भारत के तीन राज्यों, गुजरात, मिजोरम, नगालैंड, लक्षद्वीप के बाद बिहार ने शराबबंदी कर खूब वाहवाही बंटोरी, पर असल में इन राज्यों में हुआ क्या? जहां शराब का कारोबार कानूनी तरीके से हो रहा था वहां वह गैरकानूनी तरीके से होने लगा. चंद रूपयों में मिलने वाली बोतल हजारों की हो गई. ड्राई स्टेट बिहार में शराबबंदी के बाद अपराध की घटनाएं बढ़ गयीं.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2016 में बिहार में शराबबंदी कानून पारित कर पूर्ण रूप से शराब की खरीद और बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, जिसके बाद से यह ड्राई स्टेट बन गया. कहने को हवाई अड्डे, रेल स्टेशन, बस अड्डे पर पुलिस की तैनाती की गयी, बाहर से आने वालों मुसाफिरों के बैग और सामानों की तलाशी दिखावे के लिए बदस्तूर जारी है. दूसरी तरफ हाल ही में प्रकाशित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे तो कुछ और ही बता रहा है. सर्वे के मुताबिक बिहार में 15.5 फीसदी पुरुषों ने शराब पीने की बात स्वीकार की है. शहरी बिहार की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में शराब की खपत ज्यादा है.
यह बात तो मोबाइलवाणी पर लगातार आ रही अवैध शराब की बिक्री की खबरों से भी साफ हो रही है. बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 फीसदी लोग शराब पीते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 14 फीसदी था. यह स्थिति तब है जब राज्य में शराब की दुकानें और ठेके बंद कर दिए गए हैं जबकि महाराष्ट्र, जहां शराबबंदी लागू नहीं है वहां भी 13.9 फीसदी पुरुष शराब का सेवन करते हैं. यानि बिहार की तुलना में कम. महाराष्ट्र के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में शराब की खपत का अनुपात बिहार की तुलना में कम है.
मोबाइलवाणी के वे श्रोता जो बिहार में रह रहे हैं वे अपनी आंखों से खुलेआम शराब के अवैध कारोबार को होते देख रहे हैं. दिक्कत ये है कि पुलिस कुछ जगहों पर छापेमारी कर खानापूर्ति कर रही है पर इससे कारोबार पर कोई असर नहीं हो रहा है. चंद रूपए की जमानत पर आरोपी छूट जाते हैं और सिलसिला चलता रहता है. इन्ही श्रोताओं ने मोबाइलवाणी के जरिए बताया है कि बिहार जैसे राज्य में शराबबंदी मजाक बनकर रह गई है.
मिलीभगत का है सारा खेल
मुंगेर के हवेली खड़गपुर क्षेत्र से अविनाश कुमार बताते हैं कि उसके गांवों में अवैध शराब की ब्रिकी खुलेआम जारी है. इस बात की खबर पुलिस को भी है लेकिन कोई कुछ नहीं करता. अगर छापेमारी कर कुछ बोतलें जब्त भी हो जाएं तो इससे मुख्य कारोबारी तक पुलिस पहुंच भी नहीं पाती. सबसे खास बात ये है कि गांव के युवा और शहरों के बेरोजगार युवा नशे के जाल में फंस रहे हैं. इस कारोबार में छोटे बच्चों और किशोरों को भी निशाना बनाया जा रहा है. अगर वे शराब का सेवन नहीं कर रहे हैं तो शराब की ब्रिकी का साधन बन रहे हैं. अविनाश कहते हैं कि सब कुछ मिलीभगत का नतीजा है.
गिद्धौर से रंजन कुमार कहते हैं कि यह बात जगजाहिर हो चुकी है कि शराब माफिया संबंधित थाने में हर माह निश्चित राशि पहुंचा देते हैं. यही कारण है कि पुलिस दिखावे की छापेमारी करती है और कुछ एक शराब की बोतलें जब्त कर लेती है जबकि असल कारोबार तो इस पूरे घटनाक्रम के नीचे खुलेआम चल रहा है. समस्तीपुर से एक श्रोता ने मोबाइलवाणी पर बताया कि उनके गांव में कच्ची शराब बनाई जा रही है. यह काम घर पर महिलाएं कर रही हैं. जाहिर सी बात है कि महिलाओं से यह काम करवाया जा रहा होगा पर सवाल ये है कि गांव में शराब निर्माण हो रहा है और कोई कुछ नहीं करता?
आखिर दिक्कत कहां है?
जमुई से विजय कुमार सिंह बताते हैं कि जिले के आसपास के लगभग सभी गांवों में देशी शराब आसानी से उपलब्ध है. अगर शराब बाहर से नहीं ला पा रहे हैं तो उसे घरों में तैयार किया जा रहा है और इसमें भी गांव के युवाओं की भूमिका बहुत ज्यादा है. पुलिस सब जानती है पर पता नहीं क्यों कार्रवाई नहीं होती! सवाल ये है कि आखिर दिक्कत है कहां?
सरकार के पास घरेलू हिंसा की शिकायतें आईं, फिर एक रिसर्च हुई कि ये सारा खेल शराब के कारण है तो सरकार ने शराब पर बैन लगा दिया लेकिन इससे शराब बिकना तो बंद नहीं हुआ. 2015 में नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन की छतरी के तले बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े. और उसी समय महिला वोट हासिल करने के लिए यह घोषणा हुई कि अगर वे जीते तो बिहार में शराबबंदी हो जाएगी. आधी आबादी ने उन पर भरोसा किया और महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.92 से ज्यादा हो गया. कई क्षेत्रों में 70 फीसदी से अधिक महिलाओं ने मतदान किया. नीतीश विजयी हुए और सत्ता में लौटते ही राज्य में शराबबंदी की घोषणा कर दी, पर इस घटनाक्रम से कुछ पीछे जाकर देखें तो पता चलता है कि नीतीश कुमार के निर्णय के कारण ही राज्य में पंचायत स्तर तक शराब की दुकानें खुल गई थीं.
2005 से 2015 के बीच बिहार में शराब दुकानों की संख्या दोगुनी हो गई. शराबबंदी से पहले बिहार में शराब की करीब छह हजार दुकानें थीं और सरकार को इससे करीब डेढ़ हजार करोड़ रुपये का राजस्व आता था. 1 अप्रैल 2016 को बिहार देश का ऐसा पांचवां राज्य बन गया जहां शराब के सेवन और जमा करने पर प्रतिबंध लग गई. फिर भी स्थिति अब ऐसी हो गई है कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब राज्य के किसी ना किसी कोने से शराब की बरामदगी और शराबबंदी कानून तोड़ने की खबरें सुर्खियां ना बनती हों. यानि शराब को केवल राजनीति के लिए इस्तेमाल किया गया. जब जरूरत थी तो उसका विस्तार हुआ और जब लगा कि बंद करने से बात बनेगी तो कागजों पर आदेश जारी कर बंद कर दिया.
कुल मिलाकर राज्य सरकार के दोनों हाथ भरे हुए हैं. राज्य को जो राजस्व कानूनी तरीके से हासिल हो रहा था वह अब अवैध शराब की बिक्री के कारण काले धन के रूप में उच्च वर्ग तक पहुंच रहा होगा और शायद कई गुना बढकर.
यहां चूहे पी जाते हैं शराब
नौ लाख लीटर से भी ज़्यादा शराब चूहे पी गए… बिहार में शराबबंदी लागू होने के साल भर बाद ही इस ख़बर ने कई लोगों को चौंकाया था. अब ये रोज का खेल है. शराब चूहे पी रहे हैं या इंसान पर जो भी है बिहार कम से कम ड्राई स्टेट की श्रेणी में रहने लायक तो नहीं है. शराबबंदी होने के बाद से अब तक बिहार में अवैध शराब कारोबार के डेढ़ लाख से भी ज़्यादा मामले दर्ज हुए हैं पर ये मत पूछिए कि इनमें से सजा कितनों को हुई!
जमुई से दिलीप पांडे बताते हैं कि सबको पता है कि कहां शराब बिक रही है, पुलिस को भी पता है पर कार्रवाई नहीं होती. पटना में तो यह काम और भी बेफिक्री से हो रहा है. कच्ची शराब हो या विदेश ब्रांड हर बोतल होम डिलिवरी पर मिल रही है. विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव मंच से सवाल करते हैं कि 200 रुपया का बोतल 1500 में मिल रहा है कि नहीं मिल रहा है, तो ये 1500 और 200 के बीच का जो अंतर 1300 रुपया है. वो किसके पॉकेट में जा रहा है? लेकिन इस मसले को राजनीति से अलग करके भी देखा जाए तो सवाल यही है कि पैसा आखिर जा कहां रहा है? क्योंकि शराब तो बिक रही है, वो भी खुलेआम.
हाल ही में चुनाव के दौरान मतदान से पहले पुलिस ने नेपाल बार्डर के आसपास छापेमारी करके कई बार शराब की बोतलों से लदे वाहनों को जब्त किया है. बिहार के दक्षिण में झारखंड है और उत्तर में नेपाल, जहां शराब पर कोई पाबंदी नहीं है. यानि बिहार में शराब आने के सारे रास्ते खुले हैं. इन रास्तों को बंद करने के लिए मैनपावर की जरूरत है इसलिए उत्पाद विभाग ने राज्य के गृह विभाग से करीब 2000 सैप जवान की मांग की पर यह मांग अब तक मांग ही बनी हुई है. इसके उलट पुलिस की संदिग्धता इसी बात से पता चलती है कि शराबबंदी क़ानून को लागू करने में लापरवाही के आरोप में, उसे तोड़ने और अवैध शराब के व्यापार को संरक्षण देने के आरोप में अभी तक कुल 430 पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की जा चुकी है.
हालात यह है कि पुलिस और मद्य निषेध विभाग की टीम यहां हर घंटे औसतन 1341 लीटर शराब जब्त कर रही है, मिनट के हिसाब से आंकड़ा 22 लीटर प्रति मिनट आता है. आंकड़े बताते हैं कि राज्य में इस साल करीब एक करोड़ लीटर से अधिक अवैध देशी और विदेशी शराब पकड़ी जा चुकी है. मुजफ्फरपुर, वैशाली, गोपालगंज, पटना, पूर्वी चंपारण, रोहतास और सारण वाले इलाकों में शराब की अधिकतम बरामदगी हुई है. जाहिर है, इतना बड़ा खेल संगठित होकर ही किया जा रहा है.
मधुबनी से रामानंद सिंह ने जानकारी दी कि झंझारपुर पुलिस ने हाल ही में एक परिवार की महिलाओं को हिरासत में लिया है. ये महिलाएं नेपाल से शराब की तस्करी कर बिहार लाईं थीं. इसके अलावा इनके घरों में भी शराब बनाई जाती है. जरा सोचिए कि जिस शराबबंदी से महिलाएं खुश थीं आज वे ही इस कारोबार का हिस्सा बन रही हैं, तो हालात कैसे होंगे!
एएन सिन्हा इंस्टीटयूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोफेसर डीएन दिवाकर कहते हैं, ‘’इस कानून को गलत तरीके से लागू किया गया. अब तक शराब के कैरियर्स ही पकड़े गए. सप्लायर्स पुलिस की पकड़ से बाहर हैं. जिस तरह से शराब की बरामदगी हो रही है उससे तो यही लगता है कि शराबबंदी असफल रही है’’.
समस्तीपुर के खानपुर प्रखंड से श्रवन कुमार को कुछ महीने पहले अपराधियों ने गोली मारी वह भी उनके घर पर ही. उनका कहना हा की कुछ दिनों पहले इस शराब कारोबारी के बारे में पुलिस से शिकायत की थी जिसका नतीजा उन्हें अपराधियों से गोली खानी पड़ी. इस घटना में उनकी 6 साल की बेटी गंभीर रूप से घायल हो गई. मामला न्यालय में लंबित है, लेकिन इनका कहना है कि इसका कुछ होगा नहीं क्योंकि यह शराब कारोबारी और पुलिस की मिलीभगत से कारोबार हो रहा है इसलिए न्याय की उम्मीद लगना वैसे ही है जैसे कभी बिहार के नेता बिहार से बाढ़ को रोकने की बात कर रहे थे.
लोकतंत्र में कानून बनाने का अधिकार लोकसभा और विधानसभा को दिया गया है लेकिन इन्हीं उच्च संस्थानों से यह भी उम्मीद की जाती है हर थोड़े समय में अपने बनाये कानून और उसका धरातल पर क्रियान्वयन की समीक्षा की जाए, त्रुटियों को दूर कर, प्रशासनिक खामियों को दूर कर धरातल पर पूर्ण रूप से दोषमुक्त कानून लागू हो, ऐसी कामना देश की जनता करती है. यह भी अच्छी बात है कि अब जनता नीति-निर्धारकों से मोबाइलवाणी सामुदायिक मीडिया के हवाले से सवाल पूछ रही है जो कि किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के सकरात्मक संकेत हैं.
शराबबंदी की नाकामी में पैसे की बड़ी भूमिका है, चंद लोग बहुत अमीर बन गए हैं. जो लोग पकड़े जा रहे वे बहुत छोटे लोग हैं. ऐसे में जाहिर है कि जब तक असली गुनहगार पकड़े नहीं जाएंगे तब तक राज्य में शराबबंदी कानून की धज्जियां उड़ती ही रहेंगी.