लॉकडाउन की आड़ में ज़मीन अधिग्रहण की कोशिश के खिलाफ़ गरमाये बीकानेर के खेत, तनाव


राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर के रानीसर गांव में माहौल गरम है। एक ओर पुलिस और ठेकेदार हैं तो दूसरी ओर किसान। लॉकडाउन की आड़ में जबरन सड़क के लिए ज़मीन अधिग्रहण करने आये पुलिसवालों के साथ किसानों की बातचीत तनावपूर्ण स्थिति में पहुंच गयी है। मामला भारतमाला प्रोजेक्ट के अंतर्गत बनाये जा रहे राष्ट्रीय राजमार्ग 754k का है।

किसानों का आरोप है कि बीकानेर, लूणकरणसर, नोखा तहसील के जिन 41 गांवों के किसानो के खेत से होकर यह राष्ट्रीय राजमार्ग गुजर रहा है उन किसानों से सरकार मामूली डीएलसी रेट पर जमीन का अधिग्रहण कर रही है! इस ज़मीन का जहां बाजार मूल्य दो लाख रुपये है वहां सरकार करीब 50 हजार रुपये दे रही है। सरकार 1 खेजड़ी के करीब 15 रुपये दे रही है जबकि खेजड़ी से सांगरी जैसी सब्जी, पशुओं का चारा, लकड़ी उपलब्ध होता है।

#भारतमाला परियोजना NH 754 K सड़क बीकानेर जिले से होकर गुजर रही है जिसके अंदर बीकानेर ,लूणकरणसर,नोखा तहसील के 41 गांव…

Posted by Adv Bharatram Kaswan on Thursday, May 7, 2020

किसान पिछले साल भर से आंदोलन कर रहे हैं। पूरे राजस्थान के किसानों ने मिलकर जालौर के बागोड़ा में आंदोलन किया। किसान बाग में सरकार ने बात नहीं मानी तो 211 किसान 10 दिनों तक भूख हड़ताल पर बैठे रहे, तभी अचानक कोरोना महामारी को देखते हुए किसानों ने सरकार का सहयोग करने के लिए अपना आंदोलन स्थगित करने का निर्णय लिया।

इसका फायदा उठाते हुए किसानों के इस सहयोग के बदले कोरोना महामारी के इस दौर में सरकार और ठेकेदारों ने पुलिस के डंडे के दम पर किसानों को उनके खेतों से मुआवजा दिए बिना खदेड़ना शुरू किया है। शनिवार की दोपहर रानीसर गांव के खेतों में किसानों और ठेकेदारों के बीच जो नज़ारा देखने को मिला, वह किसी लम्बे भीषण संघर्ष की आहट है।

स्थानीय किसान और किसान नेता प्रभु मुंड ने शनिवार को पुलिस और ठेकेदारों के विरोध का पूरा वीडियो बनाकर फेसबुक पर वायरल किया। पूरे 40 मिनट के इस वीडियो से समझ में आता है कि कैसे लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग का बहाना बनाकर किसानों के विरोध को लॉ एंड आर्डर की स्थिति से जोड़ा गया जबकि किसान खुद आपस में सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करने की बात कह रहे हैं।

Posted by Drx Prabhu Mund Ranisar on Friday, May 8, 2020

खबर लिखे जाने तक पुलिस और विरोधरत किसानों के बीच बहस चालू थी। कुछ किसान नेताओं के रास्ते में होने की ख़बर है। प्रभु मुंड ने इस पूरी वार्ता को लाइव किया है।

Posted by Drx Prabhu Mund Ranisar on Saturday, May 9, 2020

इस मामले में स्थानीय एडवोकेट भरतराम कासवान ने दो दिन पहले एक लंबा नोट लिखकर किसानों को कानूनी पहलू समझाने की कोशिश की थी, कि आखिर यह ज़मीन अधिग्रहण क्यों गलत है और कानून में उन्हें इसके प्रति क्या सुरक्षा प्राप्त है। कासवान ने लिखा हैः

“हम किसानों का दावा इन दो कानूनी नियमों से भी मजबूत मान सकते हैं। पहला, आर्टिकल (300)A:

भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि “राज्य द्वारा उचित न्यायिक प्रक्रिया का पालन किये बिना नागरिकों को उनकी निजी संपत्ति से ज़बरन वंचित करना मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत प्राप्त संवैधानिक अधिकार का भी उल्लंघन होगा।” सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक, कानून से शासित किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य कानून की अनुमति के बिना नागरिकों से उनकी संपत्ति नहीं छीन सकता..!

दूसरा: भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 संशोधन बिल लोकसभा में हुआ था जिसके तहत किसानों की सहमति के बिना उनकी भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता, अगर होगा तो ग्रामीण इलाके में बाजार भाव से #चार गुणा मिलेगा..! जिस जमीन की कीमत सरकार दो कौड़ी की समझ रही है वो जमीन, जमीन ही नहीं किसानों के लिए एक शरीर का अंग है उस जमीन कि देख रेख में अपने शरीर पर कपड़ों के चिथड़े उड़ जाते है सर्दी और गर्मी की परवाह किए बगैर अर्धनग्न तन पर खेती करके वो पूरे देश का पेट भरता! मगर अफसोस आज देश में किसानों को मंदिर का ऐसा घंटा बना दिया है, जिसको प्रकृति बजाती है, पूंजीवादी लोग बजाते हैं,दलाल बजाते है और बचा खुचा सरकार बजा देती हैं..!”


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जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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3 Comments on “लॉकडाउन की आड़ में ज़मीन अधिग्रहण की कोशिश के खिलाफ़ गरमाये बीकानेर के खेत, तनाव”

  1. I always used to study paragraph in news papers but now
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    am using net for content, thanks to web.

  2. When I initially commented I clicked the “Notify me when new comments are added” checkbox and now each
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    same comment. Is there any way you can remove me from that service?
    Cheers!

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