जिसे देखिए वही जल्दी में है! शुरू में कोरोना वायरस जल्दी में था। इतनी तेजी में, कि देखते ही देखते उसने पूरी दुनिया नाप ली। मजबूरन दुनिया को लॉकडाउन में जाना पड़ा। सरकार तो और भी जल्दी में थी। रेडियो पर भाषण और फिर लॉकडाउन। सब कुछ रुक गया। घर वाले ने बेघर को जल्दी में घर खाली करने को बोल दिया। लोग भी जल्दी में निकल लिए, पैदल 1500 कि.मी. से भी ज्यादा दूरी नाप ली। दुर्घटना हुई, मर गए लेकिन चलना नहीं छोड़ा, घर पहुंचने की जल्दी जो थी। लॉकडाउन के बावजूद इतने लोगों की आवाजाही से कोरोना वायरस भी परेशान था लेकिन सरकार को जल्दी थी। सरकार ने अपने विरोधियों को दबोच कर जेल पहुंचा दिया, उनकी सम्पत्ति भी कुर्क कर ली। यह सब इतनी जल्दी में हुआ कि कोई विरोध भी नहीं कर पाया।
शुरू में सरकार ने कोरोना फैलाने के लिए तबलीगी जमात को दोषी ठहराया। जल्दी में मीडिया ने भी बता दिया कि तबलीगी ही कोरोना लाए हैं और फैला रहे हैं। इधर कानपुर वाले दूबे जी को भी जल्दी थी। उन्हें पकड़ने गई पुलिस को ही टपका दिया। डीएसपी से सिपाही तक ढेर हो गए। जल्दी में सरकार ने भी दूबे जी का एनकाउन्टर करा दिया। दूबे जी के साथ कई के राज़ भी राख हो गये। जो हुआ, सब जल्दी में हुआ।
जनता को भी जल्दी है। न्याय, कानून, सुनवाई, विकास सब जल्दी चाहिए। फास्ट ट्रैक। इसलिए सब रफ्तार में हो रहा है, बस नेहरू जी अड़ंगा न लगाएं। विकास की रफ्तार इतनी तेज है कि जल्दी परलोक भी पहुंचा जा सकता है। खैर… आपको जल्दी है तो उससे मुझे क्या! मुझे जल्दी नहीं है। लेकिन कोरोना वायरस के नाम पर वैक्सीन और दवा बनाने वालों को जल्दी है। उससे भी ज्यादा जल्दी चौधरी बनने की उम्मीद लगाए इन्टरनेशनल नेताओं को है। अमरीका में चुनाव है, भारत के कई राज्यों में चुनाव है। चुनाव जीतने के लिए कुछ तो चाहिए? इसलिए कुछ भी करो लेकिन जल्दी करो। कोरोना वायरस संक्रमण से लोग परेशान हैं, मर रहे हैं इसलिए जल्दी तो है। जो भी देश कोरोना वायरस से बचाव का टीका जल्द बना लेगा वह दुनिया पर एक तरह से राज करेगा।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) कोविड-19 से बचाव के टीका के सभी क्लिनिकल परीक्षण पूरा करते हुए 15 अगस्त तक इसे लांच करने की जल्दी की लगभग घोषणा कर चुका है। अनुसंधान और परीक्षण के प्रोटोकाल का तकाजा है कि इसमें समय लगता है लेकिन जब सरकार और जनता का दबाव हो तो सब जल्दी भी करना पड़ता है। अब जनता प्रधानमंत्री जी की घोषणा के इन्तजार में है। यह अलग बात है कि वह हर उस अचानक घोषणा से इतनी दहशत में है कि उसे कुछ और सूझ ही नहीं रहा। शायद इसीलिए 15 अगस्त की घोषणा का संकेत जून में ही दे दिया गया है और आइसीएमआर तथा कम्पनी को ‘‘जल्दी करने’’ का आदेश भी।
चिकित्सा वैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों को आइसीएमआर के ‘‘जल्दी’’ की चिंता है। कहते हैं कि 1967 में पहली बार ‘‘मम्स’’ बीमारी के खिलाफ वैक्सीन को जल्दी में बनाया गया था। तब भी इसे बाजार में उतारने में चार वर्ष लग गए थे। वायरस के आइसोलेशन से वैक्सीन के लाइसेन्स तक सब कुछ जल्दी में हुआ फिर भी चार साल लग गए थे। उसके बाद वर्ष 2014 में ‘‘इबोला’’ से बचाव की वैक्सीन की जल्दी थी। उसे तैयार करने में 5 वर्ष लगे थे।
जनता जनार्दन के लिए यहां बता दूं कि किसी भी वैक्सीन के निर्माण की प्रक्रिया में उसका क्लीनिकल ट्रायल सबसे अहम होता है। भारत के क्लीनिकल ट्रायल ऑफ इण्डिया (सीटीआरआइ) के नियम के अनुसार ट्रायल प्रोटोकाल के फालोअप 14 दिन, 28 दिन, 104 दिन तथा 194 दिन के रूटीन में कुल 6 महीने लगते हैं और वह भी कभी-कभी प्रक्रिया दुहरानी पड़ जा सकती है। यह भी तब जबकि सब कुछ ‘‘जल्दी’’ में हो। आइसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलिराम भार्गव पर भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. के. विजय राघवन के दबाव के बावजूद ‘‘समय तो लगेगा’’, ऐसा कई वैज्ञानिक कह रहे हैं।
सरकार से भी ज्यादा जल्दी दवा व वैक्सीन बनाने वाली कम्पनी को है। दुनिया की आठ अरब आबादी में लगभग 7 अरब उपभोक्ता वाले बाजार को कब्जियाने की जल्दी किसे नहीं होगी? फिलहाल, दुनिया में कोरोना वायरस वैक्सीन बनाने के लगभग 10 देशों में प्रयास चल रहे हैं। ब्रिटेन में वैक्सीन का इन्सानों पर परीक्षण शुरू हो गया है। लंदन में इम्पीरियल कॉलेज के प्रो. राबिन शटोक के नेतृत्व में यह परीक्षण चल रहा है। ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी में भी 800 लोगों पर ट्रायल जारी है। यहां तो अन्तरराष्ट्रीय कम्पनी अस्ट्राजेनेका से 10 करोड़ वैक्सीन खुराक की डील भी कर ली गई है। इसके अलावा शीर्ष दवा कम्पनियां ‘‘सनफर्ड’’ और ‘‘जीएसके’’ ने भी वैक्सीन विकसित करने के लिए आपस में तालमेल किया है। आस्ट्रेलिया, जापान, फ्रांस, भारत की ‘‘भारत बायोटेक’’ समेत 120 से भी ज्यादा जगहों पर वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया ‘‘अन्तिम चरण’’ में है लेकिन इनमें से कोई नहीं जानता कि वैक्सीन कौन-सी और किसकी कितनी ‘‘जल्दी’’ आएगी?
मैराथन की दौड़ की तरह कोरोना वायरस संक्रमण में भारत पहले तो काफी पीछे चल रहा था। देश में संतोष था कि संक्रमण नियंत्रण में है और उम्मीद थी कि संक्रमण के सफल प्रबन्धन का खिताब भारत को मिलेगा लेकिन यहां की जनता की ‘‘जल्दी’’ ने सरकार की ‘‘जल्दी’’ पर पानी फेर दिया। आज भारत संक्रमण के मामले में तीसरे नम्बर पर है और आशंका है कि जल्द ही कहीं पहले पायदान पर न पहुंच जाए। जब देश में कोरोना वायरस संक्रमण बढ़ रहा था तभी आइसीएमआर का एक सर्कुलर (2 जुलाई 2020) आया जिसमें कहा गया था कि भारत बायोटेक ‘‘कोवैक्सीन’’ नामक टीका 15 अगस्त 2020 तक तैयार कर लेगा। बाद में छीछालेदार हुई तो सर्कुलर पर स्पष्टीकरण जारी किया गया। कहा गया कि ‘‘सरकारी फाइलों में प्रक्रिया तेज करने को कहा गया था न कि हड़बड़ी करने को।’’ उधर, भारत सरकार के साइन्स कम्युनिकेशन ट्रेनिंग विभाग के प्रमुख डॉक्टर टी. वी. वैंकटेश्वरन ने भारतीय विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की पत्रिका विज्ञान प्रसार में लिखे अपने लेख में जिक्र किया था कि कोरोना की वैक्सीन 2021 के पहले नहीं आ सकती, लेकिन बाद में वेबसाइट से यह भी लाइन हटा दी गई।
सवाल उठ रहे हैं कि कोरोना के वैक्सीन को लेकर सरकार इतनी ‘‘जल्दी’’ और ‘‘हड़बड़ी’’ में क्यों है? सवाल तो यह भी है कि क्या पहले से तारीख की घोषणा करके वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया सही तरीके से पूरी की जा सकती है? वैसे दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया भी कह चुके हैं कि 15 अगस्त तक कोरोना वायरस संक्रमण की वैक्सीन का ट्रायल अव्यावहारिक लगता है। यहां यह जानना चाहिए कि दिल्ली के एम्स में भी उक्त वैक्सीन का ट्रायल होना है। भारत में दवा बनाने वाली एक महत्त्वपूर्ण कम्पनी बायोकान इण्डिया की चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ ने अपने ट्विटर पर लिखा है कि, ‘‘कोविड-19 वैक्सीन के लिए फेज एक से तीन तक के ट्रायल 6 महीने में पूरा कर पाना लगभग असम्भव है।’’ ऐसे ही विचार ‘‘भारत बायोटेक’’ कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर सुचित्रा एला के भी हैं। उनके अनुसार भी फिलहाल कोविड-19 वैक्सीन को आने में अभी और वक्त लगेगा। सुश्री एला कहती हैं वैक्सीन के मामले में जल्दबाजी अच्छी नहीं।
जल्दी में तो पतंजलि के रामदेव और बालकृष्ण भी थे। इतनी जल्दी में कि उननें अपनी पुरानी परम्परा तोड़कर दवा का नाम ‘‘कोरोनिल’’ रख लिया। इसके पहले रामदेव भारतीय परम्पा और संस्कृत, वेद से प्रभावित या सम्बन्धित नाम ही रखते थे। बालकृष्ण के दावे के अनुसार मेरठ के एक अस्पताल में उनकी दवा कोरोनिल का परीक्षण हुआ और सात दिनों में शत फीसद सफल परिणाम आ गया। रिजल्ट से रामदेव भी गदगद और फिर तो जल्दी जल्दी में प्रेस कान्फ्रेंस और दवा की अखिल भारतीय बिक्री की तैयारी हो गई। वो तो भारत सरकार और उत्तराखण्ड सरकार के आयुष विभाग ने ‘‘जल्दी’’ पर ग्रहण लगा दिया। रामदेव को क्लीनिकल ट्रायल और सीटीआरआइ की लम्बी प्रक्रिया का अन्दाजा ही नहीं था। जो हुआ सब जल्दी में हुआ। जब काफी छिछालेदार हो गयी तब रामदेव जी को समझ में आया कि जल्दी वाला मामला ठीक नहीं है। फिर उन्होंने अपने दावे और बात से पलटी मार ली।
अब आइये थोड़ी बात इस पर कर लेते हैं कि कोरोना वायरस के मामले में इतनी जल्दबाजी ठीक क्यों नहीं है? दरअसल, दुनिया में कोरोना वायरस संक्रमण के बाद कई देश की सरकारों के साथ-साथ उसे बनाने वाली कम्पनियों को वैक्सीन की जल्दी मची। मामला अरबों रुपये मुनाफे का जो है। तीन प्रकार के वैक्सीन पर काम शुरू हुआ। लाइव वैक्सीन, इनएक्टिवेटेड वैक्सीन तथा डीएनए या आरएनए (जीन बेस्ट वैक्सीन)। लाइव वैक्सीन में बीमारी वाले वायरस से मिलते-जुलते जेनेटिक कोड और उसी तरह की सतह वाले प्रोटीन जैसे टीके बनाए जाते हैं। जैसे स्माल पाक्स की वैक्सीन। इसे वेक्टर वैक्सीन भी कहते हैं। इनएक्टिवेटेड वैक्सीन में प्रायः मृत विषाणु को ही तैयार करते हैं। यह शरीर में जाकर बीमारी के खिलाफ शरीर को एन्टीबॉडी बनाने में मदद करते हैं। ऐसे वैक्सीन हैं – एन्फ्लूएन्जा, पोलियो, हिपेटाइटिस बी आदि की वैक्सीन। तीसरा है जीन बेस्ड वैक्सीन जो वायरस की जेनेटिक संरचना पर आधारित होती है। यह शरीर में साइड इफेक्ट नहीं छोड़ती और इसका उत्पादन तेजी से किया जा सकता है। इस प्रकार बड़े पैमाने पर कोविड-19 वैक्सीन पर तेजी से काम चल रहा है। मोटिप्सियन यूनियन ने वैक्सीन को ज्यादा मात्रा में उत्पादन के लिए डोनर्स से 7.4 अरब यूरो जमा कर लिया है। पूरी दुनिया में सभी जल्दी से जल्दी वैक्सीन बना लेना चाहते हैं।
कोरोना वायरस के बचाव की वैक्सीन की जल्दी में एक बुरी खबर यह भी है कि ‘‘प्रभावशाली वैक्सीन’’ शायद न भी बन पाए? लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज में ग्लोबल हेल्थ के प्रोफेसर डॉ. डेविड नाबारो कहते हैं कि कोरोना वायरस की जटिलता के मद्देनजर शायद हम इतनी जल्दी वैक्सीन बना भी न पाएँ? खैर वैक्सीन बन रही है तो बनने दीजिए लेकिन तब तक आपके पास और भी कई विकल्प हैं।
जन स्वास्थ्य में सबसे कारगर फार्मूला है – ‘‘बचाव ही उपचार है।’’ तब तक आप कोरोना वायरस से बचिए और इसके प्रसार को रोकने में मदद कीजिए। बहुत साधारण उपाय है। मुंह ढँक कर रखिए जब बाहर निकलिए, हाथ से छूने से बचें और हाथ साबुन से धोते रहें, भीड़ में लोगों से दूरी बना कर रहें। कोरोना वायरस से सावधान रहें मगर डरें नहीं। डर से वायरस की तीव्रता और इसका प्रकोप ज्यादा घातक हो जाता है। शरीर की जीवनी शक्ति बढ़ाने के लिए नियमित व्यायाम करें। पौष्टिक एवं ताजा भोजन खासकर प्राकृतिक भोजन करें। नियमित एवं पर्याप्त नींद लें। प्रसन्न रहें, तनावमुक्त रहें।
वैकल्पिक चिकित्सा कही जाने वाली होमियोपैथी में भी कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव एवं उपचार की कारगर दवा है। मैं अपने स्तर पर ऐसे 30,000 से ज्यादा संवेदनशील लोगों को होमियोपैथी दवा एवं एहतियात के बदौलत कोरोना संक्रमण से बचा चुका हूँ। लगभग 250 कोरोना पॉजिटिव मरीजों का सफल इलाज कर चुका हूँ। परिणाम अच्छे हैं। मेरे अनुभव में महज हजार, डेढ़ हजार की राशि में गम्भीर से गम्भीर कोरोना रोगियों को भी लाभ मिला है। दिल्ली सरकार से मैंने मेरे और मेरे जैसे दावों की वैज्ञानिक जांच के लिए आग्रह किया है। और हाँ, यहां इतना वक्त भी नहीं लगा। सब जल्दी ही ठीक हो रहे हैं। कम से कम 6 दिन अधिकतम 10 दिनों में कोरोना पॉजिटिव, निगेटिव हो रहे हैं।
आप भी जल्दी में न रहें लेकिन कम समय, कम खर्च और कम परेशानी में होमियोपैथी आपकी मदद कर सकती है। बस शर्त यह कि आपके होमियोपैथिक चिकित्सक ज्ञानवान, शोधवृत्ति और धीरज वाले हों।
लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं।