प्रधानी का चुनाव और चौराहे की चाय


रोज़गार की तलाश कर रहे उत्तर प्रदेश के युवाओं को नौकरी के ऑफ़र तो कम लेकिन चाय और मिठाई खाने के ऑफ़र आजकल बहुत आ रहे हैं। प्रधानी के चुनाव जो आ गए हैं।

जब तक ये घोषित नहीं हुआ था कि क्षेत्र में सीट किसकी रहेगी और कौन-कौन चुनाव में हाथ आज़मा सकता है तब तक जितने भी इच्छुक और ख़ुद को ‘नेता’ नहीं ‘बेटा’, ‘समाजसेवी’ और कर्मठ उम्मीदवार समझ रहे थे वे गाँव में हर किसी के घर बिना मतलब हालचाल लेने पहुँच रहे थे और गाँव के लोगों को अपना चेहरा याद करवा रहे थे। और गाँववाले सभी नमूनों को अपनी पैनी और काम निकालने वाली नज़रों से तौल रहे थे। किसी भावी उम्मीदवार के पास ट्रैक्टर है तो वो ग्रामसभा के उन वोटरों के खेती का काम उधार में या कम पैसे में कर दे रहा था कि वोट में एडजस्ट हो जाएगा तो कोई किसी के यहाँ कीर्तन का प्रसाद और माइक का ख़र्चा वहन कर दे रहा था।

लेकिन कुछ दिन पहले ही फ़ैसला आया कि ग्रामसभा में प्रधानी चुनाव की सीट OBC महिला हो गई है। अब आधे से ज़्यादा सफ़ेद कुरते बक्से में बंद हो गए और हालचाल लेने वाले कम हो गए। अब नए नियम के हिसाब से भावी प्रधान पतियों ने तुरंत अपनी पत्नियों की फ़ोटो वाले पोस्टर बनवा लिए और ‘नेता नहीं बेटा चुनिए’ की जगह ‘प्रधान नहीं बहू चुनिए’ करवा दिया। लेकिन प्रधान पतियों ने एक बात का ख़याल रखा कि अपनी तस्वीर के नीचे प्रधान बड़े शब्दों में और पति छोटे शब्दों में लिखवाया ताकि मतदाता यही सोचें कि अरे प्रधान तो यही हैं, इनकी पत्नी की तो सिर्फ़ दस्‍तखत लगेगी और होता भी ज़्यादातर यही है।

हमारे पड़ोस की ग्रामसभा में पिछली दो बार महिला प्रधान थीं लेकिन चुनाव प्रचार से लेकर सारे काम पति महोदय ने किया और एक साल तक तो अधिकारियों को भी नहीं पता था कि फ़लाँ प्रधान नहीं बल्कि प्रधान पति हैं। और गाँववाले तो आज तक ‘पति’ को प्रधान समझते हैं। ख़ैर! ये बात कोई नहीं है, मैं अपने किस्‍से पर आता हूँ। प्रचार शुरू हुआ और पतियों ने पत्नियों की तस्वीरों वाले पोस्टर चस्पाँ करने शुरू किए और अपना समीकरण बिठाना शुरू किया। गाँव के किसी व्यक्ति ने एक प्रत्याशी पति को ये सलाह दे दी कि पत्नी को गाँव वालों से मिलने के लिए बोलिए, ख़ासकर महिलाओं से तो उसका ज़्यादा असर पड़ेगा। तो प्रत्याशी पति महोदय ने कहा कि अरे सब करना तो हमीं को है, सब सेट कर देंगे, मैडम को आने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

प्रचार ज़ोर पकड़ने से पहले ही फ़ैसला पलट गया और सीट फिर से बदल गई। अब तक जितना समीकरण बनाया, जितना हालचाल लिया और जितने पोस्टर लगाए प्रधान पतियों ने, सब धरा रह गया और अगले दिन नए भावी प्रत्याशियों ने उन पोस्टरों को चिढ़ाते हुए अपने पोस्टर चिपका डाले और फिर से सफ़ेद कुर्ते पायजामे वालों की संख्या बढ़ गई। परसों से जितने लोग नमस्कार और पैर छूने को हुए उनमें से आधों को मैं नहीं पहचानता। लेकिन उनके पहनावे और हाथ जोड़ने के तरीक़े से मैं समझ गया कि ये नए प्रत्याशी होंगे। नई सीट की घोषणा के बाद से ही एक दुकान वाले तिराहे चौराहे पर भी दो चार भावी प्रत्याशी, उनके दो चार समर्थक और दो चार खलिहर लोग दिख जा रहे हैं और सुबह से लेकर शाम तक चल रहा है चाय और मिठाई का दौर।

मेरे यहाँ ये परम्परा बहुत पुरानी है। प्रधानी चुनाव का बहुत लोग बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। और जैसे ही चुनाव का ऐलान होता है ऐसे लोग महीनों तक घर की चाय और नाश्ता देखते तक नहीं। ये अलग अलग प्रत्याशी से अलग अलग चौराहे पर अलग अलग तरह का नाश्ता करते हैं और ग़लती से कभी दूसरे प्रत्याशी ने किसी अन्य का नाश्ता करते पकड़ लिया तो उससे कहते हैं कि ‘अरे वोट तो तुमको ही देंगे, उससे तो बस अंदर का माहौल ले रहा था कि कितनी वोट है उसकी।’

प्रत्याशी चाय पिलाते वक़्त मन ही मन गिनता रहता है कि कितनी चाय और पान हो गए और ये भी देखता है कि जो लोग फ़्री की चाय पी रहे हैं वो उसकी ही ग्रामसभा के हैं या पड़ोसी के। लेकिन इस प्रधानी की चाय के दौर में सबसे बुरे तरीक़े से फँसता है चाय वाला क्योंकि चुनाव की चाय उधार की ही होती है। प्रत्याशी से ज़्यादा दुकान वाला चाहता है कि वो जीत जाए नहीं तो उसके पैसे मिलने से रहे। चुनाव के ऐलान के बाद तो चौराहे पर जाने के लिए सोचना पड़ता है कि कहीं राह चलते कोई चाय ना पिला दे।

एक बार मैंने एक भावी प्रधान को मना कर दिया तो वो नाराज़ होकर बोला- लगता है आप हमें वोट नहीं देंगे, नहीं तो चाय के लिए मना नहीं करते। इतने में मेरे साथ में गए एक चुनावजीवी व्यक्ति ने तुरंत कहा- अरे ऐसी बात नहीं है, चाय क्या समोसा भी खा लेंगे। समोसा का नाम सुनते ही प्रत्याशी का मुँह फक्क हो गया कि साला चाय के ख़र्चे में निपटा रहा था लेकिन अब समोसा भी खिलाना पड़ेगा। ख़ैर! अभी प्रचार जारी है और चौराहे की चाय भी,,,, अगली चाय के बारे में फिर कभी लिखूँगा। चुनाव जारी रहे!


About प्रशांत तिवारी

View all posts by प्रशांत तिवारी →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *