अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देने वाले समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को जिस भारतीय जनता पार्टी द्वारा कभी ‘मुल्ला मुलायम’ की उपाधि से नवाजा गया था, उन्हीं को केंद्र की मोदी सरकार द्वारा मरणोपरांत हाल ही में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया। सम्मानित किये जाने की घोषणा के बाद जहां मुलायम सिंह यादव के परिवार ने इसके सियासी नफा-नुकसान को भांपते हुए किन्तु-परन्तु की शैली में अप्रसन्नता जाहिर की, वहीं समाजवादी पार्टी के समर्थकों और आम कार्यकर्ताओं द्वारा घोषणा पर खुली प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इस सम्मान को मुलायम सिंह यादव के कद के हिसाब से बहुत छोटा बताते हुए भारत रत्न देने की मांग की गई।
उत्तर प्रदेश पर नज़र रखने वाले राजनैतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि ‘कैडर’ आधारित राजनीति करने वाली भाजपा के लिए मुलायम सिंह यादव को इस सम्मान के लिए चुनना महज राजनैतिक शिष्टाचार का मामला भर नहीं है। इस सम्मान के सहारे भाजपा, समाजवादी पार्टी के परंपरागत मजबूत गढ़ जैसे इटावा, सैफई, मैनपुरी और आजमगढ़ जैसे इलाकों में अपने लिए मजबूत जगह बनाने की कोशिश कर रही है। यह सम्मान सिर्फ सामाजिक न्याय की राजनीति के एक प्रमुख स्तम्भ को पिछड़े समाज के लिए उनकी सेवाओं का प्रतिफल भर नहीं है- जैसा कि पिछड़ी राजनीति के अस्मितावादी प्रचारित कर रहे हैं, बल्कि उससे बहुत आगे 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिहाज से सपा को कमजोर करने की एक रणनीति का हिस्सा है।
वैसे भी, उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय की राजनीति के अगुआ सिर्फ मुलायम सिंह यादव नहीं थे। इस कतार में चौधरी चारण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह समेत कई अन्य चहरे भी थे जिनका सियासी वजन किसी भी स्तर पर मुलायम सिंह यादव से कम नहीं था। फिर, आखिर ऐसी क्या बात थी कि अपनी समूची राजनीति में बाहर से भाजपा के धुर विरोधी दिखने वाले मुलायम सिंह यादव को भाजपा ने ही ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया? अगर यह महज राजनैतिक शिष्टाचार था तो बाकी अन्य लोग, जिनका सियासी वजन मुलायम सिंह यादव के बराबर था- को इस सम्मान के योग्य क्यों नहीं समझा गया?
‘यूपी की सत्ता में बहुजन राजनीति का किला दोबारा खड़ा करना ही नेताजी को सच्ची श्रद्धांजलि’!
समाजवादी पार्टी के समर्थकों और नेताओं के बीच ‘नेताजी’ के उपनाम से मशहूर रहे मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण से सम्मानित किये जाने को उत्तर प्रदेश का सपा समर्थक वोटर किस रूप में लेता है? क्या इस घोषणा के बाद वह अखिलेश यादव की जगह भाजपा को ‘वोट’ दे सकता है? इस सवाल के जवाब में प्रतापगढ़ के जमलामऊ ग्राम के रहने वाले महेंद्र यादव का जवाब दिलचस्प है। वह कहते हैं कि ‘मोदी जी को हम पसंद करते हैं और देश को ऐसे नेताओं की जरूरत है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हम अभी अखिलेश यादव को ही वोट देंगे, भले ही वो प्रधानमंत्री नहीं बन सकते।’
उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई और कहा कि ‘योगी सरकार यादवों को जानबूझ कर अपमानित कर रही है। इस दौर में अगर हम अखिलेश को छोड़ देंगे तो यहाँ हम हाशिये पर चले जाएंगे। अभी अखिलेश जी के साथ खड़ा होना बहुत जरूरी है। बाकी मोदी जी दिल्ली संभालें, हम उनके साथ हैं। योगी जी यादवों से व्यक्तिगत खुन्नस रखते हैं इसलिए हम अभी भाजपा को वोट नहीं देंगे।’
मुलायम सिंह यादव को इस सम्मान के सहारे उत्तर प्रदेश में भाजपा अपना कौन सा समीकरण मजबूत करना चाहती है? इस सवाल के जवाब में समाजवादी पार्टी में लम्बा समय बिता चुके और पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सुल्तानपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके ब्रज मोहन यादव कहते हैं कि ‘भाजपा सरकार का यह फैसला एक परिपक्व सियासी फैसला है। इस फैसले के मार्फ़त नरेंद्र मोदी द्वारा उन लोगों को एक सियासी सन्देश देने की कोशिश की गई है जो अखिलेश यादव के अहंकारी स्वाभाव के कारण समाजवादी पार्टी के भीतर कोई मजबूत जगह नहीं पा रहे हैं। भाजपा को इसका फायदा यह होगा कि अब ‘नेताजी’ और उनकी राजनीति को अपना आदर्श मानने वाले लोग, जो समाजवादी पार्टी में किनारे लगा दिए गये हैं, इसी के सहारे भाजपा के साथ सहज तरीके से जा पाएंगे। इस घोषणा का मतलब यही है। भाजपा इस घोषणा से सपा के बेस सजातीय वोटर के बीच स्थान बनाने की कोशिश करेगी।’
लखनऊ स्थित वरिष्ठ पत्रकार आशीष अवस्थी मुलायम सिंह यादव को दिए गये इस सम्मान पर कुछ अलग राय रखते हैं। वह कहते हैं कि ‘यह सम्मान सपा समर्थकों को पार्टी में शामिल होने का सिर्फ एक संकेत भर नहीं है। दरअसल मुलायम सिंह अपनी पूरी राजनीति में भाजपा के लिए वफादार सहायक रहे। भाजपा जैसी कैडर-बेस्ड पॉलिटिक्स करने वाली पार्टी जब मुलायम सिंह का सम्मान कर रही है तब इसके सियासी मायने यही हैं कि उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की राजनीति के नाम पर बीजेपी को मजबूत करने के ‘खेल’ का मोहरा रहे हैं। इस सम्मान के लिए मुलायम सिंह यादव इसलिए चुने गये क्योंकि वैचारिक तौर पर उत्तर प्रदेश में वाम राजनीति को समेट देने का श्रेय मुलायम सिंह को ही जाता है। मुलायम सिंह की पिछड़ा अस्मिता की राजनीति का फायदा संघ परिवार को समाज में विचारहीनता की एक तैयार जमीन के बतौर मिला। पिछड़ों के बीच यह जिस तरह फैली, उस पर हिन्दू राष्ट्र के लिए एक वैचारिक वोटर तैयार हुआ। आज जब उत्तर प्रदेश में भाजपा मजबूत है तो उसका श्रेय इसी जमीन के निर्माण को जाता है। यह बहुत स्वाभाविक है कि भाजपा मुलायम सिंह यादव का सम्मान पद्म विभूषण देकर कर रही है।’
लखनऊ निवासी मोहम्मद इमरान पेशे से मांस व्यवसायी हैं। अड़सठ साल की इस उम्र में वह बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से लगातार समाजवादी पार्टी को वोट करते आ रहे हैं। इसके पहले वह कांग्रेस को वोट करते थे। जब मैंने उनसे पूछा कि मुलायम सिंह को मरणोपरांत नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, आप इसको किस तरह से लेते हैं और जब मुलायम सिंह पर भाजपा अपना दावा कर रही है तब आप लोग क्या करेंगे? उनका जवाब बहुत चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा कि ‘नेताजी की विरासत का बचाव तो समाजवादी पार्टी के लोग ही नहीं कर पा रहे हैं, हम क्या बोलें? आखिर अखिलेश यादव और उनके घर के लोग नेताजी को सम्मानित करने के खिलाफ नहीं खड़े हैं। वो लोग तो खुद ही भारत रत्न की मांग सरकार से नेताजी के लिए कर रहे हैं। उन्हें तो कहना चाहिए कि जिस नेताजी ने देश और संविधान को बचाने के लिए अयोध्या में गोली चलवाई, उन जैसी शख्सियत को बीजेपी सम्मानित करने के नाम पर अपमानित कर रही है। लेकिन उनके परिवार के लोग ही सरकार की बड़ाई कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘ हमें कौन पूछता है। हमारी कौन सोचता है। सपा के लिए अब हम महत्वपूर्ण नहीं रहे। सपा बदल गई है। हम कुछ नहीं सोचते। बाकी जब चुनाव आएगा तब देखेंगे कि किसको वोट दें।’
लेकिन, जब बीजेपी ने मुलायम सिंह को अपना आदमी घोषित करके सम्मानित कर दिया तब आपके पास क्या विकल्प है? क्या समाजवादी पार्टी पर आप उतना ही भरोसा करते हैं? इस सवाल का जवाब पास खड़े एक नौजवान रईसुद्दीन ने दिया। उन्होंने कहा कि ‘हम तो मज़बूरी में सपा को वोट कर रहे हैं। हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं है। सीएए और एनआरसी के सवाल पर सपा चुप रही जबकि हम सड़क पर धुने जा रहे थे। हमारी पढ़ाई की योजनाओं में कटौती हुई तो अखिलेश यादव जी कुछ नहीं बोले। हमारे पास विकल्प ही नहीं है फिर हम कहां जाएंगे? सपा ने हमारे लिए कोई लड़ाई नहीं लडी, लेकिन उन्हें वोट नहीं दें तो किसको दें। कोई विकल्प हो तो आप ही बताइए?’
एक उदार समाजवादी विचारधारा ही भाजपा की काट हो सकती है: अखिलेश यादव
मुलायम सिंह यादव को मोदी सरकार द्वारा सम्मानित करने से क्या उत्तर प्रदेश का मुसलमान समाजवादी पार्टी को वोट देना छोड़ देगा? इस सवाल के जवाब में सामाजिक कार्यकर्त्ता गिरसंत यादव कहते हैं कि ‘जब तक उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के पास भाजपा के खिलाफ कोई मजबूत विकल्प नहीं उभरता, अखिलेश यादव को मुसलमान वोट देता रहेगा। अब भाजपा के खिलाफ मजबूत विकल्प कब उभरता है- इस पर सारी चीजें निर्भर हैं। मुसलमान अखिलेश यादव का विकल्प खोज रहा है।’
क्या भाजपा मुलायम सिंह यादव को सम्मानित करने के बहाने उत्तर प्रदेश में सपा के बुनियादी वोटर को अपनी तरफ आकर्षित कर पाएगी और क्या सपा को अब मुसलमान वोट नहीं देंगे? इस सवाल के जवाब में लखनऊ स्थित वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि ‘इस सम्मान का बीजेपी को कोई बहुत फायदा फ़िलहाल नहीं होगा। अभी उत्तर प्रदेश में सपा का जातीय समर्थक समाजवादी पार्टी को छोड़ने नहीं जा रहा है। इसका कारण यह है कि प्रदेश का कुर्मी अभी पिछड़ों का नेतृत्व करने की कोशिश कर रहा है। सपा के लोग यह मानते हैं कि इसके लिए सरकार ने अघोषित नीति बना रखी है। इस ‘रिएक्शन’ में सपा समर्थक यादव अखिलेश के बैनर तले अभी एकत्र रहेंगे। योगी सरकार को यादवों को ‘अडॉप्ट’ करने की कोशिश करनी चाहिए। उनमें विश्वास पैदा करना चाहिए। जहां तक प्रदेश के मुसलमानों की बात है वह काफी समय से अखिलेश यादव का विकल्प खोज रहे हैं लेकिन जब तक विकल्प नहीं मिलता वह सपा को वोट देना नहीं छोड़ेंगे।’
कुल मिलाकर, मोदी सरकार द्वारा मुलायम सिंह को सम्मानित करने का भले ही भाजपा को तत्काल कोई फायदा नहीं मिले, लेकिन अखिलेश यादव और समूची सपा द्वारा जिस तरह से इस सम्मान पर एक सतही विरोध दिखाया गया उसने मुसलमानों में भाजपा के खिलाफ सपा के रवैये पर एक और आशंका जरूर पैदा की है। समाजवादी पार्टी के ‘सेक्युलरिज्म’ पर पहिले से आशंकित मुसलमानों की आशंका और गहरी हुई है। बस उसे विकल्प की तलाश है। विकल्प मिलते ही सपा उत्तर प्रदेश में एक अपना एक मजबूत वोट बैंक खो बैठेगी।