MP ग़ज़ब है: इकलौते सरकार पर अफ़सरों का भार और विषाणु अपार


आज देश में लॉकडाउन को हुए 27 दिन हो चुके हैं। आने वाले 13 दिनों तक इसे ऐसे ही जारी रहना है। उसके बाद क्या होगा इसका फैसला भी तभी होगा। हर इंसान जो इस वक़्त अपने अपने घरों में है वहां कोरोना को अपने-अपने तरीके से कोस रहा है या देश-दुनिया के इस अवस्था में पहुँच जाने की मीमांसा कर रहा है। फोन, इन्टरनेट आदि चालू हैं जिससे हर इंसान किसी न किसी को यह बता भी पा रहा है कि वो क्या सोच रहा है। तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं, तमाम तरह की तोहमतें दी जा रहीं हैं, लानतें भेजी जा रही हैं, वगैरह वगैरह।

मैं देश-दुनिया के साथ अपने गृह प्रदेश मध्य प्रदेश के बारे में सोच रहा हूं। मैं सोच रहा हूं कि जब ‘कोरोना क्रोनोलॉजी’ का इतिहास लिखा जाएगा तब देश के हृदय प्रदेश और मेरे गृह प्रदेश पर किस-किस तरह की तोहमतें आएंगी। इसे कितने मरीजों की आह मिलेगी और कितने परेशान लोग इसे लानतें भेजेंगे।

आखिर दबे-छुपे ढंग से अब लोग यह मान तो रहे ही हैं कि मध्य प्रदेश में सरकार अगर जल्दी गिर जाती और शिवराज जी की शपथ बतौर मुख्यमंत्री जल्दी हो जाती तो कोरोना से निपटने की कवायदें भी जल्दी शुरू हो जातीं। 23 मार्च तक का इंतज़ार यूं ही नहीं किया जाता। सरकार के पास भी इसके कोई ठोस जवाब नहीं हैं कि क्यों 25 तारीख का ही मुहूर्त चुना देशबंदी की घोषणा के लिए। चंद झूठ हैं, लेकिन वो तो जवाब नहीं होते न?

हमारे प्यारे मध्य प्रदेश को इतिहास में ये आरोप तो झेलने पड़ेंगे। एक मित्र ने ठिठोली करते हुए कहा कि इस आपदा के जिम्मेदार कमलनाथ जी हैं। उन्हें अपने प्रदेश और देश के हित में जल्द से जल्द इस्तीफा दे देना था। सत्ता की ऐसी भी क्या भूख? दूर नहीं, उन्हें अपने सिंधिया जी को ही देखना था जो प्रदेश की जनता की सेवा के लिए दिन-रात एक किए हुए थे। 23 मार्च के बाद उन्हें भी अंतत: सेवा का अवसर मिल सका। उधर शिवराज जी तो कमर बांधे ही थे कि चाहे कुछ हो जाये बचे हुए चार साल जनता की सेवा हम ही करेंगे। ऐसे में कमलनाथ जी को यह स्वीकार करना चाहिए कि उनकी सत्ता की भूख ने मध्य प्रदेश में ऐसे हालात पैदा किए। राहुल गांधी और कांग्रेस को भी इसका जवाब देना चाहिए लेकिन वो देंगे नहीं क्योंकि वो तो चेतावनियां दे रहे हैं आजकल। मामला तब और भी संजीदा हो जाता है जब 12 फरवरी का राहुल गांधी का ट्वीट बाज़ार में चक्कर लगाते घूमते रहता है कि सुनामी आने वाली है… भाई जब पता था तो अपने मुख्यमंत्री का त्यागपत्र कराते। केंद्र सरकार भी गंभीर हो जाती। खैर।

गंभीरता से बात करें तो मध्य प्रदेश इस समय दिशाहीन प्रदेश हो गया है। वैसे भी यह मध्य में है। इसके साथ न उत्तर हैं दक्षिण है न पूरब है न पश्चिम है। यह भौगोलिक रूप से दिशाहीन शुरू से रहा है। अब इस कोरोना काल में तो बेचारा राजनैतिक रूप से भी दिशाहीन होकर भटक रहा है। शिवराज जी नव-निर्वाचित लेकिन चौथी बार शपथ लिए मुख्यमंत्री हैं लेकिन इस बार इस सरकार को कोई हनीमून पीरियड भी नहीं दे रहा। वो भी अकेले किसी तरह खुद ही अपनी शपथ करा पाये, उसमें भी हल्ला मच गया कि सोशल डिस्टेन्सिंग नहीं की।

तो ये चौथी बार जो सरकार बनी है वो असल में बन ही नहीं पायी है। आज बनते-बनते कुछ बनी है तो पांच मंत्रियों ने शपथ लिया है, हालांकि राजनीति के जानकार ऐसा मान रहे हैं कि ये ऐसी सरकार होगी जो सबसे ज़्यादा बार मंत्रियों की शपथ करवाएगी। बहुध्रुवी होगी न!

कोरोना को आए महीना भर बीत गया। एक अदद विषाणु के सामने एक अकेला मुख्यमंत्री और इतने सारे नौकरशाह। सब कुछ अफसरों के हवाले। ऐसे तो  पिछले तीन कार्यकलों में भी हालात यही थे लेकिन कोई जनता का नुमाइंदा अफसरों के ऊपर था। अफसर भी ऐसे नाकाबिल और गैरजिम्मेदार कि स्वास्थ्य सचिव जैसी काबिल और वरिष्ठ अफसर अपने साथ कोरोना वायरस लेकर बेहिचक घूमती रहीं और स्वास्थ्य संचलनालय को ही निष्क्रिय करवा दिया।

कार्यबल  की जबर्दस्त तंगी से जुझ रहे मध्य प्रदेश में मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ठीक होने वाले  मरीजों का औसत देश भर में सबसे कम है और तैयारियों के नाम पर कोई ठोस रणनीति है नहीं।

आज दिन में 12 बजे पांच मंत्रियों के शपथ ग्रहण से पहले क्या-क्या घटा है यहां, देखना दिलचस्प होगा। मंत्रिपरिषद के अभाव में भाजपा संगठन और भाजपा सरकार ने मिलकर यहां एक अभिनव प्रयोग किया। एक कार्यबल बनाया गया। इसमें भाजपा के प्रदेश संगठन और विधायकों आदि को शामिल करके प्रदेश में कोरोना की आपदा से निपटने के उपायों पर काम शुरू किया गया। इस कार्यबल के पास विधिसम्मत क्या-क्या अधिकार हैं, अभी इसके बारे में विस्तार से किसी ने बताया नहीं है। बहरहाल, इस अभिनव कार्यबल ने काम करना शुरू कर दिया है। अब काम भी देख लीजिए।

एक काम छिंदवाड़ा में वेंटिलेटर की खरीद में हुए जबर्दस्त घोटाले का है। दूसरा काम भूखों व जरूरतमंदों को दिये जा रहे 10 किलो के आटा के पैकेट में महज 6-7 किलो आटा का पाया जाना है। अभी इन छोटे-छोटे चिरकुट से घोटालों को सरकार के पूर्ववर्ती समृद्ध इतिहास से जोड़कर ने देखें जहां डंपर, व्यापमं आदि चर्चा में रहे। इससे सरकार के सामर्थ्य पर ख़ाह मख़ाह शक पैदा होता है।  

एक नयी बेमिसाल कवायद भोपाल में शुरू हुई, हालांकि इसे तत्काल रोक दिया गया। यह कवायद थी कोरोना पीड़ितों का पता लगाने के लिए बड़े पैमाने पर सर्वे करने की। अब इसमें अभिनव बात ये थी कि ये सर्वे तमाम स्कूलों में पदस्थ शिक्षकों द्वारा किया जाना तय हुआ। तत्संबंधी आदेश भी निकाल दिये गए।

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आज से पहले तक शिवराज जी अकेले ही तो सरकार थे। वो क्या-क्या करते। दिन में चार बार कपड़े बदलकर और उसी की मैचिंग के मास्क लगाकर प्रदेशवासियों को संबोधित करना ऐसे भी कोई कम दुष्कर काम है क्या!

उन्होंने सोचा होगा कि सर्वे के काम में तो मास्टर बड़े माहिर होते हैं। स्कूल बंद हैं आजकल तो चलो यहीं जोत दिया जाये। जनगणना, निर्वाचन सूची, मतगणना, पशुगणना, स्वच्छ भारत अभियान में कोई खुले में शौच न करे उसके लिए सुबह सुबह सीटी बजाना, लोटे वगैरह की ज़ब्ती करवाना, ये सब तो वे करते ही रहे हैं। क्यों न इन्हीं से कोरोना के मरीजों का सर्वे भी करवा लिया जाये। सो, आदेश हुआ।

सोशल मीडिया में कहा जाने लगा कि ये तो अनर्थ हो जाएगा! अरे भाई, ये जनगणना नहीं है, इसमें मास्टरों को भी न्यूनतम मेडिकल प्रोफेशनल का प्रशिक्षण देना होगा। उनके भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा। और फिर उन्हें भी पीपीई की ज़रूरत होगी। यहां अफसरों ने भी काबिलियत से काम लिया। एक कंबल सबको ओढ़ा दिया। जिन शिक्षकों की ड्यूटी लगायी गयी उनमें कई शिक्षक विशेष रूप से सक्षम हैं, कुछ तो दृष्टिबाधित भी हैं जिन्हें कम से कम इस आदर्श सूची से बाहर रखना चाहिए था।

पर वो अफसर ही क्या और और वो सरकार ही क्या जो अपनी कलम का रौब गाफिल न करे। तो खैर। करीब 1300 शिक्षकों/शिक्षिकाओं को फिलहाल इस फरमान से आज़ादी मिल गयी है। ये आदेश भोपाल के कलेक्टर एवं दंडाधिकारी तरुण पिथोड़े की दिमाग से उपजा था। फिलहाल भोपाल शहर की नाज़ुक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस आदेश को स्थगित कर दिया गया है।

अभी-अभी एक और खबर आयी है। कोरोना जैसी विकट महामारी से निपटने के लिए मध्य प्रदेश की अभिनव सरकार ने एक और मुस्तैदी भरा दूरदर्शी कदम उठाया है। प्रदेश की साहित्यिक व सांस्कृतिक अकादमियों के तमाम निदेशकों को तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है। गोया इन्हें तत्काल हटाये बिना कोरोना से जान बचाने की मुहिम में बड़ा अवरोध पैदा हो रहा था।

अकादमी निदेशकों की बरखास्तगी का आदेश, साभार आवेश तिवारी

गौरतलब है कि इन निदेशकों की नियुक्ति नहीं होती, मनोनयन होते है यानी मनोनीत किए जाते हैं। इन अकादमियों में आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी, उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी, साहित्य अकादमी, सिन्धी साहित्य अकादमी और मराठी साहित्य अकादमी के पूर्व सरकार द्वारा मनोनीत निदेशकों के मनोनयन निरस्त कर दिये गये हैं।

इस मामले में राजगढ़ जिले के कलक्टर नीरज सिंह नायाब साबित हुए हैं, जिन्होंने 20 अप्रैल की शाम 4 बजे सिविल सर्जन के दफ्तर में आयोजित कोरोना समीक्षा बैठक में डॉक्टरों को इतना कोसा कि सभी सरकारी डॉक्टरों ने सामूहिक रूयप से काम बंद कर दिया और इस सम्बंध में लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को कामबंदी का पत्र लिखकर भेज दिया।

“तुम्हें कुछ नहीं आता”, “तुम मूर्ख हो”, “तुम्हें डिग्री किसने दी है”, “तेरी प्रशासनिक व्यवस्था निकम्मी है”, जैसे अपशब्दों से आरोप लगाकर कलक्टर ने सरकारी चिकित्सकों का मनोबल तोड़ दिया। घंटे भर बाद ही शाम पांच बजे से पूरे जिले में चिकित्सकों ने कामबंदी का फैसला ले लिया।

कोरोना के खिलाफ मुहिम में शिवराज सरकार और उनके अफ़सरों के ये अभिनव प्रयोग लगता है मील का पत्थर साबित होंगे। संभव है कि इन प्रयोगों और राज्य सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों से मानव मात्र के शत्रु कोरोना को वश में कर लिया जावे और पूरी दुनिया इस सरकार का अनुसरण करे। तब यह भी होगा कि मेरे प्यारे प्रदेश पर कोई उंगली न उठा पाएगा।  


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