जनपथ पर जल्द ही प्रमोद रंजन का एक स्तम्भ शुरू हो रहा है जिसका नाम है ”संक्रमण काल”। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, कोरोना संक्रमण का यह दौर हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक जीवन और मानस के संक्रमण का भी दौर है। दोनों के रिश्ते को खंगालने की कोई गंभीर कोशिश हिन्दी में अब तक कम ही दिखती है। इस दिशा में कहें तो यह स्तम्भ एक तलाश है, एक जिरह है, एक अन्वेषण भी है।
हिंदी में अपने तरह के इस अनूठे कॉलम में यह बात देखने की रहेगी कि भविष्य की दुनिया किन तकनीकी और आर्थिक प्रक्रियाओं के बीच निर्मित हो रही है और किस प्रकार का एक नया सामाजिक, राजनीतिक (और साहित्यिक-सांस्कृतिक भी) परिदृश्य इस बीच आकार ले रहा है।
प्रमोद रंजन इससे पहले भी इस विषय पर जनपथ पर लिखते रहे हैं और उनके अनुवाद किए कई लेख यहाँ प्रकाशित हुए हैं। फारवर्ड प्रेस, दिल्ली के प्रबंध संपादक रहे प्रमोद रंजन असम विश्वविद्यालय के रवीन्द्रनाथ टैगोर स्कूल ऑफ़ लैंग्वेज एंड कल्चरल स्टडीज़ में सहायक-प्रोफ़ेसर हैं।
प्रमोद रंजन के यहाँ प्रकाशित लेखों को नीचे दिए लिंक्स पर पढ़ा जा सकता है।