भारत आज एक भीषण आपदा के चपेट में है। इसकी भीषणता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आज देश में शायद ही कोई ऐसा घर बचा हो जहां मातम ने दस्तक न दी हो। देश में शायद ही कोई ऐसा घर बचा हो जिसमें से कोई जनाज़ा न उठा हो! सरकार और सरकारी तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है और जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया गया है। इन तमाम हृदयविदारक अनुभवों के आधार पर ये विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि इस बुरे दौर में सत्ता पर काबिज सरकार भारतीय इतिहास की सबसे निष्ठुर, अमानवीय और भ्रष्ट सरकारों में से एक है।
ऐसे में कोविड वैक्सीन से लोगों में उम्मीद और आशा की एक लहर सी जागी थी कि संभवतः जल्द ही इससे कुछ राहत मिल सके, लेकिन सरकार के लचर, अवैज्ञानिक और अमानवीय दृष्टिकोण के कारण यह सपना भी तार-तार होता दिख रहा है। सरकार के ढुलमुलपन और गैर-जिम्मेदाराना रवैये से ये विश्वास और पुख्ता होता जा रहा है कि निकट भविष्य में इससे लोगों को अपेक्षित राहत मिल भी पाएगी या नहीं? वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद भी पद्मश्री डॉ. के. के. अग्रवाल की कोविड से हुई ताज़ा मौत ने तमाम संदेहों को और पुख्ता कर दिया है।
भारत इस महामारी में वैश्विक स्तर पर वैक्सीन के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में सामने आया है। यहां हर महीने लगभग आठ करोड़ वैक्सीन के उत्पादन की बात कही जाती है, लेकिन जल्दी ही चीन और अमेरिका वैक्सीन के उत्पादन में भारत को पीछे छोड़ देते हैं। यहां ये सवाल मौजूं है कि ऐसा क्यों हुआ? जब देश वैक्सीन के उत्पादन में अग्रिम पंक्ति में खड़ा था तो फिर ये फिसड्डी कैसे बना? निश्चित तौर से सरकार और सरकारी तंत्र को इसके लिए बहुत मेहनत, मशक्कत करनी पड़ी होगी! आज के समय में ये एक गंभीर सवाल है क्योंकि सही वक़्त पर वैक्सीन के प्रसारण से बहुत से लोगों को बचाया जा सकता था।
यहीं पर वैक्सीन को लेकर सरकार की नीति, सोच और दृष्टिकोण कठघरे में आकर खड़ी हो जाती है। सरकार को संभलने का तथा चीजों को अपने नियंत्रण में लेने का पर्याप्त समय मिला। अब तक सरकार के पास इस संबंध में जरूरी जानकारियां भी उपलब्ध हो चुकी थीं, वहीँ आने वाले समय के भयावहता पर विशेषज्ञों की तमाम चेतावनियां तथा अनुशंसाएं भी उपलब्ध थीं। ऐसे में वैक्सीन को लेकर भारत सरकार का रुख और रवैया जनता के साथ एक अश्लील मजाक से कम नहीं है। जहां एक तरफ पिछले साल की भयावहता को देख कर अमेरिका, योरप की सरकारें जागती हैं और पिछले मई, जून आते-आते कोविड से संबंधित रिसर्च और निर्माण के लिए दवा कंपनियों के साथ अरबों रुपये का करार करती हैं, ऐसे में भारत की सरकार क्या कर रही थी? यह एक वाज़िब और ज़रूरी सवाल है।
केंद्र सरकार ने इस दौरान कोविड के टीका निर्माण और उसके प्रबंधन के ऊपर कोई ठोस काम नहीं किया। एक पूरा साल सरकार ने इस संबंध में सिर्फ और सिर्फ शोर और ढोल बजाने का काम किया है। इस दरमियान भारत सरकार लगातार वैक्सीन को लेकर बड़े-बड़े दावे और वादे करते दिखती है, जैसे कि भारत सबसे बड़ा ‘वैक्सीन कार्यक्रम’ को अंजाम दे रही है। ये भी दावा किया जाता रहा कि ‘भारत वैक्सीन निर्माण में आत्मनिर्भर’ हो गया है और सरकार के पास वैक्सीन के पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध हैं। ‘स्वदेशी वैक्सीन’ का भी खूब ढोल पीटा जाता रहा। इसी समय देश के स्वास्थ्य मंत्री कोरोना पर देश की विजय की दलील भी देने लगते हैं। पिछले साल से इस साल के अप्रैल के शुरुआती दिनों तक जब तक कि लोग बड़े पैमाने पर मरने नहीं लग जाते, तब तक सरकार की तरफ से निरंतर ये बताया और जताया जाता रहा कि वैक्सीन निर्माण और प्रसारण उसी के नेतृत्व में चल रहा है। इस संबंध में प्रधानमंत्री का पिछले साल 28 नबम्बर को पुणे के सीरम इंस्टिट्यूट और आंध्रप्रदेश के भारत बायोटेक इंस्टिट्यूट का दौरा उल्लेखनीय है।
इस बात की तसदीक इससे भी होती है कि टीका लगाने के उपरांत जो प्रमाणपत्र मिलता है उस पर भी प्रधनमंत्री का चेहरा चिपका मिलता है। नेतागण और भारत सरकार के अधिकारीगण इस बात को महिमामंडित करते नहीं थकते कि टीका से संबंधित रिसर्च और निर्माण सब भारत सरकार और प्रधानमंत्री के संरक्षण में हो रहा है, हालांकि अभी तक वो ये बताने में असफल रहे हैं कि वैक्सीन के विकास और निर्माण में भारत सरकार ने कितनी राशि व्यय की है? सरकार इस बात पर भी खामोश है कि अगर यह ‘स्वदेशी वैक्सीन’ है तो इसकी खोज किस भारतीय ने तथा इसके रिसर्च का काम किस संस्था में किया गया है।
सरकार के खोखलेपन और लफ्फाजी का सबूत इस बात से भी मिलता है कि फरवरी में देश के वित्तमंत्री बजट में कोविड के लिए 35 हजार रुपये के प्रावधान की बात करती हैं। इस बात पर यकीन कर लिया जाए तो वैक्सीन निर्माता कंपनियों द्वारा केंद्र सरकार के लिए वैक्सीन के तय मूल्य 150 रुपए के हिसाब से इस राशि से तकरीबन 100 करोड़ लोगों को टीका लगाया जा सकता है, लेकिन वास्तव में ऐसा है क्या? इसके अलावा भी कई मौकों पर भारत सरकार द्वारा वैक्सीन के विकास और निर्माण में वित्तीय सहायता देने की बात कही जाती रही है, जैसे 13 मई 2020 को सरकार द्वारा यह घोषण की जाती है कि वैक्सीन के विकास और निर्माण पर काम कर रहे दो बड़ी कंपनियों को 100 करोड़ की राशि रिसर्च के लिए दिया जाएगा। वहीं 12 नंबर 2020 को ‘बिजनेस स्टैण्डर्ड’ में छपी एक रिपोर्ट में बताया जाता है कि वैक्सीन के रिसर्च और विकास के लिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण 900 करोड़ के प्रावधान की बात कहती हैं। वे बताती हैं कि ये फण्ड “बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट” को दिया जाएगा और इस योजना का नाम “कोविड सुरक्षा मिशन फॉर रिसर्च” बताया जाता है।
सवाल उठता है कि क्या वाकई में सरकार ने वैक्सीन के विकास और निर्माण के लिए वर्णित राशियों का प्रावधान किया है और अगर किया है तो ये राशि अब कहां है। इसका जवाब भारत सरकार द्वारा 11 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट को दिए एक हलफनामे से पता चलता है कि सरकार ने वैक्सीन के विकास और निर्माण के लिए सीरम इंस्टिट्यूट, पुणे तथा भारत बायोटेक को किसी भी प्रकार का कोई आर्थिक अनुदान नहीं दिया है। इसी हलफनामे में सरकार ने कोर्ट को ये भी बताया है कि कोविशील्ड के क्लीनिकल ट्रायल के लिए भी सीरम इंस्टिट्यूट को कोई आर्थिक सहयोग नहीं दिया गया है, हालांकि कोवैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के लिए भारत बायोटेक को आइसीएमआर से 46 करोड़ का वित्तीय सहयोग मिला है।
तन मन जन: इम्यूनिटी क्या वैक्सीन से ही आएगी?
हम दूसरी तरफ देखते हैं तो मई-जून 2020 में अमेरिका ने 40 करोड़ वैक्सीन का आर्डर दे दिया था जबकि वैक्सीन तैयार भी नहीं था। इस दरमियान अमेरिका ने अलग-अलग कंपनियों में वैक्सीन के विकास और निर्माण पर 15 हजार करोड़ का निवेश कर दिया था। इन सब का नतीजा ये रहा कि आज अमेरिका, ब्रिटेन तथा कनाडा जैसे देशों के पास अपनी जनसंख्या के हिसाब से अधिक वैक्सीन है। वहीं हमारे यहां अभी तक फ्रंटलाइन वर्कर्स को भी पूरी तरह से टीका नहीं लगाया जा सका है, साथ हीं 45 वर्ष से ऊपर के नागरिक भी टीका के इंतज़ार में दिन जोह रहे हैं। इधर मार्च के आखिर में बड़े पैमाने पर जब लोग मरने लगे तब आनन-फानन में सरकार 18 वर्ष से ऊपर के नागरिकों के लिए भी टीका कार्यक्रम के आंरभ की घोषणा कर देती है। देश के प्रधानमंत्री ‘टीका उत्सव’ मनाने की बात करते हैं। इन सब का नतीजा ये निकलता है कि 18 वर्ष से ऊपर के नागरिकों के लिए टीकाकरण की शुरुआत वाले दिन ही अधिकांश राज्यों में टीके का आभाव हो जाता है और राज्य सरकारों को नागरिकों से अपील करना पड़ता है कि वे टीका लगवाने के लिए बाहर न निकलें। इस वक़्त का हाल ये है कि देश बड़े पैमाने पर टीका के अभाव को झेल रहा है, ऐसे में राज्य सरकारों को अपने कई सारे टीका केंद्र बंद करने पड़े हैं।
राज्य सरकारों की परेशानी इस बात से भी बढ़ गई है कि अभी हाल तक टीका संबंधित सारे नियंत्रण और निर्णय केंद्र सरकार अपने पास सुरक्षित रखे हुए थी लेकिन जैसे हीं मार्च के आखिरी दिनों में जब लोग बड़े पैमाने पर तड़प-तड़प कर मरने लगे तो टीका खरीदने का सारा भार राज्य सरकारों पर डाल दिया जाता है और उन्हें ‘वैश्विक टेंडर’ जारी करने की अनुमति दे दी जाती है। इस तरह से हम पाते हैं कि भारत सरकार के टीका संबंधित सारे दावे और वादे ढकोसले के समान हैं। इस संबंध में सरकार के अपरिपक्व और गैर-जिम्मेदाराना रवैये ने लाखों करोड़ों लोगों के जान को खतरे में डाल दिया है। इस घोर तबाही के बावजूद सरकार नींद से नहीं जागी है और अब भी कई तरह के आडंबर रचने में लगी हुई है।