अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट में तब के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यम की पीठ ने मशहूर पर्यावरणविद एम. के. रणजीतसिंह द्वारा दो साल पहले दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए एक टिप्पणी की थी, कि पर्यावरण के मामले में न्याय तभी मिल पाएगा जब हम मानव-केंद्रित ‘एंथ्रोपोसेंट्रिज्म’ के सिद्धांत से हटकर प्रकृति-केंद्रित ‘ईकोसेंट्रिज्म’ की तरफ जाएं, जिसमें इंसान प्रकृति का हिस्सा है और मानवेतर प्राणियों की अंतर्भूत अहमियत है। दूसरे शब्दों में, मानव हित को अपने-आप तरजीह नहीं मिल जाती और इंसानों की अन्य प्राणियों के प्रति मानवहित से स्वतंत्र जिम्मेदारी है।
अब एक आंकड़ा है उस पर निगाह डालिए। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी के आंकड़ों के हिसाब से 2018 में सड़क और रेल दुर्घटनाओं की चपेट में आकर 161 वन्य जीव मारे गए। पिछले करीब तीस साल में दो सौ से अधिक हाथियों की जान रेल से टकरा कर हुई है और इनमें से 65 तो पिछले तीन साल में ही जान से गए। बिजली के तारों की चपेट में आकर भारत में सारसों की कुल आबादी का एक फीसद हिस्सा खत्म हो गया। एक और आंकड़ा है- रेलवे की पैंट्री कारों से फेंकी गयी जूठन की वजह से पिछले पांच साल में सौ से अधिक जंगली जानवर मारे गए जिनमें पांच बाघ और सात तेंदुए शामिल हैं।
आपने सोन चिरैया का नाम सुना ही होगा। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के नाम से विज्ञानियों में मशहूर यह चिड़िया भारी होती है और 2011 में इनकी संख्या करीब 250 थी जो 2018 में घटकर महज 150 रह गयी है। इंडिया टुडे में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इनकी मृत्यु में 15 फीसद हिस्सा इनके बिजली के तारों में उलझ जाने से होता है।
जिधर इनका इलाका है, राजस्थान के उस इलाके में सौर ऊर्जा के बड़े-बड़े पैनल लगाये जा रहे हैं। इसने उनके अंडे देने और सेने की जगहें छीन ली हैं। सोन चिरैया के जिन इलाको को चिह्नित किया गया है उनमें 94 गीगाबाइट की सौर ऊर्जा परियोजनाओं का निवेश हो रहा है और यह परियोजनाएं चल रही हैं। भारत का लक्ष्य 2030 तक 450 गीगावॉट की अक्षय ऊर्जा हासिल करना है और उसमें इन सौर ऊर्जा परियोजनाओं की बड़ी हिस्सेदारी है।
अब वक्त आ गया है कि आपको तय करना होगा कि आपके घर में जलती बिजली चाहिए या सोन चिरैया! शीर्ष अदालत ने सोन चिरैया के पक्ष में खड़ा होना ठीक समझा है और राजस्थान के जैसलमेर की सौर ऊर्जा परियोजनाओं को अपने बिजली के तार जमीन के नीचे बिछाने के आदेश दिए हैं। विभिन्न अखबारों में छपी खबरों के हवाले से कहा जाए तो इससे इन परियोजनाओं पर 22,000 करोड़ रुपए की लागत बढ़ेगी और प्रति यूनिट बिजली की लागत भी डेढ़ रुपया ज्यादा हो जाएगी।
बहरहाल, पिछले साल 2019 में जुलाई में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने संसद में कहा था, “एक गरीब देश को यह तय करना ही होगा कि वह विकास की जरूरतों को अनदेखा करके कब तक पर्यावरण की रक्षा पर सार्वजनिक धन खर्च कर सकता है.”
तो सीरीमान जी, यह है ऑफिशियल लाइन! अब जहां तक वन्य जीवों की बात है, अपनी आज़ादी के लिए वे कौन सा जुलूस निकाल लेंगे?