बेमौसम कुछ भी अच्छा नहीं होता, बारिश हो या खैरात!


लॉकडाउन से पहले महामारी की शुरुआत में मध्‍यप्रदेश को छोड़ दें, तो कोरोना के बीच बिहार देश का पहला राज्य है जहां चुनाव हो रहा है। इस मौके पर निर्मला जी ने खानदानी शफ़ाखाने से क्या बढ़िया नुस्‍खा निकाला है- राज्य में सबको मुफ्त कोरोना का टीका! अब तो आपको समझ लेना चाहिए कि फ़कीर के झोले में क्या-क्या है. अफ़सोस बस इस बात का है कि लोकसभा चुनाव नहीं हो रहा, नहीं तो शायद पूरे देश को फ्री कोरोना वैक्सीन की घोषणा करतीं निर्मला जी.

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार चुनाव के लिए बीजेपी का संकल्प-पत्र जारी करते हुए ऐलान किया कि बिहार में सबको मुफ़्त कोरोना वैक्सीन दी जाएगी! ऐलान करते हुए वे ऑफर की टर्म्‍स एंड कंडीशंस बताना भूल गयीं, कि वैक्‍सीन मुफ्त में तभी मिलेगी जब बिहार के मतदाता उनकी पार्टी या गठबंधन को बहुमत से सत्ता सौंपेंगे. वैसे, इस घोषणा के पीछे एक और कारण हो सकता है. बिहार के वर्तमान कार्यकारी उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी कोरोना से संक्रमित पाये गये हैं!  

अच्छा है कि निर्मला जी उस वक्त मंत्री नहीं बनी थीं जब देश में चेचक के खिलाफ टीकाकरण का कार्यक्रम चलाया जा रहा था या उसके बरसों बाद जब पोलियो उन्‍मूलन के लिए देश भर में ‘दो बूँद जिन्दगी की’ पिलायी जा रही थी. यदि उस वक्त मोदीजी प्रधान सेवक होते और निर्मला जी वित्त मंत्री, तो कैसी घोषणाएं होतीं उसकी कल्पना मात्र से आप रोमांचित हो उठेंगे.

बहरहाल, बेमौसम कुछ भी अच्छा नहीं लगता. न फल, न सब्ज़ी, न बरसात. बिना चुनावी मौसम के घोषणाएं भी अच्छी नहीं लगती हैं. बेमौसम घोषणाओं से दिक्‍कत भी हो सकती है. अपच हो सकता है. जैसे, निर्मला जी ने घोषणा तो कर दी, लेकिन मामला चुनाव आयोग पहुंच गया.

अब ये बात अलग है कि चुनाव भी उनका, आयोग भी उनका, लेकिन शिकायत तो शिकायत है. कोई न कोई तो करेगा ही.  

इस साल बेमौसम अतिवृष्टि ने निज़ाम के शहर हैदराबाद को डुबो दिया. मूसलाधार बारिश से हैदराबाद के बड़े हिस्से में बाढ़ आ गयी, कम से कम 50 लोगों की मौत हो गयी और हजारों करोड़ का नुकसान हुआ है. अब यदि भविष्य में बरसात से पहले कहीं चुनाव का मौसम हो, तो संकल्प-पत्रों में मुफ़्त छाता, नाव और लाइफ जैकेट बांटने की घोषणाओं का सिलसिला शुरू हो सकता है.

वैसे भी हमारे प्रधानजी को तो यह तक पता होता है कि कौन-कौन रेनकोट पहनकर नहाता है देश में. उनके लिए रेनकोट को भी मुफ्त वाली सूची में शामिल किया जा सकता है.

बादल छाये बिना दिल्ली में मोर नाचा, सबने देखा. बादलों को अपमानित महसूस हुआ तो निज़ाम के शहर में जाकर बरस गये! वैसे मुंबई भी डूबती है हर साल, किन्तु बरसात में. डूबता तो असम और बिहार भी है, केरल भी और बंगाल भी. हर नुकसान के बाद पानी उतर भी जाता है.  

किन्तु मूल बात यह है कि सत्ता के नशे में डूबा व्यक्ति कभी भी कुछ भी डुबो सकता है. एक पूरा देश भी. 

अगले साल पश्चिम बंगाल में चुनाव होना है. वहां के लिए एक घोषणा तो हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष ने सिलीगुड़ी में कर दी है- संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए. चुनाव से पहले राज्य में सबको रसगुल्ला, ढकाई साड़ी और धोती, नोलेन गुड़ आदि देने की घोषणा करें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.

याद है आपको 15 लाख का जुमला? हर साल 2 करोड़ रोजगार का वादा और बाद में सुधीर चौधरी के स्टूडियो के बाहर ठेले पर पकोड़े बेचने की सलाह? डीजल-पेट्रोल 35-40 रुपये में देने का वादा याद नहीं है न आपको? कोई नहीं, उनकी कविता याद है? जी, वही, मैं देश नहीं बिकने दूंगा वाली!

रेल बिकी, प्लेटफॉर्म बिक गये, हवाई अड्डे भी. पता चला क्या? अहसास हुआ क्या? आपको तो यह भी नहीं पता होगा कि आपकी सारी निजी जानकारियां तक बिक गयी हों शायद. सैवलॉन वाला विज्ञापन याद करिए- ज्यादा असर, बिना जलन!

दरअसल, विश्व गुरु बनने के फेर में अपना देश अब विकासशील देशों की सूची से भी बाहर है. 2019 के आम चुनाव से पहले जब मोदी सरकार विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की मदहोशी में गोते लगा रही थी, ठीक उसी समय विश्व बैंक ने यह झटका दिया था.

वर्ल्ड बैंक ने भारत से विकासशील देश का तमगा छीन लिया. इसी के साथ भारत की कैटेगरी मिडिल इनकम से घटाकर लोअर मिडिल इनकम कर दी गयी. वर्ल्ड बैंक के इस कदम से भारत जांबिया, घाना, ग्वाटेमाला, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों की श्रेणी में शामिल हो गया. ब्रिक्स देशों में भारत को छोड़कर कोई भी देश लोअर मिडिल इनकम कैटेगरी में नहीं है.

अब कोविड-19 और अविवेकपूर्ण देशव्यापी तालाबंदी की घोषणा के कारण आज देश की अर्थव्यवस्था 24 फीसदी नीचे चली गयी है. अर्थव्यवस्था में यह गिरावट केवल कोरोना संकट और तालाबंदी के कारण नहीं आयी है. 8 नवम्बर 2016 को रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक नोटबंदी की घोषणा से इस गिरावट की नींव रखी गयी थी. उस आपातकाल घोषणा के बाद भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह सहित विश्व के कई चर्चित आर्थिक विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री मोदी के निर्णय को भयंकर भूल कहा था.

मोदी और उनके मंत्री सहित तमाम अंधभक्त इस बात को स्वीकार करने से इंकार करते हुए नोटबंदी का विरोध करने वालों को ट्रोल करते रहे, विकास विरोधी और चोर घोषित करते रहे.

बैंकों के बाहर लम्बी-लम्बी कतारें लगी रहीं, सैकड़ों लोगों की मौत हो गयी. घरों में शादियां रुक गयीं, किन्तु सहिष्‍णु लोग तर्क देने लगे- जब एक सिपाही देश के लिए सीमा पर अपनी जान दे सकता है तो क्या नागरिक देशहित में क़ुरबानी नहीं दे सकते? सांसद मनोज तिवारी गाना गाकर लाइन में लगे लोगों का उपहास करते देखे गये! प्रधानमंत्री ने विदेश की ज़मीन पर देश के गरीबों का भरी सभा में उपहास किया.  

नोटबंदी काले धन के नाम पर की गयी थी, किन्तु बाद में रिजर्व बैंक ने कहा कि जितने नोट चलन में थे सब बैंक में लौट आये! तो कालाधन कहां चला गया? नोटबंदी के दौरान बीजेपी की संपत्ति में कितना इजाफ़ा हुआ यह जांच का विषय है. राज्‍यों में बीजेपी के नये मुख्‍यालयों और इमारतों की चमक कुछ कुछ कहती है.

जो बचा था नोटबंदी के बाद, वह कसर जीएसटी ने पूरी कर दी.

ये बातें अब पुरानी हो चुकी हैं और कई बार कही-लिखी जा चुकी हैं, किन्तु जो घाव नोटबंदी और जीएसटी से लगे थे वे अब भी हरे हैं. वे घाव अब सड़ कर जानलेवा बन चुके हैं.

इसीलिए बेमौसम कुछ भी अच्छा नहीं होता तन मन के लिए. भले बाज़ार में आजकल सब कुछ मिलता हो हर मौसम में. जैसे बिना मौसम गोभी खाने से पेट में गैस हो जाती है, वैसे ही बेमौसम किसी की मन की बात पर भरोसा कर के कई भयंकर आपदाएं आ सकती हैं.


नित्यानंद गायेन वरिष्ठ पत्रकार और कवि हैं


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