प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष और दिल्ली विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफेसर रहे अली जावेद साहब हमारे बीच में नहीं रहे।
12 अगस्त को ब्रेन हैमरेज के कारण उन्हें मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाद में कोमा में जाने पर जीबी पंत अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां कल रात उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनकी मृत्यु से न सिर्फ साहित्यिक जगत की क्षति हुई है अपितु जन राजनीति की भी अपूरणीय क्षति हुई है। आइपीएफ उनकी आकस्मिक मृत्यु पर शोक श्रद्धांजलि तथा उनके परिवार के लिए गहरी संवेदना व्यक्त करता है।
अली जावेद साहब की एक कविता
ओ, गंग-ओ-जमन!
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा
तेरा शायर-ए-मशरिक़
तुझे
आवाज़ दे रहा है
वो
तेरी कलकल के संगीत को
घुटन में तबदील होते देख रहा है
तू तो निकली थी
अपनी बहन
जमुना के साथ
सरस्वती की तलाश में
तुमने
अलग अलग रास्ते चुने
लेकिन
आखि़रकार तुम मिलीं
प्रयागराज में
पता नहीं
सरस्वती ने
तुझसे क्या कहा
लेकिन
यह तो सच है
उसने अपनी पहचान
तम्हारे हवाले कर दी
शायद उसने
तुमसे कहा हो
जाओ गंगा
जाओ जमुना
आगे बढ़ो
इस धरती को
जीवन देने के लिए
मैं, रहूंगी तुम्हारे साथ
तुम्हारे दिल की
धड़कनों में
इस धरती को
सेराब करने के लिए
धरतीवासियों के
दिल-ओ-दिमाग़ को
सर-सब्ज़ करने के लिए
लेकिन
यह क्या हो गया?
मेरी बहनों!
ये धरतीवासी
तुम्हारा दम घोंट रहे हैं
ये
सड़ती हुई लाशों से
तम्हारा सीना पाट रहे हैं
ओ, धरती और धरतीवासियों को
जीवन देने वाली
मेरी बहनों
ऐसा बुरा वक़्त
कभी नहीं पड़ा तुमपर
तम्हारा
शायर-ए-मशरिक़
और
मैं
तुम्हारी अनदेखी बहन सरस्वती
तुम्हारे इस विलाप में
तुम्हारे साथ है
तुमने
सदियों से
इस धरती की ग़लाज़त को
पी लिया है
शिव की तरह
मुझे यक़ीन है
इस विष के बदले
तुम
धरती को अमृत दोगी
ताकि
यह धरती
सर-सब्ज़ होकर सांस ले सके
उठो, बहन गंगा
उठो, बहन जमुना
बहो फिर से
उसी तरह
कलकल,अविरल
संगीतमय होकर
इन लाशों को
ज़िंदगी दो!
रौशनी दो!!
एस. आर. दारापुरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट