जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज़ ने 14 अप्रैल 2022 को कॉमरेड पीसी जोशी की जयंती मनाने के लिए एक वेबिनार का आयोजन किया, जो बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती भी थी।
वेबिनार की अध्यक्षता जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष कॉमरेड एसपी शुक्ला ने की और मुख्य वक्ता थे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव कॉमरेड डी राजा, प्रख्यात इतिहासकार व नेशनल नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इंडियन वीमेन (एनएफआईडब्ल्यू) की उपाध्यक्ष और कॉमरेड पीसी जोशी की जीवनी लेखक डॉ गार्गी चक्रवर्ती, नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय की पूर्व निदेशक व जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की पूर्व प्रोफेसर मृदुला मुखर्जी।
कॉमरेड विनीत तिवारी (राष्ट्रीय महासचिव प्रगतिशील लेखक संघ) ने इंस्टिट्यूट की ओर से सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और वेबिनार को कॉमरेड पीसी जोशी और डॉ बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के प्रगतिशील, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को समर्पित किया। उन्होंने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि डॉक्टर गंगाधर अधिकारी के साथ कॉम पीसी जोशी के नाम पर ही जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट का नाम रखा गया है।
इसके बाद उन्होंने कॉमरेड डी राजा को अपनी उद्घाटन टिप्पणी के लिए आमंत्रित किया। कॉमरेड राजा ने हमारे इतिहास में कॉमरेड पीसी जोशी और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर दोनों की जयंती के रूप में इस दिन के विशेष महत्त्व को सामने रखा। कॉमरेड पीसी जोशी द्वारा किए गए कार्यों के बारे में अपनी समझ साझा करते हुए उन्होंने कॉमरेड जोशी को भारत के उत्कृष्ट कम्युनिस्ट नेताओं में से एक करार दिया। उन्होंने 1936 में आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन, प्रगतिशील लेखक संघ, आल इंडिया किसान सभा के गठन में कॉमरेड पीसी जोशी के योगदान का भी उल्लेख किया। इन संगठनों में मूल्यों को विकसित करने में पी सी जोशी ने जबरदस्त भूमिका निभाई। उस वक़्त चल रहे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को देखते हुए साम्राज्यवाद विरोधी विभिन्न ताकतों को एकजुट करने में कॉमरेड पीसी जोशी की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थी। वास्तव में आज के संदर्भ में जब हम सांप्रदायिक, फासीवादी, दक्षिणपंथी ताकतों से लड़ रहे हैं, तो एकजुट होकर लड़ने की रणनीति बनाने के लिए कॉमरेड पी सी जोशी के विचारों की भूमिका अधिक प्रासंगिक हो जाती है।
कॉमरेड राजा ने बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के योगदान को भी याद किया और कहा कि दक्षिणपंथी ताकतों का जबरदस्त दबाव होने के बावजूद बाबासाहेब ने सभी प्रकार की सांप्रदायिकता को मज़बूती से खारिज किया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि भाकपा का रुख भाजपा-आरएसएस प्रमुख ताकतों से लड़ने और उन्हें हराने के लिए एक बड़ी एकता का आह्वान करना है। ऐसा करने के लिए हमें सभी प्रगतिशील, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ताकतों को जुटाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज की स्थिति में “वर्ग संघर्ष” का अर्थ है आर्थिक शोषण, सामाजिक असमानता और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई, बेरोज़गारों व महिलाओं के रोजगार के लिए लड़ाई।
डॉ गार्गी चक्रवर्ती ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी में कई लोग शायद हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में अल्मोड़ा के पूरन चंद्र जोशी के योगदान से अवगत नहीं हैं, अतः उनके कार्यों को प्रकाश में लाना बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है। डॉ गार्गी चक्रवर्ती ने कॉमरेड पीसी जोशी और उनके कार्यों का एक विस्तृत लेखा-जोखा और विश्लेषण प्रस्तुत किया। वे कॉमरेड जोशी की जीवनी लेखिका भी हैं इसलिए उनके जीवन और कार्यों के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने में सक्षम थीं। उन्होंने बताया कि कॉ. जोशी की राजनीतिक यात्रा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक युवा छात्र के रूप में शुरू हुई और वह ब्रिटिश कम्युनिस्टों से प्रभावित थे। जब वह 22 साल की उम्र में “मेरठ षडयंत्र” मामले में कैदी थे, तब उन्होंने ब्रिटिश कम्युनिस्टों की संगति में मार्क्सवाद का बारीकी से अध्ययन किया। डॉ गार्गी चक्रवर्ती ने उल्लेख किया कि कॉमरेड पी सी जोशी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में कई जन संगठनों को शुरू किया और बढ़ाया। उनके अनुसार जन मोर्चे कम्युनिस्टों के लिए गैर-कम्युनिस्ट प्रगतिशील और देशभक्त ताकतों से मिलने के लिए आधार थे। कॉमरेड जोशी के पास एक विजन था और उन्होंने लोगों के मुहावरे में बात की, उन्होंने शिशु पार्टी को राष्ट्रीय कद तक ऊंचा किया। उन्होंने जनसंस्कृति के महत्त्व को महसूस किया और प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा), का गठन किया। वह गांधी, नेहरू, आजाद और अंबेडकर जैसे नेताओं के समय में एक सच्चे राष्ट्रीय नेता थे।
डॉ गार्गी चक्रवर्ती ने भाजपा-आरएसएस से लड़ने के लिए एक संयुक्त, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मोर्चे की आवश्यकता पर जोर दिया।
प्रो. मृदुला मुखर्जी ने अपनी प्रस्तुति में कॉमरेड पीसी जोशी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में किसान संघर्ष के विकास को रेखांकित किया। उन्होंने समझाया कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गठन भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर क्यों था। उन्होंने कहा कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम और कॉमरेड पीसी जोशी के नेतृत्व ने दिखाया कि विविध वैचारिक पृष्ठभूमि के लोग एक साथ आ सकते हैं, न केवल शीर्ष पर बल्कि जमीनी स्तर पर भी आम कारण के लिए लड़ने के लिए। यदि उस वक़्त नेताओं ने, लोगों ने और कैडर साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ एकसाथ लड़ने की ज़रूरत को समझा था तो यह आज के परिदृश्य में भी किया जा सकता है जब हम भीतर से सांप्रदायिक फ़ासीवाद के दुश्मन का सामना कर रहे हैं। कॉमरेड जोशी ने “नेशनल फ्रंट” में लिखा है कि “सबसे बड़ा वर्ग संघर्ष हमारा राष्ट्रीय संघर्ष है”। साम्राज्यवादियों के खिलाफ संघर्ष में यह मुख्य पड़ाव था।
सीपीआई(एम) के कॉमरेड सुनीत चोपड़ा ने शिद्दत से पीसी जोशी के सौम्य और उत्साहवर्धक व्यक्तित्व को याद किया जब वे जेएनयू में थे। प्रो अर्चिष्मान राजू ने गांधी जी और पीसी जोशी के सम्बंध का उल्लेख किया। राज्यसभा सांसद और भाकपा के राष्ट्रीय सचिव कॉमरेड बिनॉय विस्वम ने पीसी जोशी से हुई मुलाक़ात का उल्लेख करते हुए उनके कय्यूर के शहीदों से जेल में मिलने के बाद लिखे गए लेख का उल्लेख किया कर कहा कि उनके उस लेख से उनकी संवेदनशीलता और सांगठनिक समझ दोनों स्पष्ट झलकते हैं। डॉ अजय पटनायक और डॉ जया मेहता ने भी अपने विचार साझा किये। कॉमरेड एस पी शुक्ला ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा और कॉमरेड पीसी जोशी के योगदान पर अपने विचार भी साझा किए। उन्होंने कहा कि उनसे सीखने के लिए बहुत कुछ है, खासकर आज की स्थिति में जब सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतों के खिलाफ एकजुट संघर्ष समय की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हम कॉमरेड पी सी जोशी को एक संवेदनशील इंसान के तौर पर भी याद करते हैं।
वेबिनार में बड़ी संख्या में प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें पूरे भारत ही नहीं, विदेशों से भी लोग जुड़े। डॉ सुबोध मालाकार, पद्मश्री किरण सहगल, कॉ. सी एच वेंकटाचलम, कॉ अरविन्द श्रीवास्तव, कॉ दरियाव सिंह कश्यप, दिनेश अब्रोल, डी डी तुलजापुरकर, गीता महाजन, कळले पार्थसारथी, जो अथिअली,अशोक राव, डॉ मीनाक्षी सुन्द्रियाल, मॉय रॉय, मृदुला सिंह, नानक चंद शांडिल, राधिका मेनन, संतोष हिरेमठ, संजय कोतवाल, सहजो सिंह, श्याम काळे, युगल रायलु, टी एस नटराजन, डॉ विजय सिंह, एनी राजा, नूर ज़हीर, सुभाष गाताडे, डॉ कृष्णा मजुमदार, सारिका श्रीवास्तव, सुजाता मधोक, सुनीर, आदि लोग शरीक हुए। ज़ूम मीटिंग की क्षमता 100 लोगों की थी जो मीटिंग शुरू होते ही भर गई। क़रीब 50 लोग प्रवेश की प्रतीक्षा में रहे।
रिपोर्ट: विवेक मेहता