सोनभद्र के उम्भा गांव में आदिवासियों के हत्याकांड का एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर आज पूरे गांव को ही नजरबंद कर दिया गया है. लोगों को काम पर भी जाने नहीं दिया जा गया. इससे पहले गुरुवार को मृतकों के परिजनों ने शहीद आदिवासियों की तस्वीरों के साथ एक मार्च निकाला था जिसे प्रशासन ने भरसक रोका और उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।
मजदूर किसान मंच के जिला महासचिव और उम्भा गांव के निवासी राजेंद्र सिंह गोंड़ समेत ग्रामीणों के हस्ताक्षर से भेजे पत्र में डीएम से गांव में आतंक का राज खत्म करने की अपील की गयी है.
मंच द्वारा भेजे पत्र में गांव में जमीन के आवंटन में अपनायी गयी गैरकानूनी और दमनकारी प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा गया है कि उम्भा में जमीन का वितरण उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता और पंचायती राज अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत किया गया है. विधिक प्रक्रिया यह है कि गांव की भूमि प्रबंधन समिति द्वारा प्रस्ताव लेकर ही जमीन का पट्टा किया जाता है लेकिन इस विधिक प्रक्रिया को प्रशासन ने नहीं अपनाया और मनमाने ढंग से जमीन का आवंटन कर दिया.
हालत यह है कि मृतकों के परिवारों को भी खेती की जा रही जमीन से बेदखल कर पहाड़ और पठार की जमीनें पट्टा कर दी गयी हैं. जो लोग जमीन पर पुश्तैनी रूप से खेती कर रहे थे उन्हें बेदखल कर उसे दूसरे के नाम आवंटित कर दिया गया. इसका विरोध करने पर शांतिभंग के मुकदमे कायम किये जा रहे हैं और प्रशासन द्वारा लगातार लोगों को धमकी दी जा रही है. वहीं एक साल पहले मुख्यमंत्री के विद्यालय बनाने समेत तमाम वादे भी पूरे नहीं किए गए हैं.
ज़मीन आवंटन के मसले पर जनसंदेश टाइम्स अख़्बार में विजय विनीत ने आज विस्तार से स्टोरी की है जिसमें साल भर के भीतर हुए कथित इंसाफ़ की पोल खोली गयी है।
पूर्वांचल के सबसे पिछड़े इलाके सोनभद्र के उभ्भा गांव में पिछले साल 17 जुलाई को जिन 11 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, उनके साथ प्रशासन ने बड़ा फरेब किया है। आरोप है कि प्रशासन ने उन आदिवासियों की जमीन छीन ली है जो दशकों से उस पर खेती कर रहे थे। जिस जमीन को आदिवासियों ने खेती लायक बनाया उसे रिश्वत लेकर दूसरों को बांट दिया गया। प्रशासन ने बड़ी चालांकी से ग्रामीणों के बीच जो नफरत का बीज बोया है उससे “एक और नरसंहार की पटकथा तैयार हो गई है। जिला प्रशासन और राजस्व विभाग की मनमानी के चलते आदिवासियों में जबर्दस्त तनाव बढ़ गया है। अच्छी जमीन पाने के लिए लोग अब मरने-मारने पर उतारू हो गए है। हेराफेरी इस कदर की गई है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने उभ्भा गांव में जिन आदिवासियों को जमीनों के पट्टे बांटे थे, उनमें कई के नंबर बदल दिए गए। उभ्भा नरसंहार कांड में जान गंवाने वाले कई आदिवासी परिवारों से उनकी अच्छी जमीनें छीन ली गई और अब उन्हें पथरीली जमीन पर खेती करने के लिए विवश किया जा रहा है।
जनसंदेश की पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है।
ऐसी स्थिति में मजदूर किसान मंच ने गांव में आतंक का राज खत्म करने की मांग की है और प्रशासन से विधिक प्रक्रिया अपनाने की अपील की है ताकि प्रशासनिक प्रक्रिया के कारण गांव में व्याप्त तनाव समाप्त हो और शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक माहौल कायम हो सके.