पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) लद्दाख की जनता के न्यायोचित आंदोलनों पर हुई पुलिस बर्बरता की घोर निंदा करता है। दिनांक 24 सितम्बर 2025 को लद्दाख में पुलिस कारवाई में चार प्रदर्शनकारियों की मृत्यु और 50 से अधिक लोग घायल हुए। इसके अलावा, 70 से अधिक युवकों को गिरफ्तार किया गया। पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत गिरफ्तार कर जोधपुर जेल भेज दिया गया। सरकार का यह रवैया एक लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र को कमजोर करने जैसा है। इस घटना को क़ानून व्यवस्था कायम करने के लिए पुलिस की बर्बरता ही नहीं, बल्कि पिछले पाँच सालों में लद्दाख की जनता की उचित मांगों को लेकर चल रहे शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक संघर्ष के संदर्भ में देखने की भी आवश्यकता है।
सोनम वांगचुक ने इससे पहले भी अपनी मांगो को लेकर दो बार भूख हड़तालें की हैं — मार्च 2024 में 21 दिन; और, अक्टूबर 2024 में 16 दिन के लिए। उन्होंने 1 अक्टूबर 2024 को Leh Apex Body (LAB) और Kargil Democratic Alliance (KDA) के 150 साथियों के साथ दिल्ली मार्च किया था जिस दौरान उन्हें सिंधु बॉर्डर पर गिरफ्तार भी किया गया था।
लद्दाख की जनता की मांगें पूरी तरह लोकतांत्रिक अधिकारों से जुड़ी हैं। लद्दाख की जनता पूर्ण राज्य का दर्जा और विधानसभा की वापसी चाहती है, जो उसने 2019 में खो दी थी। लद्दाख की लगभग 97% आबादी आदिवासी समुदायों से आती है। ये समुदाय लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं।
छठी अनुसूची का दर्जा न दिए जाने से जनता में असंतोष है। विकास कार्य जैसे होटल, कैफे और अन्य परियोजनाएँ बाहरी कंपनियों द्वारा संचालित की जा रही हैं। लद्दाख अपनी आवश्यकता से अधिक बिजली का उत्पादन करता है, फिर भी 13 GW सौर परियोजना के लिए 80 वर्ग किलोमीटर जमीन पांग क्षेत्र में अधिग्रहित की गई है। दिनांक 21 मार्च 2023 को राज्यसभा में जानकारी दी गई कि पांग, देबिंग और खार्नाक में सौर, वायु और बैट्री ऊर्जा के लिए 250 वर्ग किलोमीटर जमीन अधिग्रहित की जाएगी। इसके अलावा, 2,070.2 MW बिजली उतपादन के लिए सात पनबिजली परियोजनाओं की भी बात कही जा रही है। बिलासपुर (हिमाचल) से लेह तक 490 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाने की योजना के लिए सर्वेक्षण का कार्य पूरा हो चुका है। सड़कों (750 वर्ग किलोमीटर), हवाई अड्डों (39 हेलिपैड), 29 नए पुल और अन्य निर्माण कार्यों को पर्यटन प्रोत्साहन के नाम पर आगे बढ़ाया जा रहा है। नुबरा घाटी में उच्च गुणवत्ता वाले यूरेनियम और दुर्लभ खनिज पदार्थों (रेयर अर्थ) के दोहन की परियोजना का भी मशविरा विचाराधीन है। ये सभी राष्ट्रीय योजनाएँ हैं अतः इनसे मुख्यतः लद्दाख के बाहर की कंपनियाँ ही लाभान्वित होंगीं। ये तमाम योजनाएँ लद्दाख के पर्वतीय इलाकों के लिए पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन संबंधी गंभीर खतरे का कारण बनने की आशंका रखती हैं।
वर्ष 2019 के बाद, लद्दाख में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ती रही है। जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा होने के कारण लद्दाख को जो सुविधाएँ हासिल थीं, वे अब पूरी तरह खत्म हो गई हैं। वर्ष 2021-22 में, स्नातक स्तर के युवाओं में बेरोज़गारी दर 16% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 26.5% के स्तर पर पहुँच गई, जो कि देश में बेरोजगारी दर की उच्चतम वृद्धि दर है। वर्ष 2019 से अब तक राजपत्रित अधिकारी स्तर की एक भी नौकरी लद्दाख के युवाओं को प्राप्त नहीं हुई है। एक तरफ बाहरी कंपनियों द्वारा स्थानीय भूमि, जल और खनिज संसाधनों का दोहन किया जा रहा है; और, दूसरी तरफ स्थानीय युवाओं को रोजगार तक मुहैय्या नहीं हो पा रहा है।
वर्ष 2019 में लद्दाख को जब जम्मू और कश्मीर से अलग कर केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था, उसी समय से लद्दाख वासियों ने छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग पुरज़ोर ढंग से उठाई थी, जिसका केंद्र सरकार ने भरोसा भी दिया गया था। लगभग एक साल के इंतज़ार के बाद वहाँ की जनता ने People’s Movement for Sixth Schedule for Ladakh के बैनर तले अगस्त 2020 से अपनी मांगो को लेकर संघर्ष शुरू किया। सितंबर 2020 में विरोध प्रदर्शन के दौरान लद्दाख में संपूर्ण हड़ताल और अक्टूबर 2020 में होने वाली Local Development Council (LAHDC Leh) के चुनाव के बहिष्कार का भी ऐलान किया गया। इस संदर्भ में उनकी गृह मंत्री अमित शाह से पहली बैठक 27 सितम्बर 2020 को संपन्न हुई, जिसमें भाषाई, सांस्कृतिक, भूमि और रोजगार संबंधी मुद्दों पर सकारात्मक रूप से विचार करने का आश्वासन दिया गया। गृह मंत्री के इस आश्वासन के बाद चुनाव बहिष्कार वापस ले लिया गया।
इसके 26 माह बाद, 3 जनवरी 2023 को आयोजित बैठक में लद्दाख के लिए हाई पावर कमिटी (HPC) का गठन किया गया। इसकी पहली बैठक 4 दिसम्बर 2023 को संपन्न हुई। HPC में स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में 95% आरक्षण और महिलाओं के लिए एक–तिहाई आरक्षण की मांग की गई। साथ ही भोटी और उर्दू को राज्य भाषा का दर्जा देने की मांग भी पटल पर रखी गई। तत्पश्चात फरवरी 2024 में एक सब-कमिटी का गठन कर लद्दाख की सांस्कृतिक और भाषाई सुरक्षा, भूमि और रोजगार संरक्षण, LAHDCs का सशक्तिकरण और संवैधानिक सुरक्षा पर चर्चा की शुरुआत हुई। हुई। इस सब-कमिटी में लद्दाख की जनता का पक्ष रखने के लिए छ: प्रतिनिधियों (Leh Apex Body (LAB) और Kargil Democratic Alliance (KDA) के तीन–तीन प्रतिनिधियों) को शामिल किया गया। इस कमिटी की पहली बैठक में प्रस्तुत मांगो पर खुलकर विचार-विमर्श हुआ और उन्हें काफी हद तक मानने का आश्वासन भी मिला। परंतु मार्च 2024 में संपन्न हुई दूसरी बैठक पूर्ण रूप से असफल रही और लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को पूरी से अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद से लद्दाख क्षेत्र में संघर्ष में तीव्रता देखने को मिली। इसमें सोनम वांगचुक और अन्य 150 नुमाइंदों की दिल्ली पद यात्रा भी शामिल है। इसके बाद भी HPC की और भी बैठके हुईं जिसका कोई खास निष्कर्ष नहीं निकला। नतीजतन, सोनम वांगचुक की अगुवाई में एक पूर्णत: अहिंसक आमरण अनशन की शुरुआत हुई।
दिनांक 24 सितम्बर को घटित हिंसा से एक पखवाड़ा पहले से आंदोलनकारी अनशन पर बैठे थे। आंदोलनकारियों की तबीयत बिगड़ने के बावजूद सरकार का जवाब गोलीबारी और दमन का रहा, जो कि संवैधानिक अधिकारों का सरासर उल्लंघन है।
लद्दाख की जनता ने हमेशा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक विविधता का उदाहरण प्रस्तुत किया है। सोनम वांगचुक के नेतृत्व में Leh Apex Body और Kargil Democratic Alliance ने पर्यावरण संरक्षण और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा शांतिपूर्ण आंदोलन और अनशन का रास्ता इख़्तियार किया है। इसके बावजूद, उनकी मांगों की लगातार अनदेखी की गई और उन्हें गिरफ्तार कर लोकतांत्रिक असहमति के स्वरों को दबाने का प्रयास किया गया।
हम सरकार और प्रशासन से मांग करते हैं :
- पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक पर NSA हटाया जाए और उन्हें तथा अन्य गिरफ्तार आंदोलनकारियों को तुरंत बिना शर्त रिहा किया जाए।
- पीड़ित परिवारों को तत्काल सहायता और उचित मुआवज़ा दिया जाए।
- लद्दाख में हुए दमन की निष्पक्ष और त्वरित जाँच कर दोषियों को सख्त सज़ा दी जाए।
- स्थानीय जनता की लंबे समय से चली आ रही सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय मांगों को गंभीरता से सुना जाए और हल किया जाए।
- लद्दाख में तुरन्त इंटरनेट बहाल किया जाए ।
परमजीत सिंह , हरीश धवन
(सचिव, PUDR)