बेरोजगारों के सबसे आत्मीय कथाकार हैं अमरकांत: प्रणय कृष्‍ण

आजादी के बाद नए भारत में जनता, विशेषकर किसानों, युवाओं और श्रमिकों की उम्मीदें निराशा में बदलती गई हैं, उसको अमरकांत ने बहुत ज़हीन ट्रिक से अभिव्यक्त किया। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन की बहुस्तरीय आवाज़ों को अपनी कहानियों व उपन्यासों में दर्ज किया। उन्होंने आजाद भारत में उभर रहे सांप्रदायिक ख़तरे, मध्यवर्ग के भीतर सामंती प्रवृतियों की गहराई से शिनाख्त की।

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मंगलेश डबराल का घोंसला और लोक संस्कृति की मृत चिड़िया

मंगलेश जी के पास पहाड़ी राग से लेकर मारवा और भीमपलासी सब कुछ था। उनके पास बिस्मिल्‍लाह खान की शहनाई थी। उनके पास पहाड़ी लोकगीत थे। वे ‘नुकीली चीजों’ की सांस्‍कृतिक काट जानते थे लेकिन उनका सारा संस्‍कृतिबोध धरा का धरा रह गया क्‍योंकि उन्‍होंने न तो अपने पिता की दी हुई पुरानी टॉर्च जलायी, न ही दूसरों ने उनसे आग मांगी। वे बस देखते रहे और रीत गए। उन्‍होंने वही किया जो दूसरों ने उनसे करवाया। कविताओं में वे शिकायत करते रहे और बाहर मुस्‍कुराते रहे, सड़कों पर तानाशाह के खिलाफ कविताएं पढ़ते रहे।

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