हम निम्नलिखित अकादमिक, पत्रकार और सरोकार रखने वाले नागरिक, नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी द्वारा किये जा रहे अकादमिकों एवं एक्टिविस्टों की प्रताडना और गिरफ्तारी के नये दौर के सिलसिले की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हैं, जो उन्हें भीमा कोरेगांव मामले में फंसाना चाहती है।
पार्थसारथी रॉय के बाद एनआइए ने अब प्रोफेसर सत्यनारायण और वरिष्ठ पत्रकार केवी कुरमनाथ को 9 सितम्बर के दिन अपने यहां आने के लिए समन भेजा है। समन भेजे जाने का मामला अभी जारी ही था कि एनआइए ने कबीर कला मंच के सागर गोरखे और रमेश गायचोर को इसी मामले में गिरफ्तार किया है।
प्रोफेसर सत्यनारायण हैदराबाद के इंग्लिश एण्ड फॉरेन लैंग्वेजेज़ युनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ कल्चरल स्टडीज में प्रोफेसर हैं। दलित अध्ययन को एक अकादमिक अनुशासन के तौर पर स्थापित करने में उनका अहम योगदान रहा है और एक विद्वान एवं अध्यापक के तौर पर उनकी काफी शोहरत है।
अपने दोस्तों को भेजे सन्देश में, जिसमें उन्होंने इस ख़बर को साझा किया, प्रोफेसर सत्यनारायण ने कहा है कि ‘’मुझे अपराध दंड संहिता की धारा 160 तथा धारा 91 के तहत एनआइए के समक्ष एक गवाह के तौर पर बुलाया गया है। मेरे साढू के वी कुरमानाथ, जो एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, उन्हें भी उसी समय और तारीख़ पर बुलाया गया है।’’
उन्हें कथित तौर पर अपने बयान दर्ज करने के लिए बुलाया गया है लेकिन यह स्पष्ट है कि इसका मकसद उन्हें तथा केवी कुरमानाथ को विवश करना है ताकि वह ऐसे बयान दें जो एक तरह से उनके ससुर, क्रांतिकारी कवि, वरवरा राव को अपराध में उलझा दें।
वरवरा राव के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने के बहाने जब अगस्त 2018 में उनके फ्लैट पर पुणे पुलिस ने छापा डाला था तब उन्होंने साफ-साफ बताया था कि वह किसी भी तरह से भीमा कोरेगांव मामले से जुड़े नहीं रहे हैं।
अपने दोस्तों को भेजे सन्देश में सत्यनारायण ने रेखांकित किया है कि एनआइए का यह नोटिस उनके परिवार की चिन्ताओं को और गहरा करती है जबकि वरवरा राव का अपना स्वास्थ्य ठीक नहीं है और महामारी मुंबई में फैल रही है। वरवरा राव के स्वास्थ्य की ख़राब स्थिति के बारे में मीडिया में भी चिन्ताजनक रिपोर्टें आयी हैं।
के. सत्यनारायण और केवी कुरमानाथ को प्रताडि़त करने और कबीर कला मंच के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने की इन सभी कोशिशों को हम एक असुरक्षित हुकूमत द्वारा विद्वानों, पत्रकारों और सरोकार रखने वाले नागरिकों की असहमति रखने वाली तथा आलोचनात्मक आवाज़ों के दमन के तौर पर देखते हैं ताकि हर किस्म की जनतांत्रिक आकांक्षाओं को कुंद किया जाए। हम यह दोहराना चाहते हैं कि हम उनके साथ खड़े हैं और उनके जैसी आलोचनात्मक आवाज़ों को समर्थन देते रहेंगे, भले ही हमें खामोश करने की कोशिशें जारी हों।
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