पंचतत्व: गंगा मैया की सवारी को मारने का दोष पूरे समाज के सिर पर है

उनके गांव कोई पोस्टर थोड़े ही लगा था कि यह जीव लुप्तप्राय है और इसको न मारें… और क्या गंगा की डॉल्फिन पर आपने उनकी किताबों में कुछ पढ़ाया था?

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पंचतत्व: नर्मदा के भरोसे ज़िंदा साबरमती और उसकी कोख में पलते जैविक बम

अगर आप कभी अहमदाबाद गये हों तो खूबसूरत दिखने वाले रिवरफ्रंट पर भी जरूर गये होंगे. क्या पता आपने नदी के पानी पर गौर किया या नहीं. जानकार कहते हैं कि साबरमती में बहने वाला पानी अत्यधिक प्रदूषित है.

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पंचतत्व: ये खलनायक हरियाली, जो हमारे जंगलों को चट कर रही है…

आखिर एक झाड़ी से डरने की जरूरत क्या है. जरूरत इसलिए है क्योंकि तेजी से पांव पसार रहे लैंटाना के चलते पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अनुकूल घास खत्म होती जा रही है. इसका सीधा असर वन्यजीवों के भोजन चक्र और प्रवास पर पड़ रहा है.

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पंचतत्व: कानून एक तरफ, लेकिन हरित क्रांति का बोया धान पंजाब-हरियाणा को बहुत महंगा पड़ा है!

भूजल स्तर में गिरावट की मौजूदा दर जारी रही तो पूरे पंजाब का पूरा उप-सतही जल दो दशकों में खाली हो जाएगा. सचाई यह है हमने कुओं और तालाबों की बजाय ट्यूबवेल पर भरोसा करना शुरू कर दिया.

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पंचतत्व: गाफिल गोता खावैगा…

अगर आपके इलाके में बेमौसम बरसात हो, बिजली कड़के, तो पकौड़े तलते हुए पिया मिलन के गीत गाने के उछाह में मत भर जाइए। सोचिए कि पश्चिमी राजस्थान में बारिश क्यों हो रही है! सोचिए कि वहां ठनका क्यों गिर रहा है! कुदरत चेतावनी दे रही है, हम और आप हैं कि समझने को तैयार नहीं हैं.

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पंचतत्व: मिट्टी की ये देह मिट्टी में मिलेगी या ज़हर में?

आज के पंचतत्व में आंकड़ों की भरमार है, पर यकीन मानिए, हर बार किस्सा सुनाना भी मुमकिन नहीं होता. खासकर तब, जब बात माटी की हो. मरने के बाद तो सुपुर्दे-खाक होते समय आदमी चैन से सोना चाहता होगा, अगर वहां भी प्रदूषित और कलुषित माटी से साबका हो, तो रेस्ट इन पीस कहना भी बकैती ही होगी.

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पंचतत्व: चुगलों के चंगुल में फंसी प्रकृति के साथ सहजीवन का प्रतीक सामा चकेबा

लोक आस्था का पर्व छठ हो या फिर सामा चकेबा, दोनों ही पर्यावरण के पर्व हैं. भाई-बहन के रिश्ते को भैया दूज और राखी से परे ले जाकर सामा-चकेबा का पर्व अद्भुत आयाम देता है. इस आयाम में, प्रकृति और पर्यावरण के महत्व को बेहद मासूम अभिव्यक्ति दी जाती है.

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पंचतत्व: एक संकल्प उन मरते नदी-पोखरों के लिए भी, जिसमें खड़े होकर हमने सूर्य को अर्घ्य दिया!

अगस्त में आपने बिहार, असम और केरल जैसे राज्यों में भयानक बाढ़ की खबरें पढ़ी होंगी, ऐसे में अगर मैं यह लिखूं कि देश की बारहमासी नदियां अब मौसमी नदियों में बदल रही हैं और उनमें पानी कम हो रहा है तो क्या यह भाषायी विरोधाभास होगा? पर समस्या की जड़ कहीं और है।

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पंचतत्वः हे सौरा माय, कनी हौले बहो…

ब्रिटिश छाप लिए बिहार के शहर पूर्णिया में एक नदी है, सौरा. यह नदी बेहद बीमार हो रही है. सूर्य पूजा से सांस्कृतिक संबंध रखने वाली नदी सौरा अब सूख चली है और लोगों ने इसके पेटे में घर और खेत बना लिए हैं. भू-माफिया की नजर इस नदी को खत्म कर रही है और अब नदी में शहर का कचरा डाला जा रहा है.

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पंचतत्वः पुरुष नद, स्त्री नदियां और इनकी गोद में छुपा हमारा लोक-इतिहास

नदियों के नाम के साथ जुड़े किस्से बहुत दिलचस्प हैं. हर नाम के पीछे एक कहानी है और एक ही नाम की नदियां देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद हैं.

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