बात बोलेगी: हिंदू थक कर सो गया है तब तो ये हाल है, जागेगा तो क्या होगा डाक साब?


देवशयनी एकादशी के बारे में पता नहीं आज की युवा पीढ़ी कितना जानती है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस खास तिथि के बाद भारतभूमि पर पाये जाने वाले हिंदुओं के समस्त देवता सोने चले जाते हैं। फिर एक खास तिथि जिसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है, उस रोज़ सभी देवता भरपूर नींद करके उठ जाते हैं। जब सो रहे होते हैं तब कोई शुभ काम नहीं किया जाता। जब उठ जाते हैं तो एक-एक दिन में कई-कई शुभ काम निपटा दिये जाते हैं। कह सकते हैं कि हिन्दू देवताओं के सोने और जागने के लिहाज से शुभ व अशुभ काम करने का कैलेंडर भी तय होता है।

इसी देश में अन्य धर्मों को मानने वालों को ये सहूलियत नहीं है। चर्च रोज़ खुलते हैं, मस्जिदें, दरगाहें, गिरजाघर सब रोज़ खुलते हैं, लोग रोज़ वहां जाते हैं, शुभ काम रोज़ होते हैं। अन्य तरह से कहें तो अन्य धर्मावलंबियों के देवता और देवियां भी उनके साथ रोज़ रहते हैं। वे हर रोज़ उन पर नज़र रखते हैं। उन्हें इस बात का एहसास दिलाये रहते हैं कि- खबरदार अगर कुछ ऐसा वैसा किया, हम जाग रहे हैं, तुम्हें देख रहे हैं। अब इसका सटीक आंकड़ा तो नहीं है लेकिन क़ायदे से भारत सरकार को एक मंत्रालय गठित करना चाहिए जिसमें उन दिनों के शुभ-अशुभ कर्मों का लेखाजोखा हो जब हिन्दू देवता सो रहे हों और जाग रहे हों।

जिन दिनों देवता आराम फरमा रहे होते हैं उन दिनों देश समाज का काम-काज भारत सरकार या चुनी हुई सरकारों के पास स्वत: आ जाता है। इसके विपरीत जिन दिनों देवता जागृत अवस्था में होते हैं, उन दिनों में राज व्यवस्था चाहे तो सो सकती है, चाहे तो जागते हुए भी बिना कुछ किए रह सकती है। इसे शासन पद्धति का ऐसा नमूना कहा जा सकता है जहां हिंदुओं को यह सुविधा है कि एक सरकार चुनकर भी उन्हें दो-दो सरकारों का मज़ा मिलता है। कायदे से इस व्यवस्था को बाकी देशों को भी अपनाना चाहिए। गवर्नेंस का ऐसा मॉडल विकसित करने वाला यह अनोखा और अनुपम देश है। प्राचीन काल में इतना कुछ दिया है दुनिया को, क्या अभी हम ये मॉडल भी नहीं दे सकते? ज़रूर दे सकते हैं।

यह जानते हुए भी कि आंकड़ों के मामले में मौजूदा सरकार बहुत तंगहाथ है और उसका भरोसा भी नहीं है कि किसी मामले के आंकड़े जुटाये जाएं। ये भी है कि आंकड़े धर्मनिरपेक्ष होते हैं क्योंकि वैज्ञानिकता से सम्पन्न होते हैं, हालांकि झूठ के तीन सार्वजनिक प्रकारों में एक प्रकार आंकड़े भी बताए गए हैं फिर भी दुनिया भर में आंकड़े जुटाये जाने का चलन है और इससे दुनिया तरक्की भी कर रही है।

खुद भारत की सरकारें भी 2014 से पहले तक आंकड़े जुटाती रही हैं और यकीन किया जाना चाहिए कि इस कवायद से भारत की सेहत पर कोई प्रतिकूल असर तो नहीं ही हुआ होगा। 2014 के बाद एक वक़्त ज़रूर ऐसा आया जब देश के एक विशिष्ट संस्थान सांख्यि‍की आयोग के एक सांख्यि‍कीविद ने यह कहते हुए अपना इस्तीफा दिया कि ये सरकार इस विधा पर यकीन नहीं करती बल्कि उसमें मनमाफिक छेड़छाड़ ज़रूर करती है।

बात ज़रा इधर-उधर हो गयी। मुद्दा ये है कि इस तरफ लोगों का ध्यान प्राय: नहीं जाता बल्कि लोग भर दिन लौकिक व्याधियों पर चकल्‍लस करते रहते हैं। पेट्रोल की कीमतें बढ़ गईं, गैस सिलेन्डर उछल रहा है, चाय पीना मुश्किल हुआ जा रहा है। कारण, चाय की कीमतों में अभूतपूर्व इज़ाफ़ा हो रहा है। इस इजाफ़े से भी लोग किसी तरह निपट लेते पर जब से प्रमं के मुखारविंद से सुना कि चाय की पत्ती पर खतरा मंडरा रहा है और कुछ लोग हैं जो चाय की छवि खराब करना चाहते हैं तब से लोग चाय के हर कप को इस तरह खाली कर रहे हैं जैसे यह आखिरी कप हो और इसके बाद चाय नष्टप्राय होने जा रही है। देशविरोधी ताक़तें अब भारतीय मानस के एक अनिवार्य घटक चाय से उसे महरूम करने वाली हैं। लोग कई वजहों से हलकान हुए जा रहे हैं और इससे दुनिया में फैलने वाले प्रकाश की प्रखरता में गुणात्मक कमी महसूस की जा रही है।

इस परिस्थिति का सटीक आकलन देश के सबसे बड़े संगठन के प्रमुख और परोक्ष रूप से दोनों ही सत्ताओं के स्वघोषित-स्वपोषित नेता डॉ. मोहन भागवत ने हाल ही में किया और उस स्थिति के बारे में एक हिंट जैसी दी कि ‘अभी देश का हिन्दू थक गया है, वह सो गया है, जब जागेगा तो पूरी दुनिया में रोशनी लुटाएगा’। उन्होंने यह नहीं कहा कि देश का देवता सो गया है, लेकिन देवताओं के सोने जागने से जब हिन्दू हृदय और मानस शुभाशुभ कार्यों का निर्धारण करता है तो यह माना जाना चाहिए कि देश का हिन्दू शायद इसलिए सो गया है क्योंकि उसके देवता सोये पड़े हैं। जब मालिक सोता है तो उसके बंदों को भी ये सहूलियत मिल ही जाती है कि थोड़ा कोताही काम में बरत लें। क़ायदे से अब हिंदुओं को जगाने वालों को एक साथ देवों को जगाने का अभियान भी ज़ोर शोर से चलाना चाहिए।

तिथियों के मुताबिक अभी देवउठनी एकादशी के बाद की ऋतु चल रही है। जुलाई उपरांत देवताओं को सोने भेजा जाएगा, लेकिन जिस तरह से देश भर में गली-गली चंदा उगाही अभियान ज़ोर पकड़ रहा है उससे यह तो साबित हो ही रहा है कि देवता सोया पड़ा है जिसे अपने घर-बार की चिंता नहीं है। तब भी जबकि ज़मीन समतलीकरण का काम सेवकों ने कर दिया, कोर्ट ने ज़मीन की मिल्कियत भी दिला दी लेकिन इस सब से बेपरवाह देवता तब भी सोये पड़े हैं जबकि ये उनका जागने और जागे रहने का समयकाल है। ऐसे में फिर से भक्तों को ही उनके घर बांधने की चिंता करना पड़े तो इसे क्या माना जाये? जागते हुए भी सोया पड़ा देवता? और इस सब कवायद में हिन्दू का थकना स्वाभाविक है।

यानी जब देवता जागृत अवस्था में होकर भी सोने का अभिनय करे, बेपरवाही दिखलाए खुद अपने घर बांधने को लेकर, तो यह काम भी हिंदुओं के मत्थे आ जाता है और यह कितना थकाऊ काम है समझ रहे हैं न? भिखारियों तक से भीख मांगना, जिसने चन्दा दिया उसके नाम की रसीद काटना, जिसने नहीं दिया उसके घर की निशानदेही करना, चंदे के लिए जबरन मुल्लों से जय श्री राम कहलवाना, खुद भी ज़ोर शोर से नारे लागाना और नारे भी क्या- एक जैसे! 1992 से अब तक एक जैसे नारे। हिन्दू थकेगा नहीं तो क्या करेगा? कुछ और नहीं कर सकते तो कम से कम नारे ही कुछ नए बना लो। एक नारा पिछले साल इन्हीं दिनों ईजाद हुआ था लेकिन अब उसमें भी वो धार नहीं बची।

डॉ. साहब की चिंता समझ में आती है, लेकिन उसका निदान वो किससे मांग रहे हैं यह समझ नहीं आया, हालांकि उन्होंने देश का ध्यान इस महान तथ्य की तरफ दिलाया है कि यह देश दो-दो महान सत्ताओं के संरक्षण में मानवाधिकारों से सम्पन्न जम्हूरियत के मज़े लेता आ रहा है।

दिल्ली में हर रोज़ होने वाले अनेक कार्यक्रमों में से किसी एक कार्यक्रम में उन्होंने यह बात कही कि अभी हिन्दू थक गया है, सो गया है, जब जागेगा तो दुनिया को पुन: रोशनी दिखलाएगा। बात में वज़न लाने के लिए उन्होंने महात्मा गांधी को उद्धृत किया, हालांकि गांधी को उद्धृत करते समय उन्हें गांधी की उस बात को कहना पड़ा जो उन्होंने कभी कही भी नहीं। गांधी को जानने वाले यह जानते हैं कि किसी भी सूरत में गांधी के बयान को तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता क्योंकि गांधी के भाष्यकारों ने भी कभी ऐसी चेष्टा नहीं की कि उनकी कही, बोली या लिखी बात पर हिन्दू धर्मग्रन्थों के भाष्यों की तरह कोई क्षेपक जोड़े जा सकते हैं। इसकी वजह शायद यह है कि गांधी कभी भी अपने बोले, कहे या लिखे हुए में कुछ भी जोड़े जाने की गुंजाइश नहीं छोडते थे। एक वैश्विक नेता बनाने में जनसंवाद की जिस शैली की ज़रूरत होती है वह गांधी ने साधी थी। दुनिया जानती है कि गांधी ने कभी भी हिन्दुत्व शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। दुनिया को भी यह बात पता है कि गांधी का नाम लेकर और अपनी कही बात को उनका बताकर लोगों का भरोसा कही हुई बात में जगाया जा सकता है, इसलिए ये सहूलियत डॉ. साहब ने ले ली।

अब भी एक पेंच है और वो ये है और कल्पना के सहारे ही इसे समझा जा सकता है कि मान लो किसी रोज़ यह घोषणा हो ही गयी कि अब हिन्दू (हिन्दुत्व) जाग गया है, अपनी थकान उतार चुका है, भर नींद ले उठ गया है। उस दिन दुनिया के सूरज का रंग कैसा होगा? स्याह उजला? जैसा जलजला आने पर होता है? अनुमान लगाने को सब स्वतंत्र हैं। हाल ही में चमोली में ग्लेशियर्स के टूटने से जो धूसर प्रकाश का गुबार उठा था, क्या कुछ उस तरह तरह होगा उस दिन का सूरज? या जैसा 1992 में अयोध्या नामक एक प्राचीन बस्ती में एक पुरानी इमारत के ध्वंस के दौरान उठा मटमैला, रक्तरंजित केसरिया सा उजास? या फिर 2002 में उठी तलवारों पर पुता सांद्र रक्ताभ रंग?

डॉ. साहब के तसव्‍वुर में कोई तो रंग होगा ही इस धरती, उस सूरज का, जो उस रोज़ इस धरती पर खिलेगा जब देश का हिन्दू पूरी तरह जाग जाएगा। पता नहीं कैसा होगा वह उजाला और कैसा होगा वह सूरज? पूरी दुनिया उस रंग का सामना कैसे करेगी? हम तो बस दुनिया की खैरियत की दुआ मांगते हैं। कहते हैं समवेत प्रार्थना में बल होता है। आप भी हाथ उठाएँ और दुआ मांगें… कि हिंदू सोया ही रहे तो बेहतर।



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