किसान आंदोलन की जीत अनेक जनांदोलनों को जीवित रखने की ऊर्जा दे गयी: IPTA


भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की राष्ट्रीय समिति की दो दिवसीय बैठक 4 से 5 दिसम्बर 2021 को देस भगत यादगार हॉल, जालंधर, पंजाब में सम्पन्न हुई। इस बैठक में प्रमुख रूप से चार मुद्दों पर चर्चा की गई – आज़ादी की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ पर विभिन्न इकाइयों द्वारा देशव्यापी सांस्कृतिक यात्रा, इप्टा का समग्र दस्तावेज़ीकरण, अगला राष्ट्रीय अधिवेशन तथा नए सांस्कृतिक नेतृत्व को विकसित करने के लिए एक केन्द्रीय टीम बनाने के लिए केन्द्रीय कार्यशाला की योजना बनाना। बैठक के साथ ही सत्यजित रे, साहिर लुधियानवी, तेरा सिंह चन्न, संतोष सिंह धीर तथा अमृत राय के जन्मशताब्दी के अवसर पर इन महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक व्यक्तित्वों पर चर्चा भी आयोजित की गई।

4 दिसम्बर की शाम सत्यजित रे और साहिर लुधियानवी को समर्पित रही तथा 5 दिसम्बर की सुबह का सत्र अमृत राय, तेरा सिंह चन्न तथा संतोष सिंह धीर की जन्मशताब्दी को समर्पित रहा। इसके अलावा पंजाब इप्टा के कलाकारों द्वारा 4 दिसम्बर को सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की गई। कार्यसूची के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रीय समिति के पदाधिकारी एवं सदस्य तथा विशेष आमंत्रित युवा साथी इकट्ठा हुए थे।

बैठक की शुरुआत करते हुए राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने कहा कि पंजाब के ज़िक्र के साथ किसान आंदोलन की चर्चा अनिवार्य है। इप्टा प्रारम्भ से ही किसान आंदोलन और उनकी मांगों के समर्थन में खड़ी रही और कुछ माह पहले इप्टा के एक सांस्कृतिक जत्थे ने दिल्ली की बॉर्डर पर जाकर उनमें जोश जगाने का काम भी किया और उनके संघर्ष में अपनी भी आवाज़ शामिल की। इप्टा के मंच से किसानों को जनवादी आंदोलन में मिली उनकी जीत पर बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि यह जीत तमाम मेहनतकश जनता की ऐतिहासिक जीत है। इसमें मुख्य भागीदारी गरीब-मँझोले किसानों की रही है। यह जीत उन तमाम शहीदों को श्रद्धांजलि है, जो इस आंदोलन के दौरान अपनी ज़िंदगियाँ क़ुर्बान कर गए हैं। यह जीत जनता की कुर्बानियों, मेहनत, दृढ़ता तथा अनुशासन का नतीजा है। यह हार फासीवादी हुकूमत, देश के बड़े पूंजीपति वर्ग, इस आंदोलन के खि़लाफ़ किसी-न-किसी रूप में सक्रिय तमाम ताक़तों की हार है, जो इस जनांदोलन की हार के सपने देखती रही है।

उन्होंने बैठक के पहले मुद्दे पर सबके सुझावों और विचारों को आमंत्रित किया। उन्होंने कहा कि हमने भारत की आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर 75 दिनों की एक सांस्कृतिक यात्रा का प्रस्ताव रखा है। इस यात्रा का नाम ‘ढाई आखर प्रेम का’ रखने की योजना है। यह यात्रा अलग-अलग राज्य-इकाइयों और समानधर्मा संस्थाओं, संगठनों और व्यक्तियों के सहयोग से चरणबद्ध और सुनियोजित तरीके से किया जाना प्रस्तावित है। इसका प्रारम्भ छत्तीसगढ़ से होकर झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश होते हुए दिल्ली में समापन करने की योजना है। इसे अंतिम रूप दिया जाना अभी बाकी है।

यह प्रस्ताव मुख्य रूप से दो उद्देश्यों के तहत रखा जा रहा है। पहला उद्देश्य यह है कि भारत सरकार द्वारा आयोजित किये जा रहे ‘अमृत महोत्सव’ में देश की साँझी संस्कृति को भूलकर गांधी के बरक्स गोडसे और सावरकर की विचारधारा को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। वे 1947 में मिली आज़ादी को भीख में माँगी हुई कहकर वीर शहीदों का अपमान कर रहे हैं। उनके द्वारा असली आज़ादी 2014 के बाद मिलने की बात की जा रही है। ऐसे में इप्टा का यह दायित्व है कि वह जनता से संवाद करते हुए उनकी पोल खोले। दूसरा उद्देश्य यह है कि इसी क्रम में हम अपनी विभिन्न इकाइयों को सक्रिय करके जन-संवाद करें तथा नए स्थानों पर भी इप्टा की इकाइयाँ विकसित करने की संभावना तलाश करें।

महासचिव के इस प्रस्ताव पर साथियों ने बहुत उत्साह और विस्तार के साथ अपने विचार व्यक्त किये। सबसे पहले प्रस्ताव का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य छत्तीसगढ़ के साथी राजेश श्रीवास्तव ने बताया कि हमने यात्रा शुरु होने के पूर्व रायपुर में एक सप्ताह की केन्द्रीय कार्यशाला रखने का निर्णय लिया है जिसमें विभिन्न इकाइयों के साथी हिस्सा लेंगे। यात्रा रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, अंबिकापुर होते हुए झारखंड के पलामू तक जाएगी। चर्चा में हिस्सा लेते हुए आगरा की साथी ज्योत्स्ना रघुवंशी ने कहा कि इप्टा इस यात्रा को लीड करे, लेकिन समान विचारधारा वाले संगठनों जैसे, प्रलेस, जलेस या अन्य महिला एवं छात्र संगठनों को भी शामिल किया जाए। झारखंड के साथी उपेन्द्र मिश्रा ने कहा कि छत्तीसगढ़ के साथी हमारी इस यात्रा में कुछ और स्थानों तक हमारे साथ रहें ताकि इस आयोजन को संयुक्त कार्यक्रम के रूप में एक व्यापक रूप दिया जा सके। झारखंड में यह यात्रा पलामू, राँची, चाईबासा, घाटशिला, कोडरमा होते हुए नवादा में बिहार इप्टा को सौंपने का निर्णय लिया गया है।

बिहार इप्टा के साथी फिरोज अशरफ खान ने कहा कि यात्रा में हमें सांस्कृतिक स्वरूप का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यात्रा के विभिन्न पड़ावों में उस स्थान से जुड़े सांस्कृतिक चेहरों, ऐतिहासिक विरासतों, पहचानों अथवा प्रतीकों को विशेष रूप से सामने लाकर हमें आयोजन को खास पहचान देनी चाहिए। हमने कुछ स्थानों, जैसे चंपारण, जो महात्मा गांधी के सत्याग्रह से जुड़ा है; सीवान, जो डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जन्मभूमि है- जैसे कई स्थानों को चिन्हित किया है। बिहार में यह यात्रा दस दिनों तक चलेगी और इन दस दिनों में हम उन स्थानों पर इप्टा की इकाइयों को गठित करने का प्रयास करेंगे, जहाँ अभी कोई इकाई कार्यरत नहीं है। बिहार इप्टा के महासचिव तनवीर अख्तर ने इसमें जोड़ते हुए कहा कि हमने अपनी यात्रा में स्थानीय लोक-कलाकारों को भी जोड़ने का निर्णय लिया है ताकि इसका स्थानीय महत्त्व भी बना रहे।

उत्तर प्रदेश इप्टा के महासचिव तथा राष्ट्रीय सहसचिव मंडल सदस्य दिलीप रघुवंशी ने कहा कि हमने 8 से 10 दिनों की यात्रा करने की योजना बनायी है, जिसमें 20 से 25 इकाइयां शामिल होंगी। यह यात्रा वाराणसी, आजमगढ़, रायबरेली, कानपुर, मथुरा, उरई, झाँसी होते हुए छतरपुर मध्य प्रदेश तक किये जाने का निर्णय लिया गया है। मध्य प्रदेश इप्टा के अध्यक्ष हरिओम राजोरिया ने कहा कि मध्य प्रदेश में छतरपुर से यह यात्रा आरम्भ होगी। इसमें आगे की यात्रा की रूपरेखा तैयार की जा रही है। यात्रा में नुक्कड़ नाटक के साथ पोस्टर्स, गीत और विभिन्न पुस्तकों को प्रदर्शित किया जाएगा।

मध्य प्रदेश के साथी विनीत तिवारी ने कहा कि आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आजादी के आंदोलन में शामिल स्थानीय लोगों की कहानियों को केन्द्र में रखते हुए उन पर गीत, नाटक, डॉक्युमेंट्री, पोस्टर प्रदर्शनी आदि भी बनाना चाहिए ताकि यह सामने लाया जा सके कि किस तरह साधारण लोगों ने संघर्ष में असाधारण भागीदारी की। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि यात्रा की तैयारी के दौरान केन्द्रीय नेतृत्व से कम से कम एक सदस्य राज्यों में सुपरविजन के लिए भेजा जाना चाहिए जो यात्रा के उद्देश्यों के बारे में यात्रा के दल के सदस्यों को भलीभांति परिचित करवाये ताकि यात्रा में शामिल हर सदस्य इस अभियान के प्रवक्ता की तरह पेश आ सके।

सचिव मंडल सदस्य उषा आठले ने कहा कि यात्रा-कार्यक्रम के आर्थिक-प्रबंधन पर भी खुलकर बातचीत की जानी चाहिए। दिल्ली इप्टा के युवा साथी विनोद कोष्ठी ने कहा कि कार्यक्रम में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि हमारा ज़्यादा समय सफ़र में ही न बीते और प्रस्तुत किये जाने वाले कार्यक्रम की अवधि सीमित रह जाए। कार्यक्रम का आकार और समय ज़्यादा रहे ताकि अधिक से अधिक लोग जुड़ सकें। उड़ीसा इप्टा के साथी सुषांत दास ने कहा कि, हम भी उड़ीसा में कुछ करने की कोशिश करेंगे। यह योजना बहुत महत्त्वपूर्ण है मगर अभी जिस तरह का माहौल है, उसमें तथाकथित राष्ट्रवादियों के खतरे से भी सावधान रहना होगा। राज्यसभा सदस्य और केरल के प्रतिनिधि कॉमरेड बिनय विस्वम ने कहा कि इस यात्रा में इप्टा के पुराने लोगों को भी याद करना चाहिए। हमें अपनी ताक़त और कमज़ोरियों का मूल्यांकन करते हुए इस आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने पर बल देना होगा। उन्होंने मौजूदा फासीवादी ताक़तों के प्रभावों पर चिंता जाहिर करते हुए अपनी भूमिका तय करने की अपील की।

उत्तराखंड के साथी सतीश ने कहा कि हमें शहरों की अपेक्षा गाँवों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। हमने पांच दिन की यात्रा में 25 से अधिक गाँवों को जोड़ने का निर्णय लिया है। छत्तीसगढ़ इप्टा के अध्यक्ष मणिमय मुखर्जी ने कहा कि हमें इस बात पर केन्द्रित रहना है कि ‘अमृत महोत्सव’ का उद्देश्य साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देना है जबकि हमारा उद्देश्य साम्प्रदायिक सौहार्द स्थापित करना है। कर्नाटक इप्टा के प्रतिनिधि ने कहा कि हमने ट्रेन के माध्यम से यात्रा आरम्भ की है और अलग-अलग जगहों पर जाकर अपने नाटक, गीत-संगीत प्रस्तुत कर रहे हैं। चंडीगढ़ इप्टा के अध्यक्ष बलकार सिद्धू ने कहा कि चूँकि इप्टा पैरेलल रूप में यह यात्रा कर रही है, इसलिए इसके कार्यक्रमों का कंटेंट समसामयिक और प्रादेशिक भाषाओं में हो। पंजाब इप्टा के अध्यक्ष संजीवन सिंह ने अपील की कि इस यात्रा में गैर हिंदीभाषी प्रदेशों को भी शामिल किया जाए। साथ ही इप्टा को अन्य संगठनों को भी साथ लेकर चलना चाहिए। चंडीगढ़ के वरिष्ठ साथी के.एन. सिंह सेखों ने कहा कि उत्सवधर्मिता से बचना होगा। इसमें विचार धूमिल हो जाते हैं। आमंत्रित युवा साथियों में से बिहार से पियूष और नीरज, छत्तीसगढ़ से भरत निषाद ने भी अपनी बातें कहीं।

अध्यक्षता कर रही समिति के साथी हिमांशु राय ने कहा कि इस यात्रा को कई चरणों में करते हुए अखिल भारतीय स्तर तक ले जाना चाहिए। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अंजन श्रीवास्तव ने कहा कि यात्रा में इप्टा के नगाड़े को भी शामिल किया जाए। हरेक जगह अलग-अलग नाटक करना उचित होगा। कार्यक्रम की शुरुआत लोकगीत से की जाए।

इस व्यापक विमर्श के उपरांत राष्ट्रीय समिति द्वारा महासचिव के प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए निर्णय लिया गया कि सभी प्रतिभागी राज्य कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार कर समिति को अवगत कराएं। इसके लिए जनवरी 2022 में सात दिवसीय कार्यशाला आयोजित की जाए। आवश्यक तैयारी हेतु संकल्प-पत्र, नाटक, गीत और पोस्टर्स तैयार किये जाएं। 30 जनवरी और 23 मार्च को स्थानीय कार्यक्रम किये जाएं और यात्रा का प्रारम्भ 9 अप्रैल 2022 को राहुल सांकृत्यायन की जन्मतिथि से किया जाए। आर्थिक संसाधनों की तलाश राज्य इकाई अपने स्तर पर करे।

महासचिव राकेश ने इस मुद्दे पर चर्चा के अंत में यह भी जोड़ा कि इस सांस्कृतिक यात्रा का नाम ‘ढाई आखर प्रेम का’ रखा गया है। इसका अनुवाद अन्य भाषाओं में भी किया जा सकता है। इसकी मूल प्रस्तावना सबको भेजी जा चुकी है। अतः इसकी मूल भावना को बरकरार रखते हुए राज्य इकाइयाँ नाम जोड़ सकती हैं। पहले चरण में अप्रैल 2022 से हिंदीभाषी पाँच राज्यों में इस यात्रा की रूपरेखा तय की गई है। अन्य प्रदेश इकाइयाँ अपने-अपने प्रदेशों में सुविधानुसार यात्रा के कार्यक्रम बनाकर केन्द्रीय कार्यालय को सूचित करें।

कार्यसूची के दूसरे मुद्दे पर प्रस्ताव रखते हुए महासचिव ने कहा कि हमारी कोशिश है कि केन्द्रीय स्तर पर एक सांस्कृतिक टीम का गठन किया जाए जिसमें युवा साथियों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह है कि हमने आज तक बहुत सारे युवा कलाकारों के साथ काम किया है पर आज उनमें से ज़्यादातर लोगों ने फिल्मों और व्यावसायिक रंगमंच की तरफ अपना रूख कर लिया। ऐसी प्रवृत्ति इप्टा के आंदोलन को मजबूती प्रदान करने में बाधक साबित होती है। इसलिए सभी राज्यों से अपील है कि अपने राज्य के युवा साथियों को आगे लाएँ ताकि उनमें नेतृत्व-क्षमता की संभावनाओं की तलाश की जा सके जो कि आगे चलकर संगठन को मजबूती प्रदान कर सकें। हम पिछले कई सालों से महसूस करते आ रहे हैं कि हमारी बैठकों में वही पुराने चेहरे नज़र आते हैं जो कि संगठन की गतिशीलता के लिए सही नहीं है। मौजूदा बैठक में हमने कई युवा साथियों को भी आमंत्रित किया है ताकि वे संगठन की कार्य-प्रणाली को समझ सकें। उनसे अनुरोध है कि वे एक साथ अलग बैठकर आपस में चर्चा करते हुए एक युवा महोत्सव की रूपरेखा तय करके राष्ट्रीय समिति के सामने रखे।

बिहार इप्टा के महासचिव तनवीर अख्तर ने इस प्रस्ताव पर कहा कि हमने युवा साथियों को आगे लाने का कार्य बहुत पहले से प्रारम्भ कर दिया है। परिणामस्वरूप हमने कई युवा साथियों में सांगठनिक क्षमता और वैचारिक अभिव्यक्ति को प्रकट करने का साहस पैदा किया है। वर्तमान समय में कला की बारीकियों के साथ-साथ विचारधारा का समावेश किया जाना भी अति आवश्यक है। राष्ट्रीय समिति ने महासचिव के इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अनुमोदित करते हुए आमंत्रित युवा साथी विनोद, वर्षा, अनुरन दिल्ली, अर्पिता झारखंड, भरत, गोर्की छत्तीसगढ़, दीपक जालंधर, पीयूष, नीरज बिहार को अधिकृत किया कि वे इस संदर्भ में आगे की कार्यवाही करते हुए समिति को अवगत करावें। युवा साथियों ने आयोजन-स्थल पर लगातार बैठक करते हुए काफी विचार-विमर्श किया, जिसके आधार पर झारखंड इप्टा के पदाधिकारियों की सहमति से जून 2022 में झारखंड में युवाओं पर केन्द्रित एक कार्यशाला या इसी तरह का कोई कार्यक्रम करने का निर्णय लिया गया।

कार्यसूची के तीसरे मुद्दे पर बात शुरु करते हुए महासचिव राकेश ने कहा कि स्थापना वर्ष 1943 से आज तक हमारा सफर कई मुकाम हासिल कर चुका है। हमने वह दौर भी देखा है, जब इप्टा की गतिविधियाँ 1960 के बाद केन्द्रीय नेतृत्व के अभाव के कारण कुछ शिथिल पड़ीं। 1985 में इप्टा का पुनर्गठन किया गया। तब से लेकर आज तक यह सफर जारी है। आज हमें पीछे मुड़कर अपनी विरासत को सम्हालने की भी ज़रूरत है। हमारा प्रस्ताव है कि सभी राज्य-इकाइयाँ इप्टा का दस्तावेज़ तैयार करें, जिसमें वे राज्य की विभिन्न इकाइयों के लिखित इतिहास के साथ-साथ, व्यक्तिगत अनुभवों, उपलब्धियों, सामग्रियों, शख्सियतों और महत्त्वपूर्ण घटनाओं का संग्रह तैयार करें। केन्द्रीय नेतृत्व भी इस दिशा में काम करना आरम्भ कर चुका है। हम कई स्तरों पर काम करने जा रहे हैं। इसके लिए केन्द्रीय स्तर पर एक टीम का गठन किया गया है, उसी तरह राज्य इकाइयाँ भी गठन कर लें।

श्री तनवीर अख्तर ने अपने राज्य में इस काम की प्रगति के बारे में बताया कि भारत की आज़ादी को 75 साल पूरे होने के साथ-साथ बिहार इप्टा भी अपनी स्थापना के 75 साल पूरे कर रही है। हमने अपने दस्तावेज़ीकरण का कार्य आरम्भ कर दिया है। हमने सभी इकाइयों को निर्देश दिया है कि वे अपनी-अपनी संबंधित इकाई के इतिहास का संग्रह करें, जिसमें मौलिक नाटक, गीत आदि का संकलन भी शामिल हो। साथ ही उन्होंने एक अन्य महत्त्वपूर्ण सुझाव दिया कि सभी इकाइयों को अपने राज्य और केन्द्र से प्राप्त होने वाले सर्कुलर्स को हार्ड कॉपी में संरक्षित कर लेना चाहिए ताकि हम तदनुरूप कार्य कर सकें और इनका भी दस्तावेज़ीकरण सुनिश्चित हो सके। आगरा इप्टा की साथी भावना रघुवंशी ने कहा कि हमने साथी जितेन्द्र रघुवंशी और राजेन्द्र रघुवंशी द्वारा संग्रहित काफी पुरानी सामग्री को एक जगह सहेज लिया है। मैं महासचिव से अनुरोध करती हूँ कि वे किसी दिन आकर उन सामग्रियों में से दस्तावेज़ीकरण के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण चीज़ों का चयन कर उन्हें संरक्षित करने का प्रबंध कर लें, क्योंकि कुछ दस्तावेज़ बहुत नाज़ुक स्थिति में हैं। राष्ट्रीय समिति ने दस्तावेज़ीकरण के प्रस्ताव को अनुमोदित करते हुए कहा कि यह एक जटिल परंतु आवश्यक कार्य है। इसमें सभी राज्य इकाइयों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। समिति ने महासचिव से अनुरोध किया कि वे आगरा जाकर उन संरक्षित सामग्रियों की पड़ताल करें तथा दस्तावेज़ीकरण की उपयुक्त व्यवस्था करें। बिहार इप्टा के अनुभवों का लाभ उठाते हुए राज्य इकाइयाँ इस दिशा में आगे बढ़ सकती हैं।

कार्यसूची के चौथे मुद्दे पर राष्ट्रीय समिति द्वारा सुझाव दिया गया कि राष्ट्रीय सम्मेलन हमें किसी नए स्थान पर करना चाहिए ताकि इप्टा का विस्तार हो तथा इप्टा की जड़ें और गहरी तथा मजबूत हो सकें। इस क्रम में अगर पंजाब तैयार हो तो हम किसी निर्णय की स्थिति पर विचार कर सकते हैं। पंजाब इप्टा के साथियों ने आपसी विमर्श के उपरांत कहा कि अभी हम राष्ट्रीय सम्मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन करने की स्थिति में नहीं हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, जिसमें इप्टा का राज्य-स्तरीय निबंधन नहीं होना प्रमुख है। अतः हमें इसके लिए कुछ समय दिया जाए, हम इस सम्मेलन के बाद अगला सम्मेलन करने के लिए तैयारी की समीक्षा कर लेंगे। राष्ट्रीय समिति ने पंजाब इप्टा के प्रस्ताव को मानते हुए राष्ट्रीय सम्मेलन के स्थान और तिथि का निर्धारण अगली बैठक में करने का निर्णय लिया।

बैठक के अंतिम दौर में पंजाब के रंगकर्मी रणविजय सिंह ने अपनी पंजाबी कविता ‘आँसू तेरे’ में किसान आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में मौजूदा शासक वर्ग के बहुरूपी रवैये और फासीवादी कुटिलताओं को उजागर किया, जिसका उपस्थित सभी लोगों ने ताली बजाकर समर्थन किया।

अंत में राष्ट्रीय अध्यक्ष रणबीर सिंह ने कहा कि हमने एक पर्चा आप सभी को आरम्भ में ही वितरित किया है। इसका मकसद फासीवाद के चरित्र को उजागर करना है। आज चुनौतियाँ बड़ी हैं पर हमने कभी हार नहीं मानी है, अब भी नहीं मानेंगे। आज की इस बैठक में लिए गए निर्णयों पर हमें पूरी शिद्दत से कार्य करना होगा तभी हम मौजूदा चुनौतियों का डटकर मुकाबला कर सकते हैं। अध्यक्ष द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ प्रथम दिन की मीटिंग की कार्यवाही समाप्त हुई।

04 दिसम्बर की शाम तीसरे सत्र में प्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजित रे की जन्मशताब्दी के अवसर पर उनके द्वारा निर्देशित प्रेमचंद की कहानी पर आधारित फिल्म ‘सद्गति’ का प्रदर्शन किया गया। प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव विनीत तिवारी ने सत्यजित रे के फिल्म-निर्माण पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए कहा कि भले ही रे किसी भी तरह से इप्टा से जुड़े हुए न रहे हों लेकिन अपनी फिल्मों के लिए उन्होंने जिन कहानियों का चयन किया उससे उन पर उस व़क़्त दुनियाभर में जारी प्रगतिशील आंदोलन का असर साफ़ ज़ाहिर होता है। मक्सिम गोर्की के नाटक पर चेतन आनंद की बनायी फिल्म ‘नीचा नगर’ से वे गहरे प्रभावित थे और सत्यजित रे ने एक कार्यक्रम के लिए उन्हें अपने द्वारा चलाये जाने वाले फिल्म क्लब के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर कोलकाता आमंत्रित करने हेतु पत्र भी लिखा था। उनके समकालीन ऋत्विक घटक और मृणाल सेन भी इसी तरह प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन के साथ जुड़े थे। विनीत ने फिल्म ‘सद्गति’ के कला, फोटोग्राफी आदि पक्षों का भी संक्षेप में विवेचन किया।

साहिर लुधियानवी की जन्म शती पर राष्ट्रीय समिति के सहसचिव शैलेन्द्र कुमार ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपना रोचक वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, ‘‘हर कलाकार अपने युग की पैदाइश होता है। साहिर जिस युग में खड़े थे, वे उस युग को एड्रेस करते थे। इस लिहाज से देखें तो ‘परछाइयाँ’, ‘बंगाल का अकाल’ आदि उनकी सलाहियत का एक नमूना तो है ही, विचारशीलता का नमूना भी है। जहाँ तक कथ्य और शिल्प का मामला है, साहिर इस मामले में बहुत शानदार तरीके से सामने आते हैं। वे उन्नीस साल की उम्र में ‘ताजमहल’ जैसी रचना लिख देते हैं, 23-24 की उम्र आते-आते ‘परछाइयाँ’, ‘तल्खियाँ’ जैसी रचनाएँ सामने आने लगती हैं। इन रचनाओं के आधार पर जब साहिर का मूल्यांकन कीजिएगा, तो उनके समकालीनों में फैज़, जोश मलीहाबादी; पूर्ववर्तियों में मजाज़ मौजूद हैं, इनके बीच जगह बनाना साहिर के लिए आसान नहीं था; मगर साहिर ने जगह बनाई और अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता को कभी नहीं खोया। फिल्मी गीतों में भी ज़िंदगी के सवालों को उठाया। साहिर जैसे लोग हिंदी और उर्दू के बीच यात्रा करते हैं। आज हिंदी और उर्दू को दो भाषा बताकर कम्युनल कन्फ्लिक्ट का हिस्सा बनाया जा रहा है, जबकि उर्दू भारतीय संस्कृति की धरोहर हैं। तो इस संदर्भ में साहिर की बहुत सारी रचनाएँ देखें, जैसे ‘बाबुल की गलियाँ’ है या ‘मन दर्पण कहलाए’ जैसी रचनाएँ, जिनमें उर्दू के शब्द नहीं मिलेंगे, इस बात में उनका जो कमाल है, मास्टरी है, उसे मानना पड़ेगा। साहिर ने अपनी कलात्मकता के जोर से भारतीय संगीत को भी एक उँचाई देने की कोशिश की है। साहिर लिखते है, ‘मैं पल-दो पल का शायर हूँ और पल दो पल मेरी हस्ती है’ तो दूसरी ओर ये भी लिखते हैं ‘कल फिर आएंगे नगमों की खिलती कलियाँ चुनने वाले’ – वे एक ओर ज़िंदगी की भंगुरता का ज़िक्र करते हैं, तो जीवन की शाश्वतता का बखान भी करते हैं। साहिर ‘पल दो पल के शायर’ नहीं हैं। उन्होंने चकले का ज़िक्र भी किया है कि जो पूरब-पश्चिम की बातें करते हैं, उन्हें चकलाघर देख लेना चाहिए, उनका दिल काँप उठेगा। इस सांस्कृतिक दंभ की राजनीति में उनकी कविता ‘चकला’ को याद किया जा सकता है।   

इस अवसर पर विनीत तिवारी द्वारा संपादित मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की पत्रिका ‘प्रगतिशील वसुधा’ के 101वें अंक का, जानकी प्रसाद शर्मा संपादित ‘उद्भावना’ के साहिर लुधियानवी केन्द्रित विशेषांक का और प्रलेस-इप्टा की घाटशिला इकाई द्वारा साथी शेखर मलिक के संपादन में सांस्कृतिक महत्त्व की तारीखों तथा चित्रों-सूचनाओं से लैस एक खूबसूरत कैलेन्डर का भी विमोचन किया गया। इस मौके पर पत्रिका ‘उद्भावना’ के संपादक अजेय कुमार (दिल्ली) भी विशेष रूप से मौजूद थे। उन्होंने भी साहिर के बारे में अनेक दिलचस्प बातें साझा कीं।

इस सत्र के बाद अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। पंजाब इप्टा के कलाकारों द्वारा जनगीत, शास्त्रीय नृत्य, लोक-गीत-गायन, लोकवाद्य-वादन तथा नाटकों की प्रस्तुति की गई। जालंधर इप्टा ने नीरज कौशिक के निर्देशन में नाटक ‘शंखनाद’ तथा इप्टा फगवाड़ा ने गमनू बंसल निर्देशित तथा दविंदर कुमार लिखित नाटक ‘नृत्य से तांडव तक’ प्रस्तुत किये। भावना शर्मा ने कत्थक, इप्टा गुरुदासपुर की कमलजीत कौर ने पंजाबी गीत, इप्टा मोहाली की अलगोजा-वादक अनुरीत पाल कौर, लोकसाज बुगचू-वादक मनदीप, लोक गायक गगनदीप गग्गी, इप्टा कपूरथला की गायिकाओं अनमोल रूपोवाली, जास्मिन तथा ग्राम मोगा के गायकों ने पंजाब की सांस्कृतिक छटा बिखेरी। इस सत्र का संचालन इप्टा पंजाब के सचिव मंडल सदस्य विकी माहेश्वरी ने किया।

5 दिसम्बर को पहले सत्र में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणबीर सिंह, महासचिव राकेश, देस भगत यादगार हॉल कमेटी के सचिव गुरमित सिंह, इप्टा पंजाब के अध्यक्ष संजीवन सिंह, इप्टा चंडीगढ़ के अध्यक्ष बलकार सिद्धू की अध्यक्षता में अमृत राय के लेखन पर केन्द्रित आलेख का पठन इप्टा की राष्ट्रीय सचिव मंडल सदस्य उषा आठले ने किया। उन्होंने अमृत राय द्वारा लिखित उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध, संस्मरण, यात्रा-वृतांत तथा अनुवादों पर चर्चा करते हुए कहा कि, अमृत राय तत्कालीन जनहितैषी संस्कृति की उथलपुथल के गवाह रहे हैं और उन्होंने अपने सक्रिय हस्तक्षेप के माध्यम से अपनी प्रतिबद्धता को स्पष्ट किया था। ख़ासतौर पर उन्होंने सांस्कृतिक क्षेत्र में जिस साझा मोर्चे की ज़रूरत को रेखांकित किया था, उस पर आज फिर नये सिरे से गंभीरता से विचार की जरूरत है। इप्टा के संस्थापक सदस्यों में से एक तेरासिंह चन्न के योगदान को रेखांकित करते हुए नाटककार और आलोचक पटियाला के डॉ. कुलदीप सिंह ने कहा कि, जहाँ तेरासिंह चन्न ने इप्टा की जड़ें जमाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं उन्होंने चर्चित नाटक और ऑपेरा भी लिखे। संतोष सिंह धीर के योगदान पर चर्चा करते हुए डॉ. कुलदीप ने कहा कि धीर अपने समय के एक बहुत महत्त्वपूर्ण लेखक थे, जो सारी उम्र मज़दूर और शोषित वर्ग के हक में कलम चलाते रहे। इस मौके पर प्रगतिशील लेखक संघ की पंजाब इकाई के महासचिव शायर सुरजीत जज ने राजनीतिक व्यंग्य कविताएँ प्रस्तुत किये। इस सत्र का संचालन इप्टा जालंधर के उपाध्यक्ष गुरविंदर सिंह ने किया।

पहले दिन 04 दिसम्बर को पहले सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय अध्यक्ष रणबीर सिंह, उपाध्यक्ष अंजन श्रीवास्तव, तनवीर अख्तर, हिमांशु राय तथा कॉमरेड बिनय विश्वम के अध्यक्ष मंडल ने की। सत्र में सबसे पहले राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य फिरोज अशरफ खान ने शोक-प्रस्ताव रखा जिसमें इप्टा की ओर से सभी महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के निधन पर शोक व्यक्त किया गया। उनमें कुछ महत्त्वपूर्ण नाम हैं – इप्टा छत्तीसगढ़ के महासचिव, राष्ट्रीय समिति के सदस्य अजय आठले, राष्ट्रीय समिति के सदस्य संगीतकार अखिलेश दीक्षित, इप्टा की राष्ट्रीय समिति के पूर्व सदस्य सागर सरहदी, पंजाब इप्टा के संस्थापकों में से एक उमा गुरुबक्श सिंह तथा प्रख्यात रंगकर्मी गुरुचरण सिंह बोपाराई, पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पेरुम्पुड़ा गोपालकृष्णन, राष्ट्रीय समिति के सदस्य प्रजा नाट्य मंडली तेलंगाना के लेखक, कवि, संगीतकार एवं सुप्रसिद्ध गायक निसार, तमिलनाडु इप्टा के अध्यक्ष प्रख्यात लोक कलाकार कैलाश मूर्ति ‘अनाची’, सहारनपुर उत्तर प्रदेश इप्टा के अध्यक्ष शायर, रंगकर्मी सरदार अनवर, इप्टा की प्लेटिनम जुबली समारोह आयोजन समिति की कार्यकारी अध्यक्ष तथा सुप्रसिद्ध लेखिका, संस्कृतिकर्मी, शिक्षाविद डेजी नारायण, इप्टा पटना के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध लेखक और संस्कृतिकर्मी फणीश सिंह, पलामू झारखंड इप्टा के संस्थापक स्वतंत्रता सेनानी भुवनेश्वर प्रसाद बाजपेयी, असम इप्टा के अध्यक्ष नाटककार-फिल्मकार जीबन बोरा, असम इप्टा के उपाध्यक्ष पुष्पज्योति महंत, असम इप्टा से जुड़े फिल्म निर्देशक दारा अहमद,  राष्ट्रीय समिति के सदस्य तेलंगाना प्रजा नाट्य मंडली के सुप्रसिद्ध गायक-अभिनेता साथी जैकब तथा प्रमुख कवि, गायक वंगा पांडु प्रसाद, इप्टा एवं प्रलेस इंदौर के साथी श्रमिक नेता एस. के. दुबे, सुप्रसिद्ध मराठी कवि, लेखक, गायक, अभिनेता इप्टा नागपुर के वीरा साथीदार, इप्टा उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष मेरठ के सुप्रसिद्ध रंगकर्मी शांति वर्मा, इप्टा मेरठ से जुड़े कवि एवं रंगकर्मी धर्मजीत सरल, पटना इप्टा के वरिष्ठ साथी शैलेश्वर सती प्रसाद, इप्टा झारखंड के साथी उमेश नज़ीर, विवेचना जबलपुर के निर्देशक बसंत काशीकर, अविभाजित मध्य प्रदेश इप्टा के पूर्व महासचिव गायक, रंगकर्मी, पत्रकार आबिद अली, इप्टा गुना मध्य प्रदेश के संस्थापक  वरिष्ठ साथी राम लखन भट्ट,  राष्ट्रीय समिति के सदस्य मलयालम नाट्य-निर्देशक-अभिनेता टी.एस.संतोष कुमार, प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष उर्दू कवि-लेखक अली जावेद, प्रसिद्ध रंगकर्मी उषा गांगुली, बंसी कौल, मराठी लेखक-नाटककार रत्नाकर मत्करी, प्रख्यात रंगकर्मी, नाट्य-निर्देशक व चित्रकार इब्राहिम अल्काज़ी, नया थियेटर के जाने-माने अभिनेता दीपक तिवारी, सुप्रसिद्ध नाटककार-निर्देशक-फिल्मकार चंद्रमोहन बौंठियाल, अभिनेता दिलीप कुमार, सुप्रसिद्ध बंगला अभिनेता सौमित्र चटर्जी, अभिनेता ऋषि कपूर, प्रख्यात हिंदी लेखक-कवि एवं पत्रकार मंगलेश डबराल, प्रख्यात नृत्यांगना अमला शंकर, स्त्री-विमर्श एवं जन-आंदोलनों से जुड़ी इलीना सेन, प्रख्यात शायर राहत इंदौरी, शास्त्रीय गायक पंडित जसराज, मानवाधिकार कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश, कवि-कथाकार शाश्वत रतन, उर्दू लेखक-कवि शमीम हनफ़ी, उर्दू लेखिका आज़रा रिज़वी, प्रख्यात जन-इतिहासकार, लेखक, संस्कृतिकर्मी प्रो. लालबहादुर वर्मा, प्रख्यात रंगकर्मी गुरुचरण सिंह चन्नी, पर्यावरण-प्रहरी सुंदरलाल बहुगुणा, प्रख्यात लेखक-सांस्कृतिक पत्रकार राजकुमार केसवानी, कन्नड़ के कवि-नाटककार-दलित लेखक सिद्धलिंगैया, प्रसिद्ध पत्रकार विनोद दुआ, बांग्ला लेखक एवं संस्कृतिकर्मी संख घोष, आलोक रंजन दासगुप्ता, नवनीता देवसेन, देवेश रॉय, प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक बासु चटर्जी, अरूण सेन, सुधीर लाल चक्रवर्ती, चित्रकार विष्णु दास, सत्य गुहा, राणा चट्टोपाध्याय, लेखक-कवि गीतेश शर्मा, देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी एवं इस अवधि में दिवंगत हुए राजनेता, संस्कृतिकर्मी तथा नागरिक। इनके अलावा लखीमपुर खीरी हत्याकांड में शहीद किसानों और सिंघू बॉर्डर पर धार्मिक उन्माद तथा असहिष्णुता के कारण भीड़ की हिंसा और अन्य कारणों से मारे गए 700 किसानों की स्मृति में इप्टा की राष्ट्रीय समिति ने एक मिनट का मौन रखकर अपनी शोक-संवेदना व्यक्त की।

इस दो दिवसीय राष्ट्रीय समिति की बैठक के आयोजन को सफल बनाने में पंजाब इप्टा के साथी नीरज कौशिक, दीपक नाहर, एडवोकेट राजिंदर सिंह मंड, सरबजीत सिंह रूपोवाली, डॉक्टर भजन सिंह और कश्मीर बजरोर ने महत्त्वपूर्ण सहयोग किया। इस बैठक में पंजाब, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल, उत्तराखंड, कर्नाटक और जम्मू कश्मीर से प्रतिनिधियों ने शिरकत की। 


(यह रिपोर्ट उषा आठले, संजीवन और नीरज द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई है)


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