मध्य प्रदेश की सरकार ने महेश्वर पावर प्रोजेक्ट के साथ बिजली खरीद का समझौता रद्द कर दिया है। इसके कारण 42,000 करोड़ के सावर्जनिक धन की बचत होगी। इसे सरकार ने जनहित के विरुद्ध माना है। इसके साथ ही एस्क्रो अनुबंध और पुनर्वास अनुबंध भी रद्द कर दिया गया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने इसे महेश्वर परियोजना से प्रभावित लोगों की जीत कहा है जो पिछले 23 साल से एनबीए के बैनर तले इस परियोजना के खिलाफ़ लड़ रहे थे।
बीते 18 अप्रैल को सरकारी कंपनी मध्य प्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड ने प्रोजेक्ट के प्रमोटर महेश्वर हाइडेल पावर कंपनी को अनुबंध रद्दीकरण का निर्देश जारी कर दिया। बिजली खरीद का अनुबंध 1994 में हुआ था। महेश्वर हाइडेल कंपनी एस. कुमार समूह की है।
आदेश में कहा गया है कि महेश्वर से बिजली खरीद की दर 18 रुपया प्रति यूनिट है जो व्यावहारिक नहीं है। एस्क्रो और पुनर्वास के अनुबंध 21 और 21 अप्रैल को आए आदेशों के तहत रद्द कर दिए गए हैं।
Termination-order-18.04.2020कुल 400 मेगावाट की महेश्वर परियोजना खरगौन जिले में नर्मदा नदी पर बनी है। इसके बांध से 61 गांव डूब में आ गए थे। नर्मदा घाटी में बने या प्रस्तावित कुल 30 बड़े बांधों में एक महेश्वर है। इसे 1994 में निजीकरण के बाद एस. कुमार को सौंप दिया गया था। पिछले 23 साल से इस बांध के विनाशक प्रभावों के खिलाफ़ लड़ रहे थे।
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने काफी पहले कहा था कि इस बांध से आने वाली बिजली बहुत महंगी होगी और काफी कम होगी। आंदोलन ने कुछ करोड़ की वित्तीय अनियमितताओं को भी उजागर किया था। एनबीए का आकलन था कि इस परियोजना से सीधे तौर पर 60,000 लोगों की आजीविका पर असर पड़ेगा। इसके खिलाफ तमाम धरने प्रदर्शन भी हुए और राज्य सरकार व कंपनी की ओर से सैकड़ों फर्जी मुकदमे व गिरफ्तारियां भी चलीं।
Order-dated-21.04.2020एनबीए ने प्रभावित लोगों के साथ मिलकर पुनर्वास और डूब के मसले पर हाइकोर्ट में और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की थी। ध्यान देने वाली बात है कि आज भी 23 बरस बाद 85 फीसद से ज्यादा पुनर्वास का काम नहीं हो सका है।