सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस अरुण मिश्रा को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किये जाने पर कैम्पेन फॉर जुडीशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (CJAR) ने चिंता जताते हुए कहा है कि सरकार ने एक बार फिर इस फैसले से मानवाधिकारों के प्रति अपनी उपेक्षा जाहिर कर दी है।
CJAR में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण संयोजक हैं और उनके पिता शांति भूषण सहित अरुंधति रॉय जैसे तमाम बुद्धिजीवी शामिल हैं। गुरुवार को जारी एक विज्ञप्ति में कैम्पेन ने मानवाधिकारों के प्रति जस्टिस बरुण मिश्रा की संवेदनहीनता के पुराने रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा है कि सरकार को प्रभावित करने वाले सभी मुद्दों पर उन्होंने हमेशा सरकार का ही पक्ष लिया है। जस्टिस लोया के प्रकरण भी इस विज्ञप्ति में जिक्र है।
final-cjar-statement-arun-mishra-appointmentकैम्पेन ने कहा है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मसले पर मिश्रा ने अपने आदेशों से लीपापोती की कोशिश की है और कभी भी किसी मामले में जांच के आदेश नहीं दिये। जस्टिस मिश्रा के विवादास्पद न्यायिक रिकॉर्ड को गिनाते हुए कैम्पेन ने कहा है कि आयोग के पद के लिए और भी काबिल प्रत्याशी थे लेकिन जस्टिस मदन लोकुर, दीपक गुप्ता, कुरियन जोसेफ आदि को संज्ञान में ही नहीं लिया गया।
कैम्पेन के मुताबिक मिश्रा को इस अहम पद पर लाये जाने से आयोग पूरी तरह एक अप्रासंगिक संस्था बन जाएगा, बिलकुल वैसा ही जैसा दूसरे संस्थान इस सरकार के राज में हो गये हैं। उनकी नियुक्ति मानव अधिकारों के संरक्षण और संवर्द्धन की मौत का फरमान है।