मुंबई स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, 3 मई को जब सप्ताह समाप्त हुआ तो भारत में बेरोजगारी दर अभूतपूर्व 27.11 प्रतिशत थी। शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर मामूली रूप से 29.22% थी जबकि ग्रामीण बेरोजगारी दर 26.16% थी।
अप्रैल के महीने के लिए बेरोजगारी की दर मार्च के अंत में 8.74% से 23.52% तक बढ़ गई, जो कोरोनावायरस के कारण राष्ट्रीय लॉकडाउन में केवल दो सप्ताह थी। फरवरी के महीने में 7.78% की बेरोजगारी दर दर्ज की गई जो मार्च के लिए लगभग 9% हो गई, वह भी राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के केवल दो सप्ताह के भीतर। फरवरी के महीने में 7.78% की बेरोजगारी दर दर्ज की गई जो मार्च के लिए लगभग 9% हो गई।
‘द क्विंट’ की रिपोर्ट के अनुसार, सीएमआईई के सीईओ महेश व्यास ने कहा कि बेरोजगारी की दर बद से बदतर होने की उम्मीद है क्योंकि लॉकडाउन जारी है। उन्होंने कहा कि आबादी का अधिक कमजोर वर्ग जोखिम में है और इसके बाद औपचारिक क्षेत्र को भी नुकसान होगा।
सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में नौकरी खोने की सूचना देने वाले 91% छोटे व्यापारी और मजदूर थे, इसके बाद उद्यमी (18.2%) और वेतनभोगी कर्मचारी (17.8%) थे। व्यास ने बताया कि अप्रैल के महीने में 122 (करीब 12 करोड़) मिलियन लोगों ने नोकरी खो दी। 2019-220 के औसत रोजगार में 404 मिलियन (30 प्रतिशत) की गिरावट आयी है। छोटे व्यापारियों और मजदूरों में अनुमानित 91 मिलियन या इस श्रेणी के 70% लोगों ने आजीविका के नुकसान की सूचना दी।
अर्थशास्त्रियों और शोधकर्ताओं ने कहा कि वर्तमान में बेरोजगारी का स्केल अभूतपूर्व देखा गया है और यह पिछले वर्षों से अलग है। वर्तमान में बेरोजगारी दर नोटबंदी के समय की बेरोजगारी दर की तुलना में कहीं अधिक है। अगस्त 2016 में यह एक 9.6 प्रतिशत थी।
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साभारः सबरंग