बिहार चुनाव के पहले सत्ता पक्ष द्वारा लालू प्रसाद और उनके कार्यकाल को मुद्दा बनाया जा रहा है, तब उनके प्रतिनिधि संसदीय भाषणों की किताब द मार्जिनलाइज्ड प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुई है. अरुण नारायण द्वारा संपादित यह किताब मार्जिनलाइज्ड प्रकाशन की ‘भारत के राजनेता सीरीज’ के तहत प्रकाशित की गयी है.
इस शृंखला में अब तक राज्य सभा के पूर्व सांसद अली अनवर, केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले के प्रतिनिधि भाषणों की किताब प्रकाशित हो चुकी है और सीपीआई के महासचिव डी राजा और पूर्व केन्द्रीय मंत्री शरद यादव के भाषणों की किताब सितंबर, 2020 में पाठकों के बीच होगी. सीरीज संपादक संजीव चन्दन के अनुसार इस सीरीज की परिकल्पना ‘राजनेताओं की संसदीय भूमिका’ को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए की गयी है.
किताब में संग्रहित चारो सदनों (राज्य की विधानसभा और विधान परिषद) व (लोकसभा और राज्यसभा) के भाषणों के जरिये लालू प्रसाद की एक जननायक की छवि उभरती है. गरीबों और आम जनता की आवाज इन भाषणों में तो है ही साथ ही लोकतंत्र और संसदीय राजनीति के प्रति लालू प्रसाद की सच्ची निष्ठा का प्रतिबिंब इनमें है. आज 5 अगस्त को जब अयोध्या में राम के मंदिर की नीव प्रधानमंत्री रखने जा रहे हैं तो उसके मुहूर्त को लेकर एक पक्ष सवाल उठा रहा है. हिन्दू आम जनता की शब्दावली और मानस को पकड़ते हुए ऐसे ही सवाल 2002 के संसदीय भाषण में लालू प्रसाद ने उठाये थे. या फिर उनका वह भाषण जिसमें वे सवाल करते हैं कि जब किसी भी समय में किसी भी प्रकार के हिन्दू देवताओं की लड़ाई मुसलमान पैगम्बरों से नहीं हुई तो हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष क्यों?
लालू प्रसाद ब्यूरोक्रेसी की भूमिकाओं को सीमित करते हुए संसद की सर्वोच्चता के पक्षधर रहे हैं, इसके लिए उनके लोकपाल बिल और अन्ना आन्दोलन के भाषण देखे जा सकते हैं या 1998 का वह भाषण जिसमें वे राज्यपाल का पद समाप्त करने की मांग करते हैं. जिस महिला आरक्षण बिल को रोकने का आरोप लालू प्रसाद पर है उसपर बोलते हुए वे महिला आरक्षण को संसद में ‘कलावती’ (यवतमाल की विधवा किसान महिला ) जैसी महिलाओं के आने के लिए जरूरी बताते हैं. आरक्षण के भीतर आरक्षण के साथ.
इन भाषणों में लालू प्रसाद बिहार विधान सभा के नेता विपक्ष के रूप में उभरते संसदीय जनप्रतिनिधि से लेकर मुख्यमंत्री और रेलमंत्री के रूप में सीजंड जनप्रतिनिधि की तरह दीखते हैं. वे एक भाषण में सवाल करते हैं कि जहाँ-जहाँ रेलवे यार्ड हैं वहीं-वहीं प्राइवेट कारखाने क्यों हैं!
400 पन्ने की इस पेपरबैक किताब की कीमत है 450 रूपये.
भाषणों के कुछ उद्धरण:
विगत 14 मार्च को खरमास था। हिंदुइज्म के अनुसार खरमास में एक भी शुभ काम हम नहीं करते -ब्याह शादी,लेनदेन दुकान मकान कोई शुभ काम नहीं करते । 11 मार्च के बाद 11 अप्रैल को खरमास उतरना था 14 को हल्ला मचाया इन्होंने अयोध्या में क्या करने के लिए पत्थर दान करने के लिए। शीला दान करने के लिए। मैं जानना चाहता हूं आडवाणी जी से कि आप किस हिंदुत्व की बात करते हो हमारे धर्म में कहां लिखा हुआ है कि किसी देवी देवता के लिए पत्थर दान दिया जाता है सोना दान होता है,अशर्फी दान होती है पान मिठाई चीनी कसेली सब कुछ दान होता है । हमने नहीं सुना पत्थर दान होता है, लेकिन खरमास में पत्थर दान दिया गया भगवान को। आप लोग समझते हैं कि यह लोग अलग है। वीएचपी और इन सबके पेट एक जैसे हैं।
(राज्यसभा 2002)
आडवाणी जी के कुल या खानदान का न जाने मसलमानों से कौन-कौन सी लड़ाई है। मैं उनसे जानना चाहता हूं,वह मुझे बता दें कि हमारे धर्म के, मजहब के अमुक कूल में,अमुक समय में हिंदू देवी देवताओं ने, इस्लाम के जो पैगंबर हैं, उनसे कोई लड़ाई लड़ी या उनका झगड़ा झंझट हुआ। वह हमको बताएं कि आपका किस बात का झगड़ा है। चाहे बांग्लादेश और पाकिस्तान हो,वहां जो पैदा हुआ है, हम एक भाई थे लेकिन कुर्सी और गद्दी के चलते देश का बंटवारा हुआ।आज फिर क्यों आप इस देश के टुकड़े टुकड़े करने जा रहे हैं?
मैं प्रधानमंत्री जी को सुझाव देना चाहता हूँ कि आपके महामहिम राष्ट्रपति महोदय के अभिभाषण में लिखा है कि राजभवनों का पॉलिटिकल इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जायेगी. मेरा सुझाव है और हमारी सहमति है कि राज्यपाल के जितने पद हैं न सबको आप समाप्त करें, केंद्र का राजदूत हर जगह क्यों रहेगा? राज्यों को जब स्वायत्तता देने की बात है तो कितने मुख्यमंत्री राज्य में रहेंगे.
28 मार्च 1998
इन्होने सोनिया गांधी, जो कि कांग्रेस की अध्यक्ष हैं, को कह दिया कि वह विदेशी हैं. क्या इस तरह अपमानित करेंगे? भारत की अगर कोई बहू है, कांग्रेस की प्रेसिडेंट है तो उनके बारे में कहा जाता है कि वे विदेशी हैं. इस जुबान को वापस लेना चाहिए.
28 मार्च 1998