मैं… बेसिक शिक्षा हूँ…!

प्रत्येक विद्यालय में पूर्णकालिक प्रधानाध्यापक है और न ही प्रत्येक कक्षा के लिए शिक्षक ही है। बेशर्मी देखिए, बात जब छात्र-शिक्षक अनुपात की होती है तो अनुपात के सही होने का ढिंढोरा पीटा जाता है, वो भी सदन में। विद्यालयों में नियुक्त शिक्षामित्रों और अनुदेशकों को जब वेतन और सुविधा देने की बात आती है तो ये संविदाकर्मी और अनट्रेंड कर्मी की श्रेणी में आते हैं लेकिन बात जब अपनी जवाबदेही की आती है तो सदन में वही शिक्षामित्र और अनुदेशक छात्र-शिक्षक अनुपात सही करने के हथियार भी बना लिए जाते हैं। कोई भी शिक्षक भर्ती प्रक्रिया न तो ससमय प्रारंभ होती है न ही संपन्न। दो से चार वर्ष के समयान्तराल पर भी नहीं।

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