अप्रतिम कथाकार अमरकांत की जन्मशती आयोजन श्रृंखला की शुरुआत करते हुए जन संस्कृति मंच ने बलिया के टाउनहाल सभागार में ‘शती स्मरण: अमरकांत’ शीर्षक से कार्यक्रम रखा। आयोजन के पहले सत्र में गोष्ठी हुई, तो दूसरे सत्र में संजय जोशी की साहित्य अकादमी के लिए बनाई फिल्म ‘कहानीकार अमरकांत‘ दिखाई गई। अमरकांत की कहानियों पर कथाकार प्रियदर्शन की किताब ‘सादगी का सौंदर्य’ का विमोचन भी हुआ।
गोष्ठी का प्रारंभ बलिया के वरिष्ठ पत्रकार एवं सांस्कृतिक कार्यकर्ता अशोक जी के स्वागत वक्तव्य से हुआ, जिन्होंने बलिया जिले को क्रांति की धरती के साथ साहित्य-सृजन की उर्वरा भूमि बताया। इलाहाबाद से आए युवा आलोचक प्रेमशंकर ने कहा कि अमरकांत ने प्रेमचंद की यथार्थवादी और प्रगतिशील लेखन की परंपरा को को आगे बढाया है। घीसू-माधव, होरी-गोबर जैसे सामान्य और उपेक्षित जीवन को साहित्य में नायक की पदवी देकर कथाकार प्रेमचंद ने जिस परंपरा का सूत्रपात किया, उसे आगे बढाते हुए अमरकांत ने ‘रजुआ’ जैसा चरित्र हिंदी संसार को दिया जो स्वाधीनता के बाद बने भारतीय समाज की ‘जोंक व्यवस्था का परिणाम’ है। अगर यह देखना हो कि स्वाधीनता के बाद भारतीय समाज में ‘गोबर’ और ‘घीसू-माधव’ जैसे चरित्रों की क्या जगह बनी, तो अमरकांत की कहानी ‘डिप्टी कलक्टरी’ के ‘नारायण बाबू’ और ‘हत्यारे’ के गुमराह युवकों के जरिये उन्हें पहचाना जा सकता है।
युवा इतिहासकार शुभनीत कौशिक ने कहा कि यह आयोजन उसी स्थान पर हो रहा है जहां के चलता पुस्तकालय ने अमरकांत सहित कई कहानीकारों को गढ़ने का काम किया। उन्हें याद करते हुए बलिया में पुस्तकालयों की भूमिका को याद किया जाना चाहिए। साथ ही इस बात पर भी चर्चा करना चाहिए कि ये संस्थाएं आज क्यों बदल गईं। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद नए भारत में जनता, विशेषकर किसानों, युवाओं और श्रमिकों की उम्मीदें निराशा में बदलती गई हैं, उसको अमरकांत ने बहुत ज़हीन ट्रिक से अभिव्यक्त किया। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन की बहुस्तरीय आवाज़ों को अपनी कहानियों व उपन्यासों में दर्ज किया। उन्होंने आजाद भारत में उभर रहे सांप्रदायिक ख़तरे, मध्यवर्ग के भीतर सामंती प्रवृतियों की गहराई से शिनाख्त की।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी के प्रोफ़ेसर बसंत त्रिपाठी ने कहा कि अमरकांत नई कहानी के दौर में निम्न मध्यवर्गीय जीवन के संघर्ष व अंतर्विरोध के सबसे बड़े कथाकार थे। निम्न मध्यवर्ग का संघर्ष जीविका-रोजगार के अलावा सांस्कृतिक भी था जिसे अमरकांत ने अपनी रचनाओं में बहुत सूक्ष्मता से दर्ज किया। उनकी भाषा और मुहावरे कमाल के हैं। इस मायने में वे विलक्षण कथाकार हैं।
मुख्य वक्ता प्रो. प्रणय कृष्ण ने अमरकांत के व्यक्तिगत जीवन के संघर्ष की चर्चा करते कहा हम लोगों को उन्होंने व्यक्तित्व की उदारता और लोकतांत्रिकता का मूल्य दिया। प्रणय कृष्ण ने अमरकांत की कहानियों में उपमाओं की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि ये उपमाएं उन्होंने लोकजीवन से ली हैं। उनकी कहानियों में बहता हुआ समय एकदम अलग तरीक़े से आता है। उनकी कहानी में बहुत पहले हमारे समाज में बद्धमूल लिंचिंग की शिनाख्त होती है। उन्होंने अमरकांत को बेरोजगारों का सबसे आत्मीय कथाकार बताते हुए कहा कि जब इस देश में रोजगार का सवाल बड़ा आंदोलन बनेगा तब अमरकांत की कहानियां उसके केंद्र में होंगी।
कथाकार प्रियदर्शन मालवीय ने कहा कि अमरकांत की कहानियां आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी पक्षधरता जन सरोकार की राजनीति के साथ है। समकालीन जनमत के प्रधान संपादक रामजी राय ने कहा कि नागार्जुन के कहे अनुसार बड़े रचनाकार को पोलखोलन होना चाहिए। आज हालत यह कि जो ओपन है उसको गोपन करने का काम हो रहा है, तो यह चुनौती रचनाकारों के सामने है। अमरकांत ने जीवन और समाज में समाये पाखंड, झूठ और बनावटीपन को भेदने का काम किया। उनके पात्रों में जीवन के प्रति गहरी जिजीविषा है। तमाम दुश्वारियों के बीच उनके पात्र अपने स्वाभिमान के लिए संघर्ष करते हैं। अमरकांत शोषण की जड़ में जाते हैं और उसके सभी स्वरूपों को बेनक़ाब करते हैं।
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात कथाकार शिवमूर्ति ने 45 वर्ष पहले बलिया में अमरकांत से मुलाक़ात और उस दौर में बलिया की साहित्यिक सक्रियता की चर्चा करते हुए कहा कि बलिया का बागी तेवर और सांस्कृतिक माहौल उन्हें कहीं और नहीं मिला। उन्होंने कहा, ‘’बलिया ने ही हमारे अंदर कथाकार का बीज रोपित किया। मेरे उपन्यास और कई कहानियों का आधार बलिया है। यहीं मुझे वे गीत मिले जिन्हें मैंने कई कहानियों में लिया।‘’
गोष्ठी का संचालन कर रहे जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. राम नरेश राम ने कहा कि अमरकांत की रचनाओं को पढ़ने से नए सामन्तवाद की प्रवृतियों की शिनाख्त होती है। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. निशा ने किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।