तिर्यक आसन: कुत्ते, फ़कीरी और कान से सूंघने वाले दीवान जी


चौराहे पर होमगार्ड ने रोका- गाड़ी का कागज लेकर साहब के पास ‘चलो’। होमगार्ड की भाषा सुन सोचने लगा- ये अपने ग्राहक के लिए अपमानजनक शब्द का प्रयोग कर रहा है! 

ग्राहक इसलिए क्योंकि पुलिस की जीविका अपराधियों की बदौलत चलती है। अपराधी का अर्थ हत्यारा, बलात्कारी, माफिया आदि ही नहीं होता। गाड़ी के कागजात साथ न लेकर चलने वाला भी कानूनन जुर्म करता है। वो भी अपराधी हुआ। यही कानून के मासूम अपराधी हैं। पुलिस के ग्राहक हैं। माफिया और सफेदपोश अपराधियों को तो पुलिस मालिक जैसा भाव देती है। 

जो संविधान और कानून के सभी निर्देशों का पालन करते हैं, वे भी अपराधी होने से नहीं बच सकते। वे शक के आधार पर अपराधी हैं। मॉल, शॉपिंग मॉल से निकलते समय उनका भी थैला ‘चेक’ किया जाता है, जिनकी ईमानदारी की मिसाल दी जाती है। बाजार ने शक के आधार पर सबको चोर घोषित कर दिया है। 

एक सुधारक हैं। वे सिगरेट की मशाल से प्रतिदिन पूँजीवाद के दर्जनों पृष्ठ दागते हैं। एक दिन सुधार के अपने कार्यक्रमों का थैला लेकर मिलने आए। अपने कार्यक्रम पर गहन चर्चा की। वे वक्ता थे। मैं श्रोता था। सुधार कार्यक्रम पर आयोजित गहन चर्चा के दौरान सिर्फ वे ही बोलते हैं। चर्चा समाप्त करने के बाद वे चलने को हुए तो मैंने दरवाजे पर ‘चेकिंग’ का अड़ंगा लगा दिया। उनका थैला माँगा। उन्होंने थैला माँगने का कारण पूछा। मैंने बताया- देखना है कुछ चोरी करके तो नहीं ले जा रहे। वे भड़क गए। लगभग चीखते हुए अपनी ईमानदारी पर गहन चर्चा की। इस चर्चा के दौरान भी वे वक्ता थे। मैं श्रोता था। चर्चा समाप्त कर मेरे घर दुबारा न आने की प्रतिज्ञा कर वे चले गए। मेरे घर दुबारा भले ही न आएँ, ईमानदारी के अपने कार्यक्रमों का थैला चेक करवाने अक्सर मॉल जाते हैं। 

अगर कोई अपने घर में शक के आधार पर मेरा थैला चेक करेगा तो मैं नहीं भड़कूँगा। मेरे स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचेगी क्योंकि मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं चोर हूँ। अपराधी भी। बाजार द्वारा घोषित और कानूनन भी। 

होमगार्ड द्वारा रोके जाने पर मैं सोचने लगा- होमगार्ड ने मेरे जैसे शातिर चोर की गंध को सूँघा कैसे? मेरे साथ कई गाड़ियाँ गुजरीं, किसी को नहीं रोका! मुझे ही क्यों रोका? जवाब के लिए अपना हुलिया देखने लगा कि चोरी की गंध कहाँ से ‘लीक’ हो रही है। बेतरतीब बढ़ी हुई दाढ़ी-मूँछ। आधा कालर खड़ा, आधा अपने नियत स्थान पर। पाजामे की एक टाँग आधी मुड़ी हुई। पैर में एक नम्बर बड़ी चप्पल। एड़ी के पीछे चप्पल के बड़े हिस्से की सीढ़ी के सहारे पैर पर चढ़ी हुई मिट्टी। मैं तो गाड़ी वाला फकीर लग रहा हूं, यही सोचकर होमगार्ड द्वारा अपने ग्राहक के लिए प्रयोग की गई भाषा को नजरंदाज कर दिया। 

वे अपने मासूम ग्राहकों को पहचानते हैं। उनकी आँखें दूसरे जिले या राज्य की नम्बर प्लेट वाली चार पहिया गाड़ियों की राह तकती हैं। ऐसी गाड़ी जैसे ही नजर आती है, वे अपने मासूम ग्राहक के सम्मान में झुक जाते हैं। गाड़ी पास आने पर बोनट पर हाथ पीट मुँह से कानून की गाज गिराते हैं- गाड़ी के कागज लेकर साहब के पास चलो। चार पहिया वाहनों के वे मॉडल जो माननीयों और सफेदपोश अपराधियों के काफिले में स्थायी जगह बना चुके हैं, उनकी तरफ कागज के कानून का पालन कराने के लिए प्रतिबद्ध कानून के सिपाही नजर उठाने की कृतघ्नता नहीं करते। हां, सभी दोपहिया वाहनों पर अपनी पारखी नजर डालते हैं। वाहन चालक के हुलिये के अनुसार चाबी निकाल कानून की गाज गिराते हैं। 

गाड़ी के कागज मेरे साथ नहीं थे। खाली हाथ साहब के सामने पहुँचा। होमगार्ड का साहब सिपाही भी हो सकता है। ‘सिस्टम’ में होमगार्ड पीड़ित है, पर सिस्टम का हिस्सा होने से वो भी साहब की तरह रौब झाड़ता फिरता है। फिर भी उसे खुश करना आसान है। बस दीवान जी कहने से खुश हो जाता है। होमगार्ड की पब्लिक ड्यूटी मासूम ग्राहकों पर कानून की गाज गिराने के लिए लगाई जाती है। यातायात व्यवस्था के संचालन में उसका योगदान ‘ओवर टाइम’ के रूप में गिना जाता है। साहब मासूम ग्राहकों पर कानून की गाज नहीं गिराते। उनके हाथ गंदे हो जाएंगे। मासूम ग्राहकों का हुलिया सुवासित नहीं होता। साहब के हाथ में मैल लग जाएगी। 

खाली हाथ साहब के सामने खड़ा हो गया। साहब ने कागज माँगे। उन्हें बताता कि साथ में नहीं है, पर पाँच-सात मिनट में मंगवा सकता हूँ, ये कहता तो वे चालान करने की जगह कानूनन गाड़ी सीज करने की प्रतिज्ञा दोहराते। ‘बारगेनिंग’ से बचने के लिए मैंने रंग बदला- सोच रहा हूं कि बिना रोक-टोक चलने के लिए गाड़ी के आगे और पीछे वाली नम्बर प्लेट से नम्बर हटवाकर सत्ताधारी पार्टी का झंडा बनवा लूं। साहब ने जो जवाब दिया उसे सुन लगा, वे भी पीड़ित हैं- सत्ता बदल जाएगी तब क्या करोगे? मैंने समाधान बताया- जिस पार्टी की सरकार होगी, उसका झंडा बनवा लूंगा। सड़क से लेकर संसद तक रंग बदलने वाले सफलता की तूती बजा रहे हैं। इसके आगे बोलने की आवश्यकता नहीं पड़ी। वे समझ गए कि ये फकीर के भेष में काँइया है। वे मुस्कुराए, तो मैंने पूछा- जाऊँ। उन्होंने ‘जाइए’ कहा। जाते-जाते मैंने होमगार्ड से कहा- अपने साहब से सीख लीजिए कि अपराधियों से कैसे बात की जाती है। होमगार्ड ने ‘ठीक है साहब’ कहा।      

एक बार शहर में ग्रीन कार्ड का प्रचलन हुआ था। गाड़ी के कागज और ड्राइविंग लाइसेंस दिखाने पर ग्रीन कार्ड बनाया जाता था। ग्रीन कार्ड बन जाने के बाद गाड़ी के कागज और डी. एल. साथ लेकर चलने की आवश्यकता नहीं। ग्रीन कार्ड है ना। ग्रीन कार्ड के बारे में कानून की नीति स्पष्ट नहीं थी। नीति कभी कहती मान्य है। कभी अमान्य घोषित कर देती। 

अब ग्रीन कार्ड ‘आउट ऑफ डेट’ हो गया है। अब कई रंगों के कार्ड चलन में हैं। नम्बर प्लेट चलन वाले रंग में रंगवाइए, बिना रोक-टोक ताव से चलिए। रंगों के अतिरिक्त भी कई कार्ड गाड़ी के कागज और डी. एल. का कार्य करते हैं। पुलिस, प्रेस, एडवोकेट, डी. एम. ऑफिस, माननीय पुत्र आदि जैसे ग्रीन कार्ड नम्बर प्लेट पर लिखिए, ताव से चलिए। पार्षद पुत्र का कार्ड अभी चलन में नहीं है। पार्षद को मांग करनी चाहिए कि माननीय कोटे से ‘पार्षद पुत्र’ के ग्रीन कार्ड को भी हरी झंडी दिखाई जाए। इन कार्ड्स के बारे में भी कानून की नीति स्पष्ट नहीं है। नीति द्वारा कभी मान्य घोषित किए जाते हैं, कभी अमान्य।    

फकीर के हुलिये वाले दिन साहब से बारगेनिंग करने का मन नहीं था। इसलिए बारगेनिंग का संक्षिप्तीकरण कर दिया था। एक बार मन हुआ था, तब होमगार्ड के एक अन्य साहब से घंटों बारगेनिंग की थी। उस दिन सुवासित हुलिये में था- कपड़ों से तो अच्छे, बड़े घर के लग रहे हो। 

चौराहे पर सड़क से नीचे गाड़ी खड़ी कर पकौड़ा खा रहा था। तभी एक होमगार्ड आया- गाड़ी के कागज के साथ साहब बुला रहे हैं। पकौड़ा खत्म कर साहब के पास पहुँचा। साहब ने गाड़ी के कागज मांगे। गाड़ी के कागज नहीं थे। साहब ने कहा- गाड़ी चोरी की है। मैंने कहा- मैं चोर हूँ, ये मानता हूँ, पर आप साबित करिए कि गाड़ी चोरी की है। कानून सबूत मांगता है मेरे काबिल दोस्त। अपनी मुस्कान को काबू में रखते हुए उन्होंने कहा- कागज दिखा दो, मान लूंगा गाड़ी चोरी की नहीं है। 

मन था इसलिए बारगेनिंग की अवधि बढ़ रही थी। 

उन्हें गाड़ी का सेल लेटर दिखाया। सेल लेटर को कागज मानने से उन्होंने इनकार कर दिया। मैंने कहा- रजिस्ट्रेशन का फर्जी कागज तैयार करना भी एक रोजगार है। असली नम्बर इंजन और चेसिस का होता है, जो इस सेल लेटर पर दर्ज है। उन्होंने कहा- कानून दलीलों से नहीं सबूतों से चलता है। सबूत के तौर पर रजिस्ट्रेशन का कागज चलता है। कागज दिखाओ। वे सबूत मांग रहे थे, मैं दलील दे रहा था- आखिर जरूरत क्या है रजिस्ट्रेशन के नाम पर हजारों रुपए सरकारी वसूली की। इंजन और चेसिस नम्बर की तरह वाहन निर्माता उसी कीमत में नम्बर प्लेट पर लिखने वाला नम्बर भी तो दे सकते हैं। सरकार उत्पाद शुल्क, रोड टैक्स सहित तमाम टैक्स लेती ही है। मेरी बारगेनिंग से वे झल्लाने लगे थे। उनकी झल्लाहट और बढ़ी- इंश्योरेंस न रहने पर चालान क्यों काटते हैं? आपके अनुसार इंश्योरेंस अनिवार्य क्यों है? उन्होंने मुझे चिढ़ाया- हम सिस्टम का पालन करते हैं। 

मैंने सिस्टम पर शक जताया- इंश्योरेंस आपके बचाव का भी सिस्टम है। इंश्योरेंस न रहने पर चालान होने का डर नहीं होगा, तब आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाएगी। जितनी भी गाड़ियां चोरी होंगी, सभी आपको बरामद करनी होंगी। जिसकी गाड़ी चोरी होगी, वो हर दूसरे दिन आपको आपकी जिम्मेदारी याद दिलाने थाने-चौकी पहुंचेगा। इंश्योरेंस ने ग्राहकों के प्रतिरोध को दब्बू बना दिया है। चोरी गई गाड़ी की कीमत का कुछ प्रतिशत मुआवजा पाकर वो आपको क्लीन चिट दे देता है। 

बारगेनिंग से उनकी झल्लाहट बढ़ती जा रही थी। उन्होंने तंज किया- अच्छा, तो तुम सिस्टम सुधारने वाले हो। अपने सुझाव सरकार को दो। मैंने उनके भ्रम का खंडन किया- मैं सिस्टम सुधारने वाला नहीं हूँ। बिगाड़ने वाला हूँ। आज तक कोई निर्माण नहीं किया। सुधार, ध्वंस की अपनी प्रवृत्ति से मेल नहीं खाता। और सरकार जिनके चाबुक से चलती है, उन्हीं के बनाए सिस्टम के खिलाफ सुनना पसंद नहीं करती। सरकार आपको आदेश देगी और आप सिस्टम के खिलाफ उठी आवाज को खामोश कर देंगे। आखिर आप भी सिस्टम की एक कठपुतली ही हैं। ये कहते-कहते मेरा मुंह उनके कान के पास पहुंच गया था। वे भड़कते हुए बोले- तुमने पी भी है। मैंने पूछा- कानून की भाषा में क्या मुंह से शराब की गंध आने को पीना कहते हैं? बताइए, गंध में कितने प्रतिशत अल्कोहल है? 

उन्होंने बिना ब्रेथ अनलाइजर के मुझे शराबी घोषित कर दिया। ये उनकी पारखी नजर का कमाल था, जिसने कान से शराब की गंध को सूंघ लिया था। उन्होंने बारगेनिंग समाप्त कर दी- तुम्हारी गाड़ी सीज होगी। वे गाड़ी सीज करने का कागज तैयार करने लगे। कागज पर अधिक रफ्तार से वाहन चलाने वाले खाने में भी टिक कर दिया। ये भी उनकी पारखी नजर में लगे सेंसर का कमाल था, जो इंटरसेप्टर से अधिक शक्तिशाली था। यातायात विभाग का इंटरसेप्टर दो किलोमीटर दूर से वाहन की रफ्तार बता देता है। उनकी आँख में लगा सेंसर खड़ी गाड़ी के बारे में भी बता देता है- जब ये चल रही थी, तब इसकी गति कानून द्वारा अनुमति प्रदान गति से अधिक थी। 

उनकी आँख में लगे सेंसर की शक्ति चेक करने के लिए सोचा, खुद को एक तमाचा मार उनसे पूछूँ- कितने किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हाथ ने गाल पर तमाचा मारा। पूछा नहीं, क्योंकि वे अच्छे पुलिस वाले थे। पुलिस के इकबाल को चुनौती देने वाली बारगेनिंग के बाद भी उन्होंने गाली नहीं दी थी जबकि बारगेनिंग मैंने पिटाई योग्य की थी। शायद वे मेरे सुवासित कपड़ो के अदब में रहे हों- कपड़ों से तो अच्छे, बड़े घर के लग रहे हो। या मेरी बारगेनिंग की मनबढ़ई से उन्हें पता चल गया हो कि ये अपराधी है क्योंकि साहब के बुलावे पर मासूम ग्राहक की जबान तालू से चिपक जाती है। 

उनकी ईमानदारी का एक और सबूत सीज का कागज था जिस पर उन्होंने सभी खानों में टिक किया था। वे ईमानदारी से सिस्टम के लिए वसूली कर रहे थे। जितने अधिक खानों में टिक होगा, सरकारी खजाने में उतना अधिक राजस्व जमा होगा। 

गाड़ी सीज होने के बाद पैदल हो गया। पैदल हुआ तब सोचने लगा- सार्वजनिक स्थान पर पहले चोर का सम्बोधन, फिर शराबी कहकर साहब ने मेरी मानहानि की। मानता हूँ कि चोर हूँ, पर क्या चोर का मान नहीं होता? होता है। नहीं होता तो आयकर और बैंक कर्ज की चोरी करने वाले सफेदपोश और करोड़पति चोर अपने ऊपर चोरी या बेईमानी का आरोप लगाने वालों के खिलाफ मानहानि का प्रकरण क्यों दर्ज करवाते? 

चोरों का भी मान होने के बावजूद सार्वजनिक स्थान पर मेरे ऊपर चोरी का आरोप लगाने वाले के खिलाफ मैं मानहानि का प्रकरण दर्ज नहीं करवा सकता। मेरी हैसियत शून्य है। हैसियत के अनुसार मान की कीमत आँकी जाती है। उसी के अनुसार हजार्ना माँगा जाता है। निष्कर्ष ये निकलता है कि मान उन्हीं के पास है, जिनके पास हैसियत है। अपनी हैसियत के अनुसार मानहानि के एवज में शून्य रुपए हजार्ना माँगने वाली मेरी याचिका खारिज हो जाएगी। न्यायालय का समय खराब करने वाली याचिका के दंडस्वरुप पचीस-पचास हजार का अर्थदंड भी लगाया जा सकता है। शून्य हैसियत वाला कहाँ से देगा इतना बड़ा अर्थदंड?

मानहानि का मेरा प्रकरण उपभोक्ता अदालत में विचारणीय हो सकता है। पर अभी तक पुलिस और पब्लिक के बीच दुकानदार और ग्राहक के संबंध को प्रत्यक्ष रूप से स्थापित करने वाली अधिसूचना सिस्टम ने जारी नहीं की है। 

याचिका के सभी बिंदुओं पर विचार करने के बाद अपनी मानहानि को शून्य से दबा दिया- तुम्हारे पास शून्य की हैसियत है। कोई तुमसे जुड़े या अलग हो, तुम्हारा मान ‘कांस्टेंट’ रहेगा। शून्य भी फकीर है- जो दे उसका भी भला, जो ना दे उसका भी। 

गौर किया जाय तो कुत्ते में भी फकीरी के गुण होते हैं। रोटी के लिए दरवाजे-दरवाजे ना सुनता है, पर ना कहने वाले पर गुर्राता नहीं है। फकीरी के गुणों को देशी कुत्ते बचाये हुए हैं। देशी कुत्ते शुद्ध फकीर होते हैं। जिनकी हैसियत शून्य होती है, वे शुद्ध फकीर पालते हैं। विदेशी कुत्ते शुद्ध फकीर नहीं होते। उनकी जीवन शैली ‘संकर’ फकीर की होती है। विदेशी कुत्ता रोटी मिले या न मिले, मालिक पर नहीं गुर्राता पर उसे पालने के लिए हैसियत चाहिए होती है। जिनकी हैसियत अधिक होती है, वे करोड़ों की कीमत का कुत्ता पाल सकते हैं जिसके भोजन पर हर महीने लाखों रुपए खर्च होते हैं। 

ऐसा ही एक कुत्ता और उसके मालिक कुछ दिन पहले चर्चित हुए थे। 

अखबार में कुत्ते और उसे खरीदने वाले का फोटो समाचार छपा था। फोटो समाचार में कुत्ते की नस्ल, किस देश में पाया जाता है, कीमत और उसके पालन पर हर महीने खर्च होने वाली रकम का विवरण था। फोटो में कुत्ते के गले में डिजायनर जंजीर थी। समाचार में जंजीर की कीमत नहीं दी गई थी। कुत्ते को खरीदने वाले का भी फोटो समाचार था। खरीदने वाले की हैसियत के विवरण का क्रम कुत्ते के विवरण से मिलता-जुलता था। 

शुद्ध फकीर को पालने का जतन नहीं करना पड़ता। वो सर्वहारा की तरह पल जाता है। शुद्ध फकीर समाज की गंदगी साफ करता है। संकर फकीर की गंदगी समाज को साफ करनी पड़ती है। 



About विभांशु केशव

View all posts by विभांशु केशव →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *