बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित बनमनखी चीनी मिल की गिनती किसी समय एशिया की सबसे बड़ी चीनी मिलों में होती थी। इस चीनी मिल के कारण पूर्णिया तथा आसपास के इलाके के लाखों किसान-मजदूरों को रोजगार मिला हुआ था। प्रतिदिन एक हजार क्विंटल चीनी उत्पादन की क्षमता वाली बनमनखी की यह चीनी मिल आज बस एक खंडहर नजर आती है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में रोजगार का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जा रहा है। सभी पार्टियां बिहार के प्रवासी मजदूरों को अपने ही राज्य में लाखों की संख्या में रोजगार देने का वादा कर रही हैं, लेकिन उद्योग लगाने के सवाल पर राज्य के मुख्यमंत्री का बयान आता है कि ‘’यह राज्य समुद्र किनारे नहीं है, इसलिए कारख़ाने नहीं लग पाये।’’
ऐसे में नेताओं को यह याद दिलाया जाना ज़रूरी है कि बिहार भले समुद्र के किनारे नहीं है, लेकिन आज से कुछ दशक पहले तक उद्योग यहां भी थे और पर्याप्त थे।
एक दौर था जब देश की कुल चीनी का 40 फीसद उत्पादन अकेले बिहार में होता था। 1940 के दशक तक बिहार में 33 चीनी मिलों की स्थापना हो चुकी थी, लेकिन पिछले चार-पांच दशकों में एक-एक कर दर्जनों चीनी मिलें बंद होती गयीं।
इन्हीं में एक बनमनखी चीनी मिल थी, जिसे 1997 में तत्कालीन सरकार ने बंद कर दिया। एक झटके में मिल के सारे कर्मचारी सड़क पर आ गए। क्षेत्र के सैकड़ों गांवों के किसानों की आमदनी के साधन पर गहरा आघात लगा।
यही हश्र मोतिहारी चीनी मिल, चकिया चीनी मिल, मुजफ्फरपुर की मोतीपुर स्थित चीनी मिल, सारण की मढ़ौरा स्थित चीनी मिल, गोपालगंज की हथुआ चीनी मिल, नवादा की वारिसलीगंज चीनी मिल, सकरी और लोहट चीनी मिल, वैशाली की गोरौल चीनी मिल और गया की गुरारू चीनी मिल का हुआ।
विनोद कुमार बनमनखी मिल के मेकैनिकल विभाग में काम करते थे और वहीं के स्टाफ क्वार्टर में अब भी रहते हैं। वे बताते हैं, ‘’उस समय बनमनखी चीनी मिल का एशिया लेवल पर नाम था। मिल में परमानेंट तथा सीजनल मिलाकर कुल 750 से 800 के बीच स्टाफ कार्यरत थे। मिल का उत्पादन इतना था कि गन्ना देने के लिए बनमनखी में ट्रैक्टरों की दो किलोमीटर लंबी लाइन लगी रहती थी। मिल में नेपाल से लेकर बेगूसराय तक के किसानों का गन्ना आता था। चीनी की क्वालिटी बेहद अच्छी थी तथा इसकी सप्लाई भूटान तक होती थी। ‘’
बनमनखी चीनी मील की स्थापना दि पूर्णिया को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री लिमिटेड, बनमनखी के नाम से 28 अप्रैल 1956 को हुई थी। चीनी मिल 3 जून 1977 तक सहकारिता विभाग के अधीन रही। 2 फरवरी 1970 से इस मिल में चीनी उत्पादन शुरू हुआ। उसी समय देश के राष्ट्रपति से अनुमति प्राप्त करते हुए बिहार सरकार के अधिनियम 13/77 के तहत बिहार के राज्यपाल द्वारा मिल को सहकारिता विभाग से बिहार राज्य चीनी मिल निगम को सौंप दिया गया। मिल की अपनी 119.76 एकड़ की अचल संपत्ति है जिसमें से 64.76 एकड़ भूमि में मिल, आवासीय कॉलोनी एवं गोदाम है।
उस समय को याद करते हुए विनोद कुमार बताते हैं, ‘’इस इकलौती चीनी मिल ने क्षेत्र के लाखों लोगों को रोजगार दिया हुआ था। इसके कारण क्षेत्र से नाममात्र ही मजदूरों का पलायन होता था। साथ ही लोकल मार्केट में भी रौनक बनी रहती थी। अचानक मिल के बंद होने से क्षेत्र के किसान, मजदूर के हाथों से आमदनी फिसल गई।”
आखिर क्या वजह थी इस मिल के बंद होने की? इसका जवाब गजेंद्र मिश्र देते हैं, जो मूल रूप से समस्तीपुर के रहने वाले हैं और मिल में गन्ना ग्राम सेवक थे। उन्होंने बताया कि सन 1982-83 का सीजन लगभग सात-आठ महीने लंबा चला था, जब प्रोडक्शन में घाटा हुआ था। उसी समय से मिल की स्थिति खराब होना शुरू हो गई थी।
मिश्र बताते हैं, ‘’धीरे-धीरे कच्चा माल मिलना बंद हो गया। किसानों का भुगतान समय पर नहीं होने से उन्होंने गन्ना लगाना भी बंद कर दिया। 1997-98 आते-आते मिल पूरी तरह से बंद हो गई। जिस स्टाफ के पास कागजात थे उनको तो पेमेंट मिल गयी, मगर कई कर्मचारी ऐसे थे जिनके पास कागजात नहीं थे। उनको पेमेंट नहीं मिल पायी। इनमें से ज्यादातर सीजनल स्टाफ थे।’’
खुद गजेंद्र मिश्र ने कुछ वर्षों तक प्राइवेट नौकरी की। पिछले करीब 25 वर्षों से ज्यादा समय से वे बनमनखी के बाजार में पान की दुकान चला रहे हैं। मिल बंद होने के बाद यही उनके परिवार के भरण-पोषण का इकलौता साधन है।
मिश्र बताते हैं, ‘’कुछ महीने पहले मिल खुलने की सुगबुगाहट हुई थी। उस समय बाहर से एक पार्टी आई थी। ड्रोन उड़ाकर जमीन का सर्वेक्षण भी किया गया। ऐसा माहौल बना कि मिल फिर से चालू होने की उम्मीद जगी। सुनने में आया कि 3 अक्टूबर को जमीन का भूमि पूजन होगा। 3 अक्टूबर बीतने के बाद पता चला कि 3 नवंबर को उद्घाटन होगा, मगर समय बीत गया और वोटिंग का दिन आ गया। अब सिर्फ डेट पड़ रहा है, काम नहीं हो रहा।’’
मिल के लिए बियाडा द्वारा टेंडर निकाल दिया गया है। जल्द ही इस पर आगे का काम शुरू कर दिया जाएगा।
स्थानीय विधायक और पर्यटन मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि
जून में बनमनखी चीनी मिल को बहाल करने के लिए मुंबई की रहेजा एंड प्रसाद कंस्ट्रक्शंस कंपनी द्वारा एक हजार करोड़ रूपये के निवेश की खबर सामने आई। बीते 22 जून को कंपनी के निदेशक गोपाल प्रसाद के साथ कंपनी के मुख्य सचिव केडी सिंह, बिहार सरकार के गन्ना विभाग के संयुक्त सचिव राम गोविद सिंह एवं बिहार इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (बियाडा) के अधिकारियों ने मिल का निरीक्षण भी किया था।
उनके साथ बिहार सरकार की गन्ना मंत्री बीमा भारती एवं पर्यटन मंत्री तथा बनमनखी विधानसभा से चार बार के विधायक कृष्ण कुमार ऋषि भी आए थे। इस बारे में पूछने पर कृष्ण कुमार ऋषि ने बताया, ‘’मिल के लिए बियाडा द्वारा टेंडर निकाल दिया गया है। जल्द ही इस पर आगे का काम शुरू कर दिया जाएगा।’’ इस संबंध में हमने गन्ना मंत्री बीमा भारती की प्रतिक्रिया जाननी चाही, मगर उनकी प्रतिक्रिया हमें प्राप्त नहीं हो सकी।
ख़बरों की मानें तो उस समय कंपनी के निदेशक गोपाल प्रसाद ने बियाडा द्वारा राशि प्राप्त कर लेने तथा एलॉटमेंट लेटर दे देने पर अतिशीघ्र काम प्रारंभ कर देने की बात कही थी। साथ ही पहले के एक हजार क्विंटल उत्पादन की तुलना में पांच हजार टन प्रतिदिन उत्पादन के साथ-साथ इथनॉल का उत्पादन एवं 30 मेगावाट बिजली का भी उत्पादन करने की बात भी सामने आयी थी।
बनमनखी के दक्षिण में स्थित पुरंदाहा गांव निवासी विनोद ठाकुर बताते हैं कि गांव के करीब 50 किसान चीनी मिल के कारण गन्ना की खेती करते थे। यहां प्रति एकड़ 250-300 क्विंटल गन्ना का उत्पादन होता था।
उन्होंने बताया, ‘’गन्ना इस क्षेत्र के किसानों की मुख्य नकदी फसल थी, मगर मिल के बंद होने से किसानों की आर्थिक सबलता खत्म हो गई तथा यहां के किसान आर्थिक रूप से पिछड़ गए।’’
मिल बंद होने के बाद इसके संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं होने के चलते इसकी तमाम मशीनें तथा कल-पुर्जे कबाड़ी में बेच दिए गए हैं। पिछले कुछ दशकों से इस चीनी मिल को चालू करवाने का मुद्दा चुनावों में प्रमुखता से उठाया जाता रहा है, मगर क्षेत्र के किसान-मजदूर दशकों से बंद पड़ी चीनी मिल के फिर से शुरू होने की सिर्फ राह ही देख रहे हैं।
विडम्बना है कि जिस राज्य में कुछ दशक पहले तक सिर्फ चीनी से कई लाख लोगों को रोजगार मिलता था, आज वही रोजगार चुनावी वायदों और घोषणाओं में ढूंढा जा रहा है।