देश भर के बड़े और महत्वपूर्ण डिजिटल मंचों पर लिखने वाली वाराणसी की उदीयमान पत्रकार रिज़वाना तबस्सुम (25) ने ख़ुदकुशी कर ली है। मौके पर मिले चार शब्दों के संक्षिप्त सुसाइड नोट में जिस शख्स को इस मौत का जिम्मेदार ठहराया गया है, उसके खिलाफ़ उनके पिता ने पुलिस में एक तहरीर दी है जिसके आधार पर ख़ुदकुशी के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। आरोपित पुलिस की गिरफ्त में है।
पत्रकारिता जगत में रिज़वाना बनारस से लेकर दिल्ली तक चर्चित नाम थीं। बीबीसी से लेकर दि वायर, स्क्रोल, न्यूज़क्लिक, जनज्वार और दि प्रिंट तक वे लगातार पूर्वांचल से स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट करती थीं और उससे होने वाली आय से अपने घर का खर्च चलाती थीं। सोमवार तड़के लोहता थानांतर्गत हरपालपुर के सबुआ पोखरा गांव में अपने घर के कमरे में रिज़वाना ने फांसी लगा ली। सुबह जब उन्होंने कमरे का दरवाज़ा नहीं खोला, तब उनके भाई ने सदर सीओ को इत्तला दी। पुलिस ने आकर दरवाज़ा तोड़ा तो कमरे की छत से लगी रॉड से रिज़वाना की लाश लटकी मिली।
कमरे में एक संक्षिप्त सुसाइड नोट भी बरामद हुआ जिस पर लिखा था, “शमीम नोमानी जिम्मेदार है”। पुलिस ने यह सुसाइड नोट, रिज़वाना का लैपटॉप और मोबाइल ज़ब्त कर लिया। बाद में रिज़वाना के पिता ने इसी शख्स के नाम से तहरीर दी और इस पर प्रताड़ना का आरोप लगाया।
शाम तक लाश का पंचनामा हो चुका था। वाराणसी पुलिस द्वारा जारी प्रेस नोट में बताया गया हैः
आज दिनांक 04-05-2020 को थाना लोहता क्षेत्रान्तर्गत ग्राम सबुआ पोखरा हरपालपुर लोहता में रिजवाना तबस्सुम पुत्री अजिजुल हकीम उम्र-25 वर्ष अपने घर में दरवाजा बन्द करके अपने दुपट्टे से फांसी लगा ली, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी है। इस सम्बन्ध में थाना लोहता पर मु0अ0सं0-117/2020 धारा 306 भादवि बनाम शमीम नोमानी पुत्र स्व. बाकर नोमानी निवासी मोहल्ला इस्लामपुर लोहता थाना लोहता जनपद वाराणसी पंजीकृत कर अभियुक्त उपरोक्त को गिरफ्तार कर लिया गया है। घटना स्थल से प्राप्त नोट तथा मृतिका व अभियुक्त के मोबाईल कब्जे पुलिस में लेकर अवलोकन से प्रथम दृष्टया मामला प्रेम प्रसंग का प्रतीत हो रहा है। सही तथ्यों की जानकारी हेतु विवेचना प्रचलित है।
पत्रकारिता के प्रति रिज़वाना का जुनून इसी बात से समझा जा सकता है कि फांसी लगाने से पहले तक वे ख़बर लिखती रही थीं, जिसकी पुष्टि न्यूज़क्लिक के संपादक मुकुल सरल ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में की है।
यह सामान्य बात नहीं थी कि गुज़रे दो साल के भीतर बनारस जैसे शहर में अल्पसंख्यक समुदाय के एक बेहद गरीब परिवार से आने वाली लड़की बीबीसी जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच के लिए ख़बर लिखने लगी। शायद यही वजह रही कि दिल्ली से लेकर पूर्वांचल तक तमाम संपादक और पत्रकार उन्हें बहुत काबिल मानते थे और जैसे ही उनकी मौत की ख़बर सोमवार सुबह आयी, किसी को एकबारगी यकीन नहीं हुआ। आज न्यूज़क्लिक पर उनकी वह आखिरी रिपोर्ट इस टिप्पणी के साथ छपी है, जिसका ज़िक्र मुकुल सरल ने फेसबुक पोस्ट में किया था और जिसे रिज़वाना ने रविवार रात उन्हें भेजा थाः
रिज़वाना तबस्सुम की आख़िरी रिपोर्ट : कोरोना का संकट और बनारस का हाल
युवा प्रतिभाशाली पत्रकार रिज़वाना तबस्सुम की ये अंतिम रिपोर्ट है जो उन्होंने न्यूज़क्लिक के लिए रविवार रात करीब साढ़े नौ बजे ई-मेल के जरिये भेजी। और सोमवार सुबह ख़बर आई कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। उनके दिमाग़ में क्या कुछ चल रहा था ये तो कहना मुश्किल है लेकिन उनकी यह आख़िरी ख़बर कोरोना संकट में पूरे बनारस (वाराणसी) का हाल लिखने की एक कोशिश ही लगती है। इसमें वह रिक्शा वाले भैया से लेकर नाव चलाने वाले मांझी, डोम राजा, बुनकर और पुरोहित सबकी चिंता करती हैं, सबका हाल लेती हैं। और शीर्षक देती हैं- “कोरोना संकट : वाराणसी की वो पहचान जिसे कोरोना ने पूरी तरह कर दिया तबाह”। न्यूज़क्लिक परिवार की ओर से श्रद्धांजलि के साथ उनकी यह ख़बर आपके हवाले। अफ़सोस इसके बाद उनकी कोई ख़बर नहीं आएगी…। कोई बाइलाइन (Byline) नहीं।
उनके परिवार में पिता अजीजुल हकीम (56), मां अख्तर जहां (53) समेत कुल नौ लोग हैं। उनके बड़े भाई मोहम्मद अकरम (30) वाराणसी स्थित टाटा कैंसर हॉस्पिटल में लिपिक हैं। उनके परिवार में पत्नी और एक बच्चा है। इनके अलावा रिज़वाना के दो छोटे भाई मोहम्मद आज़म (22) और मोहम्मद असलम (14) हैं। असलम 11वीं का छात्र है। दो छोटी बहनों नुसरत जहां (19) और इशरत जहां (16) की जिम्मेदारी रिज़वाना पर ही थी।
रिज़वाना के पिता को चार साल पहले ब्रेन हैमरेज हो गया था जिसकी वजह से वह बहुत अधिक काम नहीं कर पाते हैं। परिवार में बनारसी साड़ी की बुनाई होती है जिसे उनके भाई और परिवार के सदस्य मिलकर चलाते हैं।
रिज़वाना केवल पत्रकार नहीं थीं। सामाजिक कामों में भी वे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थीं। इधर बीच कोरोना के चलते लगाये गये लॉकडाउन के दौरान उन्होंने न केवल बुनकरों की बदहाली पर ख़बर लिखी बल्कि उनके बीच राहत कार्य में भी जुटी थीं। उन्हें कई प्रतिष्ठित संस्थानों की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका था। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से विज्ञान में स्नातक करने के बाद उन्होंने बीएचयू से पत्रकारिता के पीजी डिप्लोमा किया था और कंप्यूटर की भी ट्रेनिंग ली थी।
जिस शख्स शमीम नोमानी के खिलाफ़ ख़ुदकुशी के लिए उकसाने का मुकदमा हुआ है, वह समाजवादी पार्टी का कार्यकर्ता है। नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध के दौर में अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों पर हुए पुलिसिया दमन के खिलाफ़ बीएचयू के छात्रों द्वारा निकाले गये जुलूस में भी नोमानी को देखा जा सकता है। परिजनों की मानें तो रविवार की देर रात एक बजे उसकी बात फोन पर शमीम नोमानी से होती रही थी।
बनारस से लेकर दिल्ली तक इस प्रतिभाशाली और साहसी पत्रकार की आत्महत्या पर सहज ही किसी को विश्वास नहीं हो रहा है। कुछ पत्रकारों ने रिज़वाना के इस तरह अचानक चले जाने को लेकर लिखा है। फेसबुक ने उनके अकाउंट को स्मरणीय की श्रेणी में डालकर श्रद्धांजलि दी है।
पत्रकारिता जगत में हुए इस बड़े नुकसान के बारे में तरह तरह की अटकलें लगायी जा रही हैं, लेकिन रिज़वाना के कमरे के नोटिसबोर्ड पर पिन किये एक काग़ज़ पर उनके हाथों से लिखी एक शायरी सूरते हाल को खुद बयां कर देती हैः
दुनियॉ इश्क है / और तुम इश्क के खिलाड़ी हो खिलाड़ी हमेशा जीतने के लिए खेलता है- तुम इस खेल को तो जीत गए लेकिन हारे हो इश्क और अपनी महबूबा
शिव दास बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं और वनांचल एक्सप्रेस के संस्थापक और संपादक हैं