किसान आंदोलन का पहला अध्याय वार्ताओं का रहा। वार्ता विफल होने के बाद दूसरा अध्याय प्रदर्शनों का था। सोमवार को यह चरण भी अनशन के साथ समाप्त हो गया। इस बीच सरकार ने चारों तरफ से आंदोलन को घेर लिया है और किसानों का दिल्ली घेरने का कार्यक्रम विफल हो चुका है। आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता…
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बीते 18 दिनों से देश में चल रहे किसान आंदोलन पर अब चारों ओर से शिकंजा कसता नज़र आ रहा है। किसान संगठनों ने सोमवार को दिल्ली घेराव का आह्वान किया था जो विफल रहा। राज्यों में अनशन के स्थानीय कार्यक्रम बेशक सफल रहे, कुछ जगहों पर गिरफ्तारियाँ भी हुईं लेकिन दिल्ली के सियासी गलियारों में चला घटनाक्रम इन सब पर भारी पड़ गया। उधर अब तक सोये पड़े अन्ना हजारे की भी एंट्री इस अध्याय में हो गयी।
सोमवार को बहुत तेज़ी से घटनाएं घटीं। सुबह अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) ने एक दिन पहले सरदार वीएम सिंह की औचक हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस के आलोक में एहतियात बरतते हुए समिति में संयोजक का पद ही खत्म कर डाला। इस तरह वीएम सिंह को निर्णायक तरीके से आंदोलन के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
किसान आंदोलन: वीएम सिंह की मनमानी के चलते AIKSCC ने संयोजक का पद किया खत्म, पढ़ें बयान
इस बीच किसानों ने देश भर में अलग-अलग जगह भूख हड़ताल का आयोजन किया और प्रदर्शन किये, लेकिन देशव्यापी अनशन के कार्यक्रम से एकता-उग्राहां गुट ने खुद को अलग कर लिया। सामाजिक कार्यकर्ताओं की रिहाई की माँग पर विवाद और दुष्प्रचार के चलते उग्राहां गुट से चार दिन पहले बाकी संगठनों ने खुद को अलग कर लिया था।
NH-8 बंद की पहेली
दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 को जाम करने का पूर्वघोषित कार्यक्रम पूरी तरह से विफल रहा। रविवार को बावल में राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर रोका गया अखिल भारतीय किसान सभा (सीपीएम) का जत्था वहीं बैठा रहा। न आगे बढ़ा, न हाइवे जाम किया।
वास्तव में, किसान सभा के नेता अमरा राम ने तो इस बात से ही इनकार कर दिया कि वे हाइवे जाम करने आये हैं।
इसके ठीक उलट, एनएच-8 को बंद करने का आधिकारिक एलान 12 दिसंबर के लिए ही किया गया था। इसकी जिम्मेदारी योगेंद्र यादव ने ली थी, लेकिन उस दिन यह संभव नहीं हो सका जिसके बाद योगेंद्र यादव ने एनएच-8 पर एक लाइव वीडियो कर के 13 दिसंबर को राजमार्ग जाम करने का एलान किया।
यादव ने इससे पहले भी 2 दिसंबर और 8 दिसंबर को एनएच-8 बंद करने का जिम्मा लिया था लेकिन विफल रहे थे। इस बीच आंदोलन के नेतृत्व में उनकी पकड़ कम होती जा रही थी। उन्होंने 13 दिसंबर का एलान तो कर दिया, लेकिन उनके पास काडर नहीं थे। उन्हें राजस्थान से आ रहे सीपीएम के किसान जत्थों पर भरोसा था। जब सीपीएम का जत्था 13 दिसंबर को बहरोड़ पहुंचा, तो वहां अमरा राम ने पहले ही कह दिया कि उनका हाइवे बंद करने का कोई प्रोग्राम नहीं है।
सरकार का कसता शिकंजा
आंदोलन के इन आंतरिक मतभेदों से इतर गृहमंत्री अमित शाह के साथ किसान प्रतिनिधियों की विफल हुई बातचीत के बाद से ही सरकार एक साथ कई मोर्चों पर काम कर रही थी। एक मोर्चा मीडिया का पहले ही खुला हुआ था, जहां 10 तारीख को टिकरी बॉर्डर पर जेल में बंद नेताओं, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्लेकार्ड उग्राहां गुट द्वारा प्रदर्शित किये जाने के बाद दुष्प्रचार का बाजार गरम हो चुका था। मीडिया में तो आंदोलन को माओवादी कह कर बदनाम किया ही गया, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी विवादास्पद बयान दे डाला।
इसका नतीजा यह हुआ कि किसान आंदोलन के नेतृत्व में भी सामाजिक कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग पर मतभेद हो गया। उग्राहां गुट की मांग से आंदोलन ने खुद को अलग कर लिया जबकि शुरू यह साफ़ था कि किसान आंदोलन के मांगपत्र में यह मांग शामिल थी।
राजनैतिक बंदियों की रिहाई तो किसान आंदोलन के माँगपत्र का हिस्सा है, फिर हल्ला किस बात का?
इसकी परिणति इस रूप में हुई कि एक के बाद एक देश भर में नेताओं ने किसानों को माओवादी ठहराना शुरू कर दिया। मध्य प्रदेश में साध्वी प्रज्ञा से लेकर उषा ठाकुर तक के बयान देखे जा सकते हैं।
इसी के समानांतर सरकार ने कुछ दूसरे किसान गुटों और नेताओं के कंधे पर चढ़कर कृषि कानूनों के प्रति स्वीकार्यता दर्शाने की राजनीति की। इस क्रम में रविवार को बताया गया कि कुछ किसान नेताओं ने कृषि मंत्री से मुलाकात की है।
सोमवार को दिन ढलते खबर आयी कि कुछ राज्यों से 10 किसान संगठनों ने कृषि मंत्री से मिलकर कानूनों के प्रति अपना समर्थन पत्र दिया है। यह समर्थन पत्र जिस लेटरहेड पर दिया गया उस पर ‘’All India Kisan Coordination Comitte / अखिल भारतीय किसान समन्वय समीति’’ लिखा हुआ है और जिस पर महाराष्ट्र व मोहाली का पता लिखा हुआ है।
मौजूदा आंदोलन All India Kisan Sangharsh Coordination Committee / अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले हो रहा है जो देश भर के 500 किसान संगठनों का एक अम्ब्रेला संगठन है और दिल्ली स्थित है। साफ़ था कि सरकार दूसरे बैनरों के सहमति पत्रों के माध्यम से स्वीकार्यता की धारणा बनाने की कोशिश कर रही थी।
योगेंद्र यादव ने एक ट्वीट में हालांकि इस बात को साफ किया है लेकिन जब खुद PIB, पीयूष गोयल और कृषि मंत्री की तरफ से सूचना या रही तो खेल तथ्यों का नहीं, धारणा निर्माण का बन जाता है।
BKU का राग भानू
बिलकुल यही काम कानूनी मोर्चे पर सरकार ने बड़ी सफ़ाई से किया है, हालांकि इसके निहितार्थ अभी स्पष्ट नहीं हैं। दो दिन पहले ही भारतीय किसान यूनियन (भानू) गुट के नेता ठाकुर भानू प्रताप सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में डीएमके के सांसद तिरुचि शिवा की कृषि कानूनों के विरोध में लगायी एक याचिका में अभियोजन पक्ष बनने का आवेदन किया है। इस आवेदन के बिंदु 12 में कहा गया है कि देश भर में किसान आंदोलन बीकेयू(भानू) और अन्य संगठनों के नेतृत्व में चल रहा है।
pdf_upload-385791बीकेयू(भानू) गुट राकेश टिकैत से टूट कर कुछ वर्ष पहले अलग हुआ था और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में इसका काम है। माना जाता है कि यह संगठन भारतीय जनता पार्टी की राजनीति का समर्थक है और सरकार की ओर से ही इसे काम पर लगाया गया है।
इस याचिका का कानूनी उद्देश्य चाहे जो हो, लेकिन इस किसान गुट की मंशा का पता भानू प्रताप सिंह के ताज़ा बयानों से लगता है जिसमें उन्होंने किसान नेताओं की जांच करवाने की बात कही है, जो सरकार और मीडिया द्वारा कथित अतिवादी गुटों को अलग-थलग डालने के कार्यक्रम का हिस्सा जान पड़ता है।
कहा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह से बातचीत करने के बाद ठाकुर भानू प्रताप सिंह के गुट ने नोएडा-दिल्ली का रास्ता खोलने का निर्णय ले लिया। इस कदम से आहत होकर उन्हीं के गुट के राष्ट्रीय प्रवक्ता व राष्ट्रीय महासचिव सहित तीन नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है।
अन्ना की चिट्ठी
किसान आंदोलन में बस अन्ना हजारे की कमी थी। अब वे भी सक्रिय हो गये हैं। उन्होंने कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर को एक चिट्ठी लिख कर कहा है कि पिछले साल फरवरी में छूटा हुआ अनशन वे दोबारा शुरू करना चाहते हैं और इसके लिए सही समय व जगह पर विचार कर रहे हैं।