इमरजेंसी: जनतंत्र के साथ आधी रात हादसा हो गया और लोगों को पता ही नहीं चला…


1971 के लोकसभा चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी राज नारायण को हराकर विजयी घोषित हुईं। चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए राज नारायण ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक चुनाव याचिका दाखिल की। 12 जून 1975 को जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने राजनारायण के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि: (1) इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित किया जाता है; (2) उन्हें छह साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाता है; (3) अदालत के इस आदेश को कार्यान्वित किए जाने पर 20 दिनों की रोक लगायी जाती है; और (4) 20 दिन की यह अवधि समाप्त होने के बाद अथवा उच्चतम न्यायालय में इस फैसले के खिलाफ अपील दायर करने के बाद (इसमें से जो भी पहले हो) यह आदेश समाप्त माना जाएगा।

इस फैसले के साथ देश की राजनीति में भूचाल आ गया। एक तरफ जहां विपक्षी पार्टियों द्वारा इंदिरा गांधी को हटाए जाने की मांग तेज होने लगी वहीं इंदिरा गांधी ने अपने को सत्ता में बनाए रखने के लिए अपने समर्थकों को गोलबंद करना शुरू किया। फैसले के अगले दिन यानी 13 जून से ही कांग्रेस ने श्रीमती गांधी के पक्ष में बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन किया। इन रैलियों के लिए सरकारी साधनों का खुलकर इस्तेमाल हुआ और इनमें दिल्ली से लगे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों से लोगों ने भाग लिया। सारे नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए सार्वजनिक परिवहन की बसें बगैर अंतरराज्यीय परमिट के सड़कों पर दौड़ती रहीं। प्रधानमंत्री के निवास के आसपास सामान्यत: धारा 144 लागू रहती है लेकिन इस समय इसका भी कोई अर्थ नहीं था। कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ के चाटुकारितापूर्ण नारे ‘इंडिया इज इंदिरा ऐंड इंदिरा इज इंडिया’ नारे के बीच रैलियों का सिलसिला 24 जून तक चलता रहा।

‘इंडिया इज इंदिरा ऐंड इंदिरा इज इंडिया’ का नारा देने वाले देवकांत बरुआ

इसके साथ ही खुफिया विभाग को निर्देश दे दिया गया कि उन लोगों की सूची तैयार की जाए जिन्हें गिरफ्तार करना है- इस सूची में बेशक कांग्रेस के लोग भी हो सकते हैं जो इंदिरा गांधी का विरोध करते हों। शाह आयोग के समक्ष श्रीमती गांधी के मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य जगजीवन राम ने बताया कि कैसे इमरजेंसी लगने से पहले से ही खुफिया विभाग द्वारा उन पर निगरानी रखी जाती थी और उनके फोन टैप किए जाते थे। यही हालत कांग्रेस के चंद्रशेखर, मोहन धारिया, कृष्णकांत, रामधन आदि जैसे नेताओं की थी।

24 जून 1975 को दो महत्वपूर्ण घटनाएं होनी थीं और इन पर ही आगे उठाए जाने वाले कदम निर्भर थे। ये दोनों घटनाएं जैसी हुईं वैसी अगर न हुई होतीं तो शायद इमरजेंसी और कुछ दिनों के लिए टल जाती। दरअसल 24 जून को उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना था जो श्रीमती गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की थी। उसी दिन पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार जयप्रकाश नारायण की रामलीला मैदान में सभा होनी थी। जेपी की मीटिंग एक  दिन के लिए टल गई पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उसी दिन आया। जस्टिस कृष्णा अय्यर ने जो फैसला सुनाया उसने इंदिरा गांधी और उनके समर्थकों को मायूस कर दिया। इसमें हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे तो मिल गया था पर कुछ शर्तों के साथ- बेहद अपमानजनक शर्तों के साथ।

फैसले के अनुसार बतौर सांसद श्रीमती गांधी सदन में तो जा सकती थीं लेकिन न तो उन्हें लोकसभा की किसी कार्यवाही में हिस्सा लेने का अधिकार था और न किसी प्रस्ताव पर मत देने का। लोकसभा के सदस्य के रूप में वह वेतन भी नहीं ले सकती थीं। अगर यह स्टे बिना शर्त होता तो कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन अब उन्हें लगा कि आक्रामक रुख अख्तियार करना पड़ेगा जिसकी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी। 25 जून की जेपी की रैली ने उनके निश्चय को और मजबूती दे दी।

25  जून की सुबह सिद्धार्थ शंकर राय को श्रीमती गांधी ने अपने आवास पर बुलाया। उन्होंने राय को कुछ खुफिया रपटें पढ़कर सुनायीं और बताया कि पूरे देश में अनुशासनहीनता और अराजकता का माहौल बना हुआ है। उत्तर भारत में कानून और व्यवस्था की धज्जियां उड़ रही हैं। ऊपर से जय प्रकाश नारायण अगले दो-तीन दिनों में देशव्यापी आंदोलन का आवाहन करने वाले हैं। उनकी योजना समानांतर सरकार चलाने की है और समूचे शासन तंत्र को वह विफल करना चाहते हैं। ऐसे में कुछ करना जरूरी हो गया है। सारी बातें सुनने के बाद सिद्धार्थ शंकर राय यह कहते हुए वहां से रवाना हुए कि उन्हें थोड़ा समय चाहिए ताकि वह इस स्थिति से निपटने के बारे में सोच सकें।

शाह आयोग की रिपोर्ट

शाह आयोग के समक्ष दिए गए अपने बयान में सिद्धार्थ शंकर राय ने बताया कि इस घटना से पहले भी दो-तीन मौकों पर श्रीमती गांधी ने उनसे कहा था कि भारत को एक ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की जरूरत है और कुछ बेहद कड़े अधिकारों का होना जरूरी है। इस पर उन्होंने श्रीमती गांधी को कहा कि अपने पास जो कानून उपलब्ध हैं उनको ही कड़ाई से लागू करके इन हालात पर काबू पाया जा सकता है।

वापस तकरीबन शाम के 5:00 बजे वह फिर प्रधानमंत्री निवास पहुंचे और सुझाव दिया कि इन हालात से निपटने के लिए इंटरनल इमरजेंसी लगाई जा सकती है (बाहरी खतरे से निबटने के लिए 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय से ही एक्सटर्नल इमरजेंसी लगी हुई थी जो बरकरार थी)। श्रीमती गांधी ने साफ तौर पर राय से कहा कि वह इस बात की गुंजाइश देखें कि मंत्रिमंडल की सलाह लिए बगैर कैसे इसे अंजाम दिया जा सकता है। राय ने उपाय सुझाते हुए कहा कि आप निर्णय ले लें जिसकी पुष्टि बाद में कैबिनेट से करा ली जाएगी। सारे कागजात तैयार होने में तकरीबन तीन घंटे लगे। कमरे में इन दोनों के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ थे और बीच-बीच में संजय गांधी आते और अपनी मां को कमरे से बाहर ले जाकर कुछ सलाह देते।

राय ने आयोग को बताया कि काम समाप्त होने के बाद जब वह कमरे से बाहर निकल रहे थे तो उन्हें ओम मेहता (गृह राज्यमंत्री) से यह सुनकर बहुत हैरानी हुई कि अगले दिन न्यायालयों को बंद रखने और सभी अखबार के दफ्तरों को बिजली की सप्लाई काट देने का आदेश जारी किया जा चुका है। राय को हैरानी हुई क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा था कि इमरजेंसी के अंतर्गत तब तक कोई कदम नहीं उठाया जा सकता जब तक संबंधित नियम न बना दिए जाएं। वह रुके रहे क्योंकि वह इंदिरा गांधी को अपनी प्रतिक्रिया बताना चाहते थे। इसी दौरान संजय गांधी उनके करीब आए। वह बेहद उत्तेजित और गुस्से में दिख रहे थे और उन्होंने बहुत ही अभद्र तरीके से राय से कहा कि उन्हें यह नहीं पता है कि देश को कैसे चलाया जाता है।

तैयार कागजात को लेकर इंदिरा गांधी के सचिव आरके धवन रात में तकरीबन 11:30 बजे राष्ट्रपति भवन पहुंचे और आपातकाल की घोषणा पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद का हस्ताक्षर लेकर वापस आ गए जिसमें लिखा था:

“संविधान के अनुच्छेद 352 के खंड 1 के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए मैं, फखरूद्दीन अली अहमद, भारत का राष्ट्रपति इस घोषणा के जरिए ऐलान करता हूं कि गंभीर संकट की स्थिति पैदा हो गयी है जिसमें आंतरिक गड़बड़ी की वजह से भारत की सुरक्षा के सामने खतरा पैदा हो गया है।”

  • राष्ट्रपति, 25 जून 1975, नयी दिल्ली

इमरजेंसी लग चुकी थी। बस प्रधानमंत्री द्वारा आकाशवाणी के जरिये घोषणा होनी बाकी थी जो अगले दिन हुई। उधर, शाम को रामलीला मैदान में जेपी की अभूतपूर्व सभा हुई जिसमें उन्होंने पुलिस और सशस्त्र बलों से अनुरोध किया कि वे अनुचित और अन्यायपूर्ण आदेशों को न मानें।

बहादुरशाह जफर मार्ग पर स्थित अखबार के दफ्तरों की ही बिजली काटी जा सकी

25-26 जून की आधी रात के बाद से दिल्ली सहित देशभर में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं। जेपी को गांधी शांति प्रतिष्ठान से गिरफ्तार किया गया। रात में अखबार के दफ्तरों की बिजली काट दी गई ताकि अखबार न छ्प सकें। हड़बड़ी में केवल बहादुरशाह जफर मार्ग पर स्थित अखबार के दफ्तरों की ही बिजली काटी जा सकी। हिंदुस्तान टाइम्स, स्टेट्समैन और मदरलैंड के दफ्तर छूट गए क्योंकि ये उस इलाके में नहीं थे। उनकी बिजली 26 जून को काटी गई।

26 जून को भोर में 4:30 बजे कैबिनेट सचिव बीडी पांडे को फोन से सूचना दी गई कि सवेरे 6:00 बजे मंत्रिमंडल की बैठक है और वह आ जाएं। मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों को भी सूचना दी गयी। लोगों के घरों में अखबार नहीं पहुंचा इसलिए कोई जान नहीं सका कि गुजरी रात देश के जनतंत्र के साथ कितना बड़ा हादसा हुआ है।


‘समकालीन तीसरी दुनिया’ के संस्थापक और संपादक आनंद स्वरूप वर्मा वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक और तीसरी दुनिया के देशों के जानकार हैं

(क्रमशः)


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