याराना पूंजीवाद की पराकाष्ठा: भाजपा की चुनावी कामयाबी और चुनावी बॉन्ड का रिश्ता

। 2020-21 के अंत तक सभी राष्ट्रीय दलों को चुनावी बांड से मिले चंदे का 80 प्रतिशत चंदा भाजपा को मिला और सभी राष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय दलों को मिलाकर मिले चंदे का 65 प्रतिशत भाजपा को मिला। जाहिर है कि भाजपा चुनावी बांड योजना की सबसे बड़ी लाभार्थी है और उसके कुल चंदे का लगभग दो-तिहाई अब चुनावी बांड के माध्यम से आ रहा है।

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आजकल गाँवों में उद्योग लगाने के लिए लोगों को आपस बाँट कर जमीन कैसे ली जाती है?

इस सब के बावजूद इस तरह की घटनाएं हुई हैं जब प्रभावित लोगों ने अपने बीच किसी तरह के विभाजन नहीं होने दिया और लगातार मिलकर परियोजना का विरोध जारी रखा। इस तरह की असाधारण स्थिति असाधारण समाधान की मांग भी करती है।

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कृषि पर कॉर्पोरेट कब्ज़ा संवैधानिक अधिकारों और लोकतंत्र के निगमीकरण की शुरुआत है

अगर आपने मुख्यधारा की मीडिया में होने वाली विशेषज्ञ चर्चाओं और वहां परोसे जाने वाले दृश्यों को अपनी सारी बुद्धि पहले से ही गिरवी नहीं रखी है, तो आप परी कथा की तरह सवाल पूछ सकते हैं: “आईना, दीवार पर आईना, मुझे दिखाओ कि इन सबके पीछे कौन है”। और फिर, आईना सत्तारूढ़ पार्टी के दो सबसे शक्तिशाली राजनेताओं (दोनों गुजरात से) को नहीं दिखाएगा, बल्कि दो अन्य चेहरे, देश के दो सबसे अमीर कारोबारी (दोनों ही गुजरात से) को दिखाएगा।

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