सीएए विरोधी आंदोलन में महिलाओं की गिरफ्तारी के खिलाफ़ 1100 नारीवादियों का संयुक्त बयान


दिल्ली में हो रहे महिला प्रदर्शनकारियों और कार्यकर्ताओं पर पुलिस कार्रवाई के खिलाफ आवाज़ उठाओ |

सभी जाति ,धर्म, वर्ग,यौनिकता,सामर्थ्य की 1100 नारीवादी महिलाओं का एकजुट बयान

दिल्ली के उत्तर पूर्व ज़िले में हुई हिंसा को CAA-NRC-NPR के खिलाफ चल रहे आंदोलन पर मढ़ने की कोशिशों को रोको! झूठे बयान को नकारो !

मुस्लिम महिला कार्यकर्ताओं को कॉविड 19 लॉकडाउन के बहाने से निशाना बनाना बंद करो!

• राष्ट्र के अंतर चेतना के रखवालों के साथ खड़े हो!

• शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई के बजाय हिंसा उकसाने वालों और वास्तविक अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई!

3 मई, 2020: हम, हस्ताक्षरकर्ता, दिल्ली पुलिस द्वारा मुस्लिम महिलाओं, छात्रों और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ अन्य नागरिकों, जिन्होंने वर्तमान सत्तारूढ़ वितरण के असंवैधानिक कदमों के खिलाफ आवाज़ उठाई है, उनपर किए गए धमकियों, हमलों और गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करते हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कॉविड 19 लॉकडाउन के बाद से लगभग 800 CAA विरोधी-प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है या गिरफ्तार किया गया है. इसके कारण उनके पास वकीलों और कानूनी सहायता तक नहीं पहुंच पा रही है, और उनके परिवारों को उनके ठिकाने की कोई जानकारी भी नहीं दी गयी है। लॉकडाउन के इस मुश्किल वक़्त मे भी गृह मंत्रालय के सीधे आदेशों और छूट के तहत ही दिल्ली पुलिस ने इन गिरफ़्तारियों को अंजाम दिया है, जिसमें मीडिया रिपोर्ट और कवरेज, सार्वजनिक और कानूनी जांच की प्रावधानों का पुरज़ोर उल्लंघन किया जा रहा है !

हम नारीवादी और लोकतान्त्रिक नागरिक इस शांतिपूर्ण और संवैधानिक सीएए-एनआरसी-एनपीआर (CAA-NRC-NPR) विरोधी आंदोलन को जिस गलत तरीके से दर्शाया जा रहा है, आंदोलन के प्रतिनिधित्व कर रही महिलाओं का जो प्रणालीगत दमन हो रहा है उसकी निंदा और विरोध करते हैं | देश भर में मुस्लिम महिलाओं ने इतने प्रभावशाली रूप से इस आंदोलन का नेतृत्व किया, इन विरोध प्रदर्शनों में भारी संख्या में अपने घरों- मुहल्लों से निकलकर इन महिलाओं ने प्रतिरोध की एक ऐसी लहर चलायी जो सामाजिक संरचनाओं और ढाँचों को पलटते हुए एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य में नागरिकता के सवाल को पुनर्निर्मित और पुरज़ोर तरीके से स्थापित कर गया – यह एक महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक आंदोलन रहा है। दिल्ली में ही, शाहीन बाग़ की औरतों से लेकर जामिया, हौज़ रानी, जामा मस्जिद, सुंदर नगरी, निजामुद्दीन, सीलमपुर आदि की औरतों के शानदार नेतृत्व में उनके द्वारा गठित एकजुटता ने दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया और सत्ता वर्ग की नींव को भी हिलाकर रख दिया! ये याद रखना चाहिये कि इस आंदोलन के पहले तक सरकार का रवय्या ये था मानो वो ‘ट्रिपल तलाक़’ का दमन झेल रही “पीड़ित ” मुस्लमान औरतों को बचने वाले योद्धा हैं, उनके रखवाले हैं! लेकिन इस आंदोलन में आगे आकर इन महिलाओं ने खुद को इतनी स्पष्टता, और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ संगठित किया कि इस झूठ की भी नींव हिलाकर रख दी!

25 साल की गुलफिशा (GULFISHA),एक ऐसी ही युवा मुस्लिम महिला है, जो सीलमपुर में सीएए (CAA) के विरोध में हुए आंदोलन में एक लीडर बनकर उभरी। एक एमबीए (MBA) छात्र गुलफ़िशा को कथित तौर पर 9 अप्रैल को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया है, लेकिन आज तक इसके बारे में पूरी खबर बाहर नहीं आयी है। वह अपने परिवार या वकील से भी ठीक से बात नहीं कर पा रही और देशद्रोह के झूठे आरोपों के तहत लगभग एक महीने से न्यायिक हिरासत में है। देश में चल रहे लॉकडाउन ने जेल में मुलाकात को भी असंभव बना दिया है, और संचार का कोई वैकल्पिक साधन जैसे टेलीफ़ोनिक संपर्क भी बनाना मुश्किल हो गया है. उसका और बाकी प्रदर्शनकारी जो हिरासत में हैं उनका हाल चाल और उनकी स्थिति जानने का कोई साधन नहीं है। सीलमपुर के कई पुरुषों, जिन्हें कथित तौर पर पुलिस ने गुलफिशा के साथ उसी समय उठाया था, उनकी स्थिति भी कुछ ऐसी ही है, और उनके सही ठिकाने की भी कोई खबर नहीं है।

जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी (JCC) की सदस्य, 30 साल की सफूरा ज़रगर (SAFOORA ZARGAR) को तीन महीने की गर्भवती होने के बावजूद गिरफ्तार किया गया है – ऐसे वक़्त में जेलों की भीड़भाड़ दुनिया भर में एक बड़ी चिंता बन चुकी है। खुरेजी विरोध में सक्रिय पूर्व नगर पार्षद, इशरत जहान (ISHRAT JAHAN) अब एक महीने से अधिक समय से जेल में हैं, और हिरासत में यातनाएं का सामना कर रही हैं | उनके सह-अभियुक्त, खालिद सैफ़ी पुलिस हिरासत से बाहर आते वक़्त,अपने दोनों पैरों के साथ-साथ दो अंगुलियाँ पर पट्टी के साथ दिखाई दिए जो क्रूर यातना का साफ़ संकेत दे रहे थे। हमारे पास गुलफिशा, सफूरा, इशरत और उनके जैसे अन्य लोगों के अधिकारों और सुरक्षा के लिए डरने के कई कारण हैं: महिलाओं के रूप में, अंडरट्रायल कैदियों के रूप में, और उन लोगों के रूप मे, जिनके खिलाफ UAPA का आरोप लगाया गया है।

इनके अलावा और भी छात्र कार्यकर्ताओं को झूठे आरोप लगाकर जेल भेजा गया है, जिनमें मीरन हैदर (प्रेजिडेंट, रा.ज.द. छात्र दाल, दिल्ली), शरजील इमाम (जे.न.युछात्र), शिफ़ा-उर-रहमान (प्रेजिडेंट, जामिआ एलुमनाई एसोसिएशन) शामिल हैं. यूनाइटेड अगेंस्ट हेट से जुड़े डॉ. उमर खालिद पर भी UAPA जैसे आरोप लगाकर उनपर देश के सामने सवालिया निशान खड़ा कर दिया है. और केवल इतना ही नहीं, अब दिल्ली पुलिस ने बेशर्मी से साड़ी हदें पार कर के दिल्ली माइनॉरिटीज कमिशन के चेयरमैन ज़फरुल इस्लाम खान पर सेडिशन जैसा संगीन, बेमतलब और दमनकारी आरोप हैं!  

हमें याद रखना चाहिए कि शाहीन बाग से प्रेरित होकर देश भर में 200 से अधिक जगहों पर मुस्लिम महिलाओं के नेतृत्व में धरने-प्रदर्शन किए गए थे। सावित्री बाई, फातिमा शेख, बाबासाहेब अम्बेडकर की तसवीरें , पेंटिंग और आर्टके ज़रिए प्रतिरोध, संविधान के प्रस्तावना को पढ़ते हुए, कविताओं के ज़रिये पढ़ना और संवैधानिक मूल्यों और सांप्रदायिक सद्भाव को कायम रखने वाले नारे लगाना, यह अधिकारों और प्रतिरोधों का जबरदस्त और पुरज़ोर दावा था, जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर खड़ी महिलाओं के लिए संभावना पैदा कर रहा था। मुक्ति, न्याय, समानता और गरिमा के एक नए राष्ट्र की कल्पना कर रहा था। इसके जवाब में, हिंदुत्ववादी संगठनोंके प्रमुख बलों ने, इन सभाओं पर कई हमलों को अंजाम देना शुरू कर दिया था, जिसका समापन उत्तर-पूर्वी दिल्ली में मुस्लिमों को चिन्हित कर एक पूर्व-नियोजित सांप्रदायिक पोग्रोम (हिंसा) के रूप में हुआ।

महिलाओं के साथ किसी भी तरह की बातचीत करने से मना करती हुई सरकार ने उन्हें कुचलने की कोशिश कर मर्दवादी प्रतिक्रिया को चुना | इस प्रतिक्रिया का संदेश स्पष्ट है- जो लोग इसकी फासीवादी, पितृसत्तात्मक, सांप्रदायिक, वर्गवादी और जातिवादी प्रकृति को चुनौती दें, उन्हें कठोरतम राज्य प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। कई सीएए विरोधियों को विरोध स्थलों, जामिया और अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र कार्यकर्ताओं के प्रति अनगिनत निंदाओं, पूछताछ और धमकी, इस बात की गवाही देते हैं कि राज्य कैसे महामारी सहित सभी चीजों का उपयोग कर फायदा उठा रहा है. जिसमें सिर्फ एक गुलफिशा या सफूरा को ही चुप नहीं किया जा रहा , बल्कि उन सभी मुस्लिम महिलाओं को चेतावनी दी जा रही हैजो अपनी आवाज़ बुलंद करने की हिम्मत करती हैं। पुलिस और मीडिया में ये बार बार बोला जा चूका है कि इन महिलाओं ने प्रोटेस्ट करके भीड़ को उकसाया और इसलिए हिंसा की ज़िम्मेदारी उनकी ही है, लेकिन दरअसल तो भारत में अल्पसंख्यक समुदायों का होना ही आज उकसाने का प्रतीत माना जाता है!उनका सवाल करना और सोचना ही एक बड़ी मुसीबत माना जाता है, और ज़ाहिर ही है, आज़ादी के गीत गाकर विरोध करना ही अपने मे उकसाना हो गया है।

इसमें आश्चर्य होकर भी आश्चर्य नहीं की तथ्यों से बिलकुल परे बयान आ रहे हैंकि ‘महिलाओं द्वारा शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन ही उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा का कारण था’! यह पुलिस द्वारा प्रचारित किया गया और मीडिया केकुछ वर्गों द्वारा फैलाया गया जिससे हिंसा के स्पष्ट राजनैतिक स्वरूप को जान बूझकर बदलने के लिए कुछ निहित स्वार्थों, सुरक्षा बलों की मिलीभगत और भागीदारी के साथ किया गया। पुलिस के‘वास्तविक अपराधियों का पता लगाने’ वाले दावे के बावजूदअभी तक अल्पसंख्यक समुदाय पर हुयी इस हिंसा की संगठित और पूर्वनियोजित प्रकृति और प्रभावित समुदायों के बीच नुकसान और मौतों में बड़े फ़र्क और विषमता का अभी तक कोई हिसाब तो दूर उस पर एक भी बयान नहीं है। भाजपा के दक्षिणपंथी नेता जैसे कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर जिन्होंने खुलेआम हिंसा की धमकी दी, उनकेनाम पर एकएफआईआर तक दर्ज नहीं की गयी है। जिन्होंने विरोध प्रदर्शन सभाओंके ऊपर गोली चलाई, वो जमानत पर बाहर हैं। हिंसा को भड़काने के लिए लाए गये ‘शहर-के बाहरी’ लोगों पर जांच रिपोर्ट अभी तक एक सवाल का विषय है।

इन सब के बाद, जिस समुदाय ने इस सांप्रदायिक हिंसा को सबसे ज़्यादा झेला, जिसमे शांतिपूर्ण महिला प्रदर्शनकारियों और पुरुष हैं, उन्हें ही झूठे मीडिया प्रचार के माध्यम से ‘आक्रामक’ ठहराकर पेश किया जा रहाहै। मुस्लिमों को उठाकर उनका ही उत्पीड़न किया जा रहा है जो हिंसा में घायल हुए । एफआईआर, गिरफ्तारी और हिरासत की कुल संख्या पर भी अब तक कोई स्पष्टता नहीं है। मुस्लिम महिलाओं और अन्य कार्यकर्ता जिन्होनें एकसाथ साझी नागरिकता और नारीवादी एकजुटता के साथ काम किया, उन्हें भी सोची समझी नियत के तहत टारगेट किया जा रहा है। मीडिया की रिपोर्ट है कि पिछले कुछ दिनों में, पुलिस ने AISA कार्यकर्ता कंवलप्रीत कौर और पिंजरा तोड़ कीकुछ कार्यकर्ताओं के फोन जब्त कर लिए हैं। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में सक्रिय रहीं महिला छात्रों के साथ हो रहे चिंताजनक दमन के बारे में अब बयान सामने आ रहे हैं। इस तरह की ज़मीनी हक़ीक़त को संज्ञान में लेते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में 27 अप्रैल को, दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया कि वह गिरफ्तारियों और बंदियों के संबंध में डी.के. बसु के दिशानिर्देशों का पालन करे।

आने वाले दौर में, राज्य द्वारा किए गए ये हमले सिर्फ एक समुदाय के सदस्यों की तुलना में कहीं अधिक लोगों को प्रभावित करेंगे। एनआरसी (NRC) परियोजना की तरह, इस तरह के कदम सभी धर्मों के ग़रीब और वंचित वर्गोंउनके अधिकारों से वंचित करेंगे | कोविद -19 महामारी से निपटने के बजाय मुसलमानों को आतंकित करने पर ध्यान केंद्रित करने से लाखों लोगों के जीवन की रक्षा और उनके कल्याण के प्रति सरकार की गहरी उपेक्षा का साफ़ पता चलता है। देश भर में प्रताड़ित होने वाले गरीब ही हैं, जिनमें से कई दरअसल ‘बहुसंख्यक’ समुदाय से भी हैं जिनको बचाने के लिए ही सरकार इतने झूठ गढ़ रही है!

हम दिसंबर से फरवरी तक देश भर में जीवंत एंटी-सीएए(CAA) विरोध के जज़्बे को हम याद करते हैं, उससे आशा और प्रेरणा लेते हैं। हमें याद है जब पुलिस ने पुस्तकालयों में आंसू गैस के गोले दागे थे और बेरहमी से शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों और छात्रों पर लाठीचार्ज किया था, ये वही पुलिस थी और है जो मूकदर्शक बनी बंदूकधारियों को गोलियां चलाने दी| लेकिन इस हिंसा और दमन के सामने भी शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारी हिंदुत्व प्रॉजेक्ट के खिलाफ अपने दृढ़ संकल्प में मजबूत और निडर रहे। ये ही वो लोग हैं जो इस समाज के विवेक और चेतना के रखवाले हैं, और हम उन्हें सलाम करते हैं! राज्य के कार्यों से ही पता चलता है कि वह इस तरह की आवाजों से कितना डरता है, और सच्चाई एवं न्याय के गतिविधियों को खत्म करने में कितना आगे जाएगा। हम मुस्लिम महिलाओं और कार्यकर्ताओं, छात्रों और अन्य कार्यकर्ताओं के साथ एकजुट खड़े हैं, जिन्होंने शांति के लिए एक साथ काम किया है | हम राज्य, पुलिस, मीडिया और निहित स्वार्थों द्वारा उन्हें कटघरे में खड़े करने की हर कोशिश को नाकाम करेंगे।

हमारी माँगे:

दिल्ली पुलिस तुरंत अपनी कानूनी स्थिति के साथ सभी एफआईआर, गिरफ्तारी, हिरासत को सार्वजनिक करे और हिंसा की सभी घटनाओं की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करे |

शांतिपूर्ण सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ झूठे मामलों को हटा जाए, और बढ़ा चढ़ाकर लगाए गये आरोपों में गिरफ्तार किए गये सभी को तुरंत रिहा किया जाए |

दिल्ली की उत्तर पूर्वी इलाक़े में हिंसा के असली दोषियों को बुक किया जाए, जिसमें कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा और अन्य लोग शामिल हैं जिन्होंने हिंसा भड़काई, फैलाई और 3 दिनों तक बनी रहने दी।

जो विरोध करने के लिए लोकतांत्रिक अधिकार को अपनाते हैं उनका विरोध, धमकी और उत्पीड़न, बंद करो|

शीर्ष अदालत के आदेशों के अनुसार जेलों को डी-कंजेस्ट किया जाए और सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाए|

• UAPA और सेडिशन कानून को निरस्त करो |

इस दमनकारी शासन के लिए, हम फिर से, बार बार कहते हैं:

इस खुले झूठ को, जेहन की लूट को, मैं नहीं मानती, मैं नहीं जानती!

……………

तोड़ तोड़ के बंधनो को देखो बहनें आती हैं!

आएंगी ज़ुल्म मिटाएंगी, वो तो नया ज़माना लाएंगी!  


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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2 Comments on “सीएए विरोधी आंदोलन में महिलाओं की गिरफ्तारी के खिलाफ़ 1100 नारीवादियों का संयुक्त बयान”

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