प्रशांत भूषण पर उनके किये दो ट्वीट के मामले में चल रहे अवमानना के केस में आज सज़ा पर सुप्रीम कोर्ट में बहस थी। भूषण की ओर से पेरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट राजीव धवन और अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को सुनने के बाद जस्टिस अरुण मिश्र ने सज़ा के फैसले को सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस मिश्र 3 सितम्बर को रिटायर हो रहे हैं।
मंगलवार सुबह शुरू हुई सज़ा पर सुनवाई के दौरान बेंच ने आधे घंटे का ब्रेक लिया, उसके बाद सुनवाई दोबारा शुरू हुई तो काफी नाटकीय तरीके से अपने अंजाम तक पहुंची।
धवन की दलीलों के बाद जस्टिस मिश्र ने उनसे पूछा कि उन्हें क्या लगता है कि कितनी सज़ा दी जानी चाहिए। इस पर धवन ने कहा कि पहले भी ऐसी सज़ा दी चुकी है कि अवमानना करने वाले को कोर्ट में आने से वर्जित किया गया है। दूसरी सज़ा अवमानना के कानून में वर्णित है ही।
इसके बाद धवन ने बेंच से अनुरोध किया कि वह सज़ा देकर भूषण को शहीद न बनावे। भूषण को यदि सजा हो गयी तो एक तरफ उन्हें शहीद करार देने वाले लेख आएंगे और दूसरी तरफ़ इस सजा को सही ठहराने वाले लेख लिखे जाएंगे। धवन ने कहा कि भूषण अपनी शहादत नहीं चाहते और इस विवाद को यहीं समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
अटॉर्नी जनरल ने आखिरी प्रतिक्रिया मांगे जाने पर उन्होंने कहा कि यह मामला तीन पक्षों का है और हमारे सामने केवल अवमानना करने वाले का पक्ष है, उन जजों को भी सुना जाना चाहिए जिनकी अवमानना हुई है। फिर इसका मतलब यह होगा कि जांच चलती ही जाएगी। धवन ने बेंच से कहा कि इसीलिए माननीय न्यायमूर्ति यह कह सकते हैं कि प्रशांत भूषण के बचाव को वह नहीं मानता और ऐसा कह के मामले को खत्म कर सकते हैं।
सुनवाई समाप्त करने और फैसला सुरक्षित रखने से पहले जस्टिस मिश्र ने कहा कि माफी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता। माफी एक जादुई शब्द है जो कई चीज़ों का इलाज कर सकती है। अगर आपने किसी को चोट पहुंचायी है तो उसे मरहम भी लगाना चाहिए।
इसके बाद जस्टिस मिश्र ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया और सुनवाई समाप्त हो गयी। फैसला सुरक्षित रख लिया गया। इससे पहले सुबह पहले सत्र में 2009 में दायर अवमानना के केस को जस्टिस मिश्र ने सीजेआइ के निर्देश पर दूसरी बेंच को रेफर कर दिया था जिसकी सुनवाई की तारीख 10 सितंबर रखी गयी है।