भीमा कोरेगांव केस में छत्तीसगढ़ की वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व वकील सुधा भारद्वाज की स्वास्थ्य के आधार पर दायर अंतरिम बेल याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने आज कोई राहत नहीं दी। उसने कहा है कि आप मेरिट के आधार पर बेल मांगिए।
सर्वोच्च न्यायालय में आने से पहले बेल को नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की विशेष अदालत ने खारिज किया था। मुंबई उच्च न्यायालय ने भी उसी फैसले को सुरक्षित रखा। इसकी खामियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में मुंबई हाई कोर्ट के 28 अगस्त के आदेश को चुनौती दी गयी थी।
अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ग्रोवर ने वादी का पक्ष अदालत में रखा। उन्होंने सर्वोच्च अदालत के सामने इस मुद्दे को भी रखा कि नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की विशेष अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के 23 मार्च को दिए गए कैदियों संबंधी आदेश को पूरी तरह से नजरअंदाज किया था जिसमें इस तरह के कैदियों को छूट मिलनी चाहिए। एनआइए की विशेष अदालत ने जानबूझकर अपने आदेश में यह लिखा कि अनलॉफुल एक्टिविटी एंड प्रिवेंशन एक्ट (UAPA) में गिरफ्तार किए गए लोग स्वास्थ्य संबंधी बेल के हकदार नहीं होते।
अधिवक्ता ग्रोवर ने यह भी तर्क रखा कि सुधा भारद्वाज एक कानून को मानने वाली नागरिक हैं। बेल के दौरान उनसे कोई खतरा नहीं पैदा होता है। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि पिछले वर्ष में वे अपने पिता के अंतिम संस्कार में बेंगलुरु भी भेजी गयी थीं।
पिछले दो वर्षों से सुधा भारद्वाज बिना किसी ट्रायल के बिना दोष सिद्ध हुए सजा झेल रही हैं।
सुधा भारद्वाज के परिवार और मित्रों ने कहा वे अदालत के दुखद आदेशों से अचंभित हैं। इससे हम परिवार और मित्रों को सर्वोच्च न्यायालय के मानवीय आधार पर पुनः प्रश्न उठा है। जारी विज्ञप्ति में उन्होंने कहा:
हम उनके स्वास्थ्य के प्रति चिंता रखते हुए चाहते हैं कि:
- उनके स्वास्थ्य संबंधी स्थिति का पूरा और विस्तृत चेकअप किया जाए।
- मेडिकल परीक्षण के समय अस्पताल में उनके परिवार के एक व्यक्ति उपस्थित रहने की इजाजत मिले।
- जेल अधिकारियों से अपील है कि जेल में भीड़ कम की जाए व सभी रहने वालों का टेस्ट हो और कोरोना बीमारी से बचने के सभी उपायों का जेल में पालन किया जाए।
मायशा (सुधा भारद्वाज की बेटी), कलादास डेहरिया और विमल भाई की ओर से जारी