पूर्व प्रधानमन्त्री चौधरी चरण सिंह का एक किस्सा हैI उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद वो आगरा जिले के फतेहपुर सीकरी विधानसभा व किरावली ब्लॉक के गाँव सिरसा में औचक निरीक्षण करने आएI चौधरी जब कलेक्टर के साथ गाँव में कुर्सी पर बैठे तो वहाँ कुछ बुजुर्ग किसान भी खड़े हुए थेI तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कलेक्टर को कुर्सी छोड़ने के लिए कहा: “इन किसानों को कुर्सी दो क्योंकि अधिकारी सेवक होता है लोगों का, न कि मालिकI”
ये 2021 हैI किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की पार्टी आज सत्ताधारी भाजपा को प्रदेश में चुनौती दे रही है और चुनावी बिगुल के बीच प्रदेश में किंगमेकर बनने का दम भर रही हैI
पिछले दो विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में रालोद का प्रदर्शन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निराशाजनक रहाI न पिता अजीत सिंह जीत सके और ना ही बेटे जयंत चौधरी। जिस पार्टी और उसके नेताओं को किंगमेकर कहा जाता था वो रसातल में चली गयी। इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हवा बदली-बदली सी हैI किसान आंदोलन की वजह से रालोद उठ खड़ी हुई है और केंद्र, प्रदेश सरकार के सामने सवाल कर रही हैI कार्यकर्ता उत्साहित हैI चौ. अजीत सिंह की मृत्यु के बाद पार्टी हिली ज़रूर है लेकिन रालोद चीफ जयंत चौधरी आक्रामक हैंI वो खापों में सभा कर रहे हैंI किसानों के साथ खड़े हो रहे हैंI ‘चलो गाँव की ओर’ नामक अभियान से वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गाँव-गाँव जाकर सभाएं करने की कोशिश भी कर रहे हैंI
प्रदेश की जातिगत राजनीति
उत्तर प्रदेश राजनीतिक रूप से समृद्ध लेकिन संवेदनशील प्रदेश रहा हैI समृद्ध इसलिए क्योंकि यहां से कई प्रधानमंत्री हुए हैं और संवेदनशील इसलिए क्योंकि उत्तर प्रदेश में राजनैतिक स्थिरता किसी भी पार्टी के लिए बड़ी बात है और जातिगत-धार्मिक गतिशीलता कभी भी उलट-पलट कर सकती हैI
उत्तर प्रदेश के जातिगत गणित की बात की जाए तो प्रदेश में 19 -20% उच्च जाति के लोग हैं (9% ब्राह्मण, 4-5% राजपूत, 3-4% वैश्य/बनिया), 40-41% अन्य पिछड़ा वर्ग हैं (9% यादव, 12% गैर-यादव ओबीसी और 20% अति-पिछड़े ओबीसी), 19% मुस्लिम और 21% दलित हैं (13% जाटव दलित, 8% अन्य पिछड़े दलित)I पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 24% जाट वोटर हैं, 19% मुस्लिम वोटर, 11% जाटव दलित, 1.5% यादव और 43.5% अन्य जातियां शामिल हैंI
अनौपचारिक तौर पर रालोद, समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती है लेकिन अभी इसका औपचारिक तौर पर ऐलान नहीं हुआ है तो सीटों का बंटवारा भी तय नहीं हुआ हैI
रालोद की राजनीति: मजगर फार्मूला
रालोद की राजनीति मोटे तौर पर चौधरी चरण सिंह की अजगर (अहीर, जाट, गूजर, राजपूत) के जातिगत ताने-बाने पर घूमी है I चौधरी चरण सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े नेता थेI बाद में उन्होंने इस अजगर फॉर्मूले में ‘म’ से मुस्लिम भी जोड़ा, जिसे मजगर कहा गया लेकिन मजगर का फॉर्मूला मुजफ्फरनगर और शामली में हुए 2013 के साम्प्रदायिक दंगों के बाद फेल हो गयाI मुख्यत: पश्चिम उत्तर प्रदेश का जाट-मुस्लिम गठजोड़ टूट गयाI
यही वजह थी जिसके कारण 2017 में मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल की 71 सीटों पर भाजपा ने 71 में से 51 सीटें जीती थींI संजीव बालियान और सत्यपाल शर्मा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में चौधरी अजीत सिंह और उनकी पार्टी को वहीँ हरा दिया था जहां उनकी तूती बोलती थीI राष्ट्रीय लोकदल को 2012 में 2.8% वोट मिले थे और 2017 में यह वोट 1.8% तक गिर गयाI 2012 में पार्टी 46 सीटों पर लड़ी, 8 सीटें जीती। वहीँ 2017 में पार्टी 131 सीटों पर लड़ी और केवल एक सीट जीती। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 75 सीटों में जाट अच्छी तादाद में हैं और 35 सीटों पर जाट सीधे रूप से प्रभुत्व रखते हैंI
योगीमय भाजपा
उत्तर प्रदेश, जिसे कमंडल की जगह मंडल का प्रदेश कहा जाता था, उसे भाजपा ने 2017 में आखिरकार फ़तह कर ही लियाI उत्तर प्रदेश जीतने के कई कारण थे: पहला, नोटबंदी की वजह से क्षेत्रीय दलों की आर्थिक तंगी; दूसरा, 2013 में मुजफ़्फ़रनगर-शामली में हुए दंगों की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का ध्रुवीकरण; तीसरा, भाजपा का सवर्ण, गैर-जाटव दलित, गैर-यादव ओबीसी को जोड़कर बना जातिगत ताना बाना और चौथा, कमजोर कांग्रेस, बसपा, बंटी हुई सपा का कमजोर रूप में चुनाव में जाना।
इस बार मुख्यमंत्री योगी के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश जीतना सबसे कठिन होने वाला हैI राकेश टिकैत द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश खड़े किये किसान आंदोलन की वजह से भाजपा नेताओं का गाँवों में घुसना मुश्किल हो रहा है तो चुनाव प्रचार दूर की कौड़ी लग रही हैI
मजबूत होती रालोद और चुनौतियाँ
चौधरी अजीत सिंह की मृत्यु से लोकदल को बहुत बड़ा झटका लगा हैI ये देखना रोचक होगा कि क्या जयंत चौधरी, अपने पिता चौधरी अजीत सिंह जैसा नेतृत्व लेकर पार्टी को मजबूत कर पाएंगे या पार्टी को केवल जाट और मुस्लिमों का सांत्वना वोट मिलेगा। रालोद ने बूथ स्तर की तैयारी करने के लिए “हर बूथ जीतेगा यूथ” शुरू किया है तो पार्टी कुछ महीनों से मुस्लिम-जाट वोट मजबूत करने के लिए “भाईचारा ज़िंदाबाद सम्मेलन” करा रही हैI
बसपा-कांग्रेस-भाजपा के कार्यकर्ताओं सहित कई बुद्धिजीवी भी राष्ट्रीय लोक दल से जुड़ रहे हैंI राष्ट्रीय लोकदल की पकड़ पश्चिम उत्तर प्रदेश की ग्रामीण सीटों पर बेहतर हुई है और अगर पार्टी पूरे दम-खम व सुनियोजित तरीके से लड़ती है तो भाजपा व बसपा को बहुत मुश्किल हो सकती है, हालाँकि शहरी सीटों पर अब भी भाजपा से लोगों का मोहभंग नहीं हुआ हैI
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस समय किसान आंदोलन सबसे बड़ा मुद्दा हैI उसके अलावा गन्ना भुगतान जैसी समस्या भी हैI लोकदल के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी कि अगर केंद्र सरकार चुनाव से पहले किसान बिल वापस ले लेती है तो लोकदल की रणनीति क्या होगी? क्या जो माहौल रालोद ने किसान आंदोलन से बनाया है, वो उसको वोट में तब्दील कर पाएंगे?
सागर विशनोई और दिवेश रंजन राजनीतिक विश्लेषक हैं