इधर एक बाहुबली हैं। उनके कमबली (दाहिने-बाएं हाथ) कहते हैं- जब वे चलते हैं, तो लोग रास्ता छोड़ देते हैं। कमबलियों का कहना तुरंत यथार्थ हो जाता है। जब मुर्दा जाता है, तो लोग रास्ता खाली करते जाते हैं। जीवित लोग मुर्दों से डरते हैं!
कुकुरमुत्ता राजनीति में घर-घर पैसे की खर-पतवार से उगी कमबलियों की आवारा फौज को फोटो के रूप में जीवन बिताने का शौक है। अपनी गली के हर दूसरे मकान पर उनका पोस्टर लगा मिलता है- अध्यक्ष, गली कल्याण समिति। पोस्टर के माध्यम से ही वे तीज-त्यौहारों की बधाइयां देते हैं। एक बार गली के एक निवासी ने कह दिया- इत्तू सी गली है। ‘डोर टू डोर’ जाकर बधाइयां दे दिया करिए। उन्होंने पूछा- मुझे मार्केटिंग का लौंडा समझ रखा है? इत्तू सी गली वालों को नहीं पता कि वे मर चुके हैं। पोस्टर के सहारे जिंदा हैं।
यकीं न हो तो उनकी फोटो सहित पोस्टर लगवा दीजिए- अमुक की ‘डेडबॉडी’ की तलाश। पुलिस जिले भर की पुलिस को वायरलेस से सूचित करे- डेडबॉडी मिल गई है। पहचान स्पष्ट नहीं है। वे मुखबीर बनकर पुलिस को फोन करेंगे- डेडबॉडी का नाम, पता ये है। पिनकोड इतना है। आपसे आग्रह है कि डेडबॉडी की फोटो अखबार में छपवा दीजिए। आज तक इस मुर्दे की फोटो अखबार में नहीं छपी।
अखबार में जिनकी फोटो आती है, उनका लेवल हाई होता है। उन्हें बाहुबली नहीं कहा जा सकता। कोई भाषा मर्मज्ञ हो, तो बाहुबली की ‘सुपरलेटिव डिग्री’ बताए। जब तक बाहुबली की सुपरलेटिव डिग्री नहीं मिलती, तब तक तानाशाह से काम चलाते हैं। फोटो की शौकीन आवारा फौज फोटो के लिए सात समंदर पार तक चली जाती है। आवारा फौज के कुछ सदस्य भोजन करने जाते हैं, अछूतों के घर। जब वे अछूतों के घर भोजन करने जाते हैं, तब अखबार में उनकी उदारता, सहिष्णुता के फोटो आते हैं। अगले दिन ‘फैक्ट चेक’ भी आता है- भोजन बाहर से मंगवाया गया था।
फैक्ट चेक वालों! पहले उनकी बॉडी चेक करो। उन्होंने ‘बायपास ऐस होल सर्जरी’ करवा रखी है। इस सर्जरी में ‘माउथ’ से ‘ऐस’ तक एक नली लगाई जाती है। पेट में एक अलग ‘शिट स्टोर’ बनाया जाता है। अछूत के घर टूंगे गए भोजन को बायपास नली के रास्ते ‘शिट स्टोर’ में भेज देते हैं। उस ‘शिट’ को अपने शौचालय में नहीं निकालते। सार्वजनिक शौचालय में निकालते हैं।
अपने लेवल वालों के घर के भोजन के लिए उनके पेट में अलग भंडार होता है। अपने लेवल वालों का भोजन वे भंडार से निकालना ही नहीं चाहते। इसीलिए उन्होंने जमाखोरी को वैध घोषित किया। भंडार भरता जाता है। पेट निकलता जाता है। वे खुल कर हंस भी नहीं पाते। डर लगा रहता है, भंडार ‘लीक’ न हो जाए। अपने भंडार को लीक होने से बचाने के लिए वे पूरे देश में हंसने पर प्रतिबंध लगा देते हैं- जो हंसेगा, वो जेल जाएगा। देश उनकी मौखिक शिट की सफाई में व्यस्त है। झाड़ू लगा रहा है।
एक समिति सफाई के लिए बनी। पोस्टर तैयार हुआ। एक तरफ समिति अध्यक्ष की फोटो। दूसरी तरफ झाड़ू की फोटो। बीच में चेतावनी- जो कूड़ा-करकट हम अपने दरवाजे पर फेंकते हैं, सफाईकर्मी उसे उठाने ‘अर्ली मॉर्निंग’ नहीं आते।
सरकार भी अपने पूर्वजों के संघर्ष की कहानी अपने कमबलियों के सहारे दृश्य रूप में सुनाकर सफाई के लिए प्रेरित कर रही है। सरकार है, तो वो घर-घर कूड़ा नहीं उठा सकती। वो अपने लेवल की सफाई कर रही है। अपने पूर्वजों की स्मृति में पब्लिक सेक्टर (अछूतों) की सफाई कर रही है। इस कूड़े को बीनने वालों का लेवल सरकार से भी ऊंचा है। वे कूड़े को अपनी फैक्ट्री में पेरकर सोना कमाते हैं। वे सरकार को निर्देशित करते हैं- पब्लिक सेक्टर के अमुक कूड़े पर झाड़ू लगाओ। इधर सरकाओ।
एक समिति बनी। समिति इसलिए बनी क्योंकि दूधवाले, सब्जीवाले सोसाइटी में सभी के फ्लोर पर जाकर दूध, सब्जी नहीं देते। फ्लोर वालों को जमीन पर आना पड़ता है। या फ्लोर से ही रस्सी के सहारे डिब्बा वगैरह लटकाकर दूध, सब्जी लेनी पड़ती है। दूधवाले, सब्जीवाले को अपने बराबर लाने के लिए समिति बनी थी- वी वांट इक्वलिटी।
समिति के सदस्य अपने बच्चों को अपने पूर्वजों के संघर्ष की कथा सुनाते हैं- तुम्हारे दादा-दादी इसी तरह कुएं से बाल्टी में पानी खींचते थे। उनके संघर्ष को भूल न जाऊं, इसलिए मैं भी बाल्टी से दूध सब्जी वगैरह खींचता हूं। तुम लोग भी याद रखना।
एक बच्चे ने सबक की गांठ बांध ली। कुल्फी वाला आया। डैड, कुल्फी चाहिए। डैड- नीचे जाकर ले लो बेटा। बेटा- नहीं, मैं भी आपकी तरह बनना चाहता हूं। डैड- वेरी गुड, वेरी गुड बेटा। तो बाल्टी लटका दो। बेटा- बाल्टी में जमीन से इस फ्लोर तक आते-आते कुल्फी पिघल जाएगी। फ्रिज लटकाना पड़ेगा। डैड का चेहरा फ्रीजर में रखे पानी की तरह हो गया। आइस क्यूब की तरह। बेटा, इसी को चाट लो। स्वाद के लिए चॉकलेट पोत दो।
बेटे ने डैड और अपने पूर्वजों के बीच ‘इक्वलिटी’ लाने के लिए डैड की फोटो पर माला टांग दी। डैड ‘वी वांट इक्वलिटी’ समिति के अध्यक्ष हैं।