होमियोपैथी दिवस: कहीं आप उपचार की सहज, सरल, सस्ती, प्रामाणिक विधि से महरूम न रह जाएं!


होमियोपैथी के लिए 10 अप्रैल का दिन बेहद ख़ास है। इस वर्ष तो होमियोपैथी के आविष्कारक डॉ. सैमुएल हैनिमैन की 270वीं जयन्ती भी है। दुनिया आज के दिन को “विश्व होमियोपैथिक दिवस” के रूप में मनाती है। इस विशेष दिवस के बहाने मैं होमियोपैथी के आलोचकों और प्रशंसकों को यह बताना चाहता हूं कि वैश्विक स्वास्थ्य की चुनौतियों के मद्देनज़र होमियोपैथी में उपचार का दायरा अब उन रोगों तक पहुंच चुका है जिसे दुनिया में आज भी लाइलाज बताया जा रहा है। ऑटोइम्यून डिसॉर्डर्स, जीवनशैली के लाइलाज कहे जाने वाले रोग, मानसिक बीमारियां, चर्मरोग, जोड़ों के रोग, पेट संबंधी बीमारियां, आदि में होमियोपैथी ने भरोसेमंद इलाज के कई नए आयाम जोड़ दिए हैं।

कहते हैं विज्ञान और तकनीक में आपसी प्रतिस्पर्धा की हद बेहद गंदी और ख़तरनाक होती है। आधुनिक रोगों में होमियोपैथी की सीमा के बावजूद एलोपैथी अपने सामने किसी दूसरी चिकित्सा पद्धति को विकसित होते नहीं देख सकती। एलोपैथी की इसी खीझ का शिकार होमियोपैथी के समक्ष अनेक लाइलाज और जटिल रोगों की चुनौतियां भी हैं। सन् 2017 में अमेरिका में हुए ‘नेशनल हेल्थ इंटरव्यू सर्वे’ में पाया गया कि लोग तेज़ी से होमियोपैथिक चिकित्सा को सुरक्षित चिकित्सा विकल्प के रूप में स्वीकार करने लगे हैं। उस वर्ष अमेरिका में 39 लाख वयस्क तथा 9 लाख बच्चों ने होमियोपैथिक चिकित्सा ली।

होमियोपैथी एक ऐसी चिकित्सा विधि है जो शुरू से ही चर्चित, रोचक और आशावादी पहलुओं के साथ विकसित हुई है। सन् 1810 में इसे जर्मन यात्री और मिशनरी अपने साथ लेकर भारत आए। फिर तो इन छोटी मीठी गोलियां ने भारतीयों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचा कर अपना सिक्का जमाना शुरू कर दिया। सन् 1839 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह की गंभीर बीमारी के इलाज के लिए फ्रांस के होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. जॉन मार्टीन होनिंगबर्गर भारत आए थे। डॉ. होनिंगबर्गर के उपचार से महाराज को बहुत लाभ मिला था। बाद में सन् 1849 में पंजाब पर जब सर हेनरी लारेंस का क़ब्ज़ा हुआ तब डॉ. होनिंगबर्गर अपने देश लौट गए। सन् 1951 में एक अन्य विदेशी चिकित्सक जॉन हंटर लिटर ने कलकत्ता में एक होमियोपैथिक चिकित्सालय की स्थापना की। सन् 1881 में कलकत्ता में पहले होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई।



होमियोपैथिक चिकित्सा और उपचार का दायरा अब काफ़ी बढ़ चुका है। बहुत से ऐसे सर्जिकल रोग हैं जिसमें एलोपैथी सर्ज़री की ज़रूरत पड़ती है लेकिन होमियोपैथिक दवाओं से इन रोगों में भी अच्छा लाभ मिल रहा है। उदाहरण के लिए किडनी या गॉल ब्लैडर की पथरी, हर्निया ट्यूमर, पाइल्स, मस्से आदि रोगों में होमियोपैथी अच्छा उपचार दे रही है। होमियोपैथी को आप भविष्य की एक मुकम्मल चिकित्सा पद्धति भी कह सकते हैं। जीवनशैली से जुड़े रोग, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर्स एवम् लाइलाज बता दिए गए रोगों में तो होमियोपैथी बेहतर सिद्ध हो रही है।

होमियोपैथी में भविष्य की स्वास्थ्य चुनौतियों से निबटने की पूरी क्षमता है, लेकिन स्वास्थ्य संकट की गंभीरता और रोगों की जटिलता के मद्देनज़र यह भी ज़रूरी है कि होमियोपैथी का गंभीर अध्ययन हो और इसे बाज़ार के प्रभाव से बचाकर पीड़ित मानवता की सेवा के चिकित्सा माध्यम के रूप में प्रोत्साहित किया जाए।

इन दिनों हम वैश्विक महामारियों और लाइलाज बीमारियों के दौर में जी रहे हैं। लगभग हर उम्र और वर्ग में जटिल बीमारियों का लाइलाज होना जहां चिंता की बात है वहीं होमियोपैथिक उपचार ने न केवल इसे सहज बनाया है बल्कि बेहद कम ख़र्च में इलाज को आम लोगों के लिए सुलभ कर दिया है। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस संक्रमण के दौर को याद कीजिए। उपचार के नाम पर पूरी दुनिया में अफ़रातफ़री थी। लोग परेशान थे और मर रहे थे। ऐसे में होमियोपैथी की रोगनिरोधी दवाओं ने बहुत काम किया। भारत में सरकारी और निजी तौर पर बड़ी तादाद में होमियोपैथी की रोग प्रतिरोधी दवा बांटी गई और उसका असर भी हुआ कि कोरोना संक्रमण काफ़ी हद तक कम हो गया और लोग दहशत से बाहर आ गए थे।


डॉ. सैमुएल हैनिमैन की जयन्ती के उपलक्ष्य में 6 अप्रैल, 2025 को दिल्ली में आयोजित दौड़

गंभीर बीमारियों और महामारियों में होमियोपैथी की भूमिका को समझने के लिए जर्नल ऑफ हिस्ट्री ऑफ मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज की 1997 के अंक में दर्ज सन् 1832 एवं 1854 में योरोप में फैले एशियाटिक कालरा महामारी की स्थिति का अध्ययन करना चाहिए। उस समय के जाने-माने जनस्वास्थ्य वैज्ञानिक डॉ. जान स्नो ने ब्रिटेन के किंग जॉर्ज (छठे) की मदद से रॉयल लंदन होमियोपैथिक हॉस्पीटल के चिकित्सकों की सेवाएं ली और लाखों लोगों को असमय मरने से बचा लिया था।

आजकल वैश्विक स्तर पर होमियोपैथी खूब चर्चा में है। विभिन्न लोगों एवं समूहों में आलोचनाओं के बाद भी होमियोपैथी की स्वीकार्यता बढ़ी ही है। एलोपैथी के कई बड़े चिकित्सक भी न केवल होमियोपैथिक उपचार को अपना रहे हैं बल्कि वे अपने मरीज़ों को होमियोपैथी उपचार लेने की सलाह भी दे रहे हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि होमियोपैथी के लाभकारी गुणों को वैज्ञानिकता की कसौटी पर परख कर उसे जनसुलभ बनाया जाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी “ट्रेडिशनल मेडिसिन इन एशिया” नाम से एक मोनोग्राफ प्रकाशित कर होमियोपैथी एवं अन्य आयुष पद्धतियों की प्रासंगिकता को स्वीकार किया है। संगठन ने इस वर्ष (2025) विश्व स्वास्थ्य दिवस के संदेश के रूप में “स्वस्थ्य शुरुआत- आशापूर्ण भविष्य” की बात की है। संगठन भी मान रहा है कि सभी तार्किक एवं वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धतियों का समन्वय कर के ही दुनिया को रोगमुक्त करने की दिशा में सोचा जा सकता है। हम होमियोपैथी की प्रासंगिकता और वैज्ञानिकता को लेकर नियमित चर्चा करें, इसकी कमियों को दूर करने का प्रयास करें, साथ ही इसे जनसुलभ बनने के लिए भी पहल करें। 

वैश्वीकरण के दौर में जब स्वास्थ्य और शिक्षा बाजार की भेंट चढ़ गए हों तब इस सहज और सस्ती वैज्ञानिक उपचार प्रणाली का महत्त्व वैसे ही बढ़ जाता है। होमियोपैथी में नियमित अनुसंधान की सख़्त ज़रूरत है। हम होमियोपैथिक चिकित्सकों को भी नये रोगों की चुनौतियों और उसके सफल होमियोपैथिक उपचार का अध्ययन करते रहना चाहिए। इन लाइलाज रोगों की चुनौतियां तथा आम लोगों में बढ़ती ग़रीबी के मद्देनज़र भी होमियोपैथी जैसी सहज और सुलभ चिकित्सा पद्धति को और बढ़ाया जाना चाहिए। देखा जा रहा है कि महंगे इलाज का बोझ आम लोगों को कंगाल बना रहा है। देश की एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है। हमें यह भी सोचना होगा कि एक तार्किक चिकित्सा प्रणाली को मज़बूत और ज़िम्मेदार बनाने के प्रयासों के बजाय वे कौन लोग हैं जो इसे झाड़ फूंक, प्लेसिबो या सफ़ेद गोली के जुमले मेरे बाँधे रखना चाहते हैं? यदि यह एलोपैथी की दवा और व्यापार की लॉबी है तो कहना होगा कि उनका स्वार्थ महंगे और बेतुके इलाज के नाम पर लूट क़ायम करना और भ्रम खड़ा करना है। हमें उनसे सावधान रहना होगा। नहीं तो आप उपचार की एक सहज, सरल, सस्ती और प्रामाणिक चिकित्सा विधि से महरूम रह जाएंगे।


डॉक्टर ए.के. अरुण, एम.डी. (होमियोपैथी), राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त चिकित्सक एवं जनस्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं।
संपर्क: docarun2@gmail.com

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