प्रशांत भूषण पर अवमानना के केस के खिलाफ जजों, वकीलों, बौद्धिकों, पत्रकारों का साझा बयान


सौ से ज्‍यादा बुद्धिजीवियो ने वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता प्रशांत भूषण के समर्थन में एक साझा वक्‍तव्‍य जारी किया है। इस वक्‍तव्‍य में उनके दो ट्वीट के चलते सुप्रीम कोर्ट द्वारा चलाये जा रहे आपराधिक अवमानना के मुकदमे की आलोचना की गयी है।

वकीलों, एक्‍टिविस्‍टों, लेखकों, पत्रकारों सहित इस वक्‍तव्‍य को जारी करने में दो सेवानिवृत्‍त जजों के भी नाम हैं। एक हैं जस्टिस मदन लोकुर और दूसरे हैं जस्टिस एपी शाह।

वक्‍तव्‍य कहता है:

“पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकारी अतिवाद और राज्‍य द्वारा जनता के मूलभूत अधिकारों के हनन पर निगरानी रखने की संविधान प्रदत्‍त अनिवार्य भूमिका को निभाने में सुप्रीम कोर्ट के संकोच को लेकर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। समाज के सभी तबकों ने ये सवाल उठाये हैं, मीडिया ने, अकादमिकों ने, नागरिक समाज संगठनों और यहां तक कि कानूनी बिरादरी के सदस्‍यों व सेवारत व रिटायर्ड जजों ने भी। हाल ही में लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के संकट पर समयबद्ध तरीके से दखल देने में सुप्रीम कोर्ट की हीलाहवाली भी जनता की निगाह में रही है। कोविड महामारी के पांच महीने बीत जाने के बाद भी भौतिक रूप में, भले ही सीमित संख्‍या में, सुनवाई दोबारा बहाल न किये जाने को लेकर भी चिंताएं जतायी गयी हैं।

सुप्रीम कोर्ट जैसी एक महत्‍वपूर्ण संस्‍था को जनता के विमर्शों के लिए खुला होना चाहिए बिना किसी भय या कोर्ट की अवमानना के। वास्‍तव में, ज्‍यादातर सक्रिय जनतंत्रों में, जैसे अमेरिका और ब्रिटेन में, कोर्ट की अवमानना को एक अपराध के तौर पर अब अप्रासंगिक माना जा चुका है।“

इसके आगे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला है जो न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स बनाम एलबी सुलिवन के मामले में आया था, जिसमें कहा गया था कि न्‍यायिक अधिकारियों की प्रतिष्‍ठा और सम्‍मान के चलते उसकी आलोचना को आपराधिक नहीं ठहराया जा सकता और यह बात तब भी वैध होगी जब आलोचना या वक्‍तव्‍य अर्ध-सत्‍य होगा या गलत सूचना।   

बयान में मरहूम वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता विनोद ए, बोबडे के एक कथन का भी संदर्भ है जिसमें उन्‍होंने कहा था क‍ि हम एक ऐसी स्थिति को गवारा नहीं कर सकते जहां नागरिक कोर्ट के बाहर या भीतर हमेशा कोर्ट की अवमानना के भय में रहें।

वक्‍तव्‍य के अंत में कहा गया है न्‍याय और निष्‍पक्षता के हक में सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्‍ठा को कायम रखने के लिए हम सभी हस्‍ताक्षरकर्ता कोर्ट से अनुरोध करते हैं कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे और प्रशांत भूषण के खिलाफ स्‍वत: संज्ञान लेकर शुरू की गयी आपराधिक अवमानना की कार्यवाही को जल्‍द से जल्‍द वापस ले।    

पूरा वक्तव्य और हस्ताक्षरकर्ताओं की सूची नीचे देखी जा सकती है।

Solidarity_statement_July_2020


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