समय के लिए खत्म हो जाते हैं । इधर बीच चीन में पुलिस का राज दिखाने वाली कुछ भयावह तस्वीरें और वीडियो आये हैं। महामारी का संकट ऐसी तानाशाह सरकारों द्वारा आपके अधिकारों को छीन लेने के लिए एक और मौका है। यह देखने लायक होगा कि वे वायरस से लड़ने के नाम पर हमारे और कितने अधिकार छीन लेंगे। ध्यान देने लायक बात ये है कि चीन के पुलिस राज को एक नयी विश्व व्यवस्था के मॉडल के बतौर सराहा गया है।
अनिवार्य टीकाकरण
कोरोना वायरस महामारी ने दुनिया भर की सरकारों को उनके पसंदीदा एनडब्लूओ एजेंडे- अनिवार्य टीकाकरण का परिचय देने के लिए एक अच्छा बहाना प्रदान किया है। इस एजेंडे को विशेष रूप से इतना पसंद किया जाने का कारण यह है कि यह सत्ताओं को नागरिकों के शरीर तक पहुंचने की अनुमति देता है- न केवल शरीर तक, बल्कि उसके रक्त प्रवाह तक भी । हमें सच में पता नहीं है कि फलाने इंजेक्शन में क्या है, इसलिए हमारे ज्ञान या सहमति के बिना हमारे शरीर में सभी प्रकार की चीजों को प्रत्यारोपित किया जा सकता है। संयोग नहीं है कि निजता पर अधिकार की कानूनी बहस में भारत के सुप्रीम कोर्ट में सरकारी महाधिवक्ता ने कुछ साल पहले कहा था कि नागरिकों के शरीर पर राज्य का अधिकार है।
चीन ने 29 जून 2019 को एक कानून पारित किया था जिससे राष्ट्रीय टीकाकरण अनिवार्य कर दिया गया और इसके तहत एक कार्यक्रम भी शुरू किया गया। यह कानून 1 दिसंबर 2019 को प्रभावी हुआ, जो कोरोना वायरस महामारी से दुनिया भर में समाचार बनने से ठीक पहले हुआ था।
राल्फ बैरिक जैसे तथाकथित विशेषज्ञ इस ओर संकेत कर रहे हैं कि कोरोना महामारी छूने से भी फैल सकती है, जैसा चीन में दस साल के एक लड़के के साथ हुआ। उसमें इन्फेक्शन के कोई लक्षण नहीं थे लेकिन वह कथित रूप से पॉजिटिव निकला। यह जानकारी उपयोगी हो सकती है, लेकिन सरकारों को यह बहाना मुहैया करा सकती है कि छिपे हुए “संभावित स्पर्शवाहकों” (जिन्हें छूने से कोरोना हो सकता है) से समाज की रक्षा के लिए हर एक व्यक्ति का टीकाकरण किया जाए। इस अनिवार्य टीकाकरण में डीएनए टीके और माइक्रोचिपिंग भी शामिल हो सकते हैं।
ऊपर दिए वीडियो के 28वें सेकंड में बिल गेट्स बढ़ती आबादी पर वैक्सीन से नियंत्रण की बात करते नजर आ रहे हैं।
बिल गेट्स का ID2020: माइक्रोचिप के माध्यम से डिजिटल पहचान
बिल गेट्स ने ऊपर दिए विडियो में स्वीकार किया है कि टीके जनसंख्या नियंत्रण में योगदान करते हैं। वे ईवेंट 201 का हिस्सा थे, जिसमें कोरोना वायरस महामारी का फैलाव होने से पहले ही उसकी ड्रिल की जा रही थी। उनकी वैश्विक परियोजना ID2020 एलायंस एक डिजिटल पहचान कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य है लोगों के शरीर में छोटे माइक्रोचिप डालना। इसे टीकाकरण के रिकार्ड के रूप में प्रसारित किया जाएगा। यह मानव के शरीर में माइक्रोचिप डालने की योजना है, जिसे कभी निरस्त कर दिया गया था। यह अब रीपैकेज हो कर एक “मौलिक और सार्वभौमिक मानव अधिकार” को पूरा करने के नाम पर “एक विश्वसनीय तरीके” के रूप में सामने आयी है। ये चिप्स, नयी विश्व व्यवस्था द्वारा विश्व की आबादी को आसानी से मैनेज करने की एक सहज निगरानी प्रणाली है।
अमेरिका के टेक्सस स्थित ऑस्टिन में ID2020 के प्रोजेक्ट को माइ-पास का नाम दिया गया है। इस परियोजना में शरणार्थियों के लिए आइ-रीस्पॉन्ड और एवरेस्ट के नाम से दो पायलट माइक्रोचिप टीकाकरण कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं।
निष्कर्ष
एनडब्लूओ के एजेंडे में दिलचस्प बात यह है कि वुहान सैन्य खेलों के उद्घाटन समारोह में एक “नयी दुनिया” की घोषणा की गयी थी। यह एक और सुराग है कि यह पूरी घटना पूर्व निर्धारित और योजनाबद्ध थी। वायरस की उत्पत्ति के बारे में जो भी सच्चाई सामने आये, जिसने भी इसे बनाया हो या फैलाया हो, इसमें कोई संदेह नहीं है कि कोरोना महामारी का उपयोग तेजी से आमूलचूल सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए किया जा रहा है।