चाह और फ़र्ज़ के बीच फैला नूर
लोग आखिरकार अपनी आज़ादी को तलाश ही लेते हैं। ईरान से लेकर हिंदुस्तान तक मज़हबी ज्ञान की हमारी समझदारी में भले फ़र्क हो, लेकिन सबका निचोड़ एक ही है।
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लोग आखिरकार अपनी आज़ादी को तलाश ही लेते हैं। ईरान से लेकर हिंदुस्तान तक मज़हबी ज्ञान की हमारी समझदारी में भले फ़र्क हो, लेकिन सबका निचोड़ एक ही है।
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हमारा अवचेतन मन हमारे विश्वास पर कार्य करता है, तर्क पर नहीं। इसलिए आप किसी भी बाबा, पाखंडी गुरु या साधक के पास चले जाएं, किसी भी मंदिर, गुरूद्वारे, मज़ार पर चले जाएं, यह निश्चित मान लीजिए आपका इनके पास जाना ही आपके अवचेतन मन को प्रभावित करता है।
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कुछ सीधे आपराधिक मामलों को छोड़ दें तो न्याय और अन्याय की पहचान का मामला बड़ा जटिल है। कई बार तो उलझन खड़ी हो जाती है। जो बात किसी खास संदर्भ में न्याय लगती है, संदर्भ बदलते ही वह अन्याय प्रतीत होने लगती है।
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इस कड़वे सच को स्वीकार करना होगा कि पिछले 25-30 साल की हार, खासतौर से राम जन्मभूमि के आंदोलन के बाद की हार, सिर्फ चुनाव की हार नहीं है, सत्ता की हार नहीं है, बल्कि संस्कृति की हार है। हम अपनी सांस्कृतिक राजनीति की कमजोरियों की वजह से हारे हैं।
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प्रधानमंत्री बारंबार संसद भवन को लोकतंत्र के मंदिर की संज्ञा देते रहे हैं किंतु मंदिर की भूमिका धर्म के विमर्श तक ही सीमित रहनी चाहिए। नए संसद भवन को तो स्वतंत्रता, समानता, न्याय और तर्क के केंद्र के रूप में प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए।
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कोविड से होने वाली मौतों से संबंधित आधिकारिक आँकड़े किस क़दर झूठे और भ्रामक हैं, इसके प्रमाण अन्य अध्ययनों में भी सामने आ रहे हैं। हाल ही में ब्रिटेन ने स्वीकार किया है कि उसके आँकड़े अतिशयोक्तिपूर्ण थे। आँकड़ा जमा करने की ग़लत पद्धति के कारण उन लोगों की मौत को भी कोविड से हुई मौत में जोड़ दिया गया जिनकी मौत की मुख्य वजह कुछ और ही थी।
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