बुंदेलखंड का पवित्र शहर है चित्रकूट, जिसके नाम के साथ बहुत सारे ऋषि-मुनियों और खासतौर पर भगवान राम और सीता का नाम जुड़ा है. रामायण की कथा का जिक्र आये तो चित्रकूट और मंदाकिनी नदी का जिक्र न आये, ऐसा हो नहीं सकता. मंदाकिनी के तट पर ही तुलसीदास ने मानस लिखा, भगवान राम ने अपने वनवास का लंबा वक्त यहां गुजारा और मान्यता यह भी है कि ऋषि अत्रि को जब प्यास लगी तो उनकी पत्नी सती अनुसुइया ने यहां मंदाकिनी नदी को प्रकट किया.
यह पुराणों की बातें हैं. मौजूदा स्थिति यह है कि मंदाकिनी का अस्तित्व खतरे में है. नदी ही नहीं रहेगी तो चित्रकूट के घाट पर गोसाईं जी की यादों का क्या होगा. भगवान राम ने इंद्रपुत्र जयंत को जिस नदी तट पर दंडित किया था, उस स्फटिक शिला का क्या होगा. सती अनुसुइया के नारी विमर्श का क्या होगा. और इससे भी ऊपर, सतना-चित्रकूट के बुंदेलखंड के पहाड़ी इलाकों को जीवन देने वाली नदी खत्म हो जाएगी तो यहां के लोगों का क्या होगा.
सचाई यह है कि मंदाकिनी के प्राकृतिक स्वरूप पर गहरा संकट मंडरा रहा है. इसकी वजह है नदी की पेटी में पत्थरों का तेजी से किया जा रहा उत्खनन.
मंदाकिनी नदी मध्य प्रदेश के सतना जिले के अनुसुइया से निकलती है और यह आगे बढ़ती हुई उत्तर प्रदेश के कर्वी से होती हुई राजापुर में जाकर यमुना नदी में मिल जाती है. देश की बाकी नदियों की तरह इस नदी को भी प्रदूषण से बचाने के लिए कई बार योजनाएं बनी हैं और बाकी नदी परियोजनाओं की तरह ही इसकी योजना का भी हश्र वही होता रहा.
मंदाकिनी लंबे समय से प्रदूषण का शिकार हो रही है और गाहे-बगाहे सफाई अभियान भी चलते रहते हैं. एक न्यूज एजेंसी की खबर के मुताबिक, “इन दिनों इस स्फटिक शिला से आरोग्यधाम के बीच के हिस्से में पत्थर निकालने का अभियान जोरों पर चल रहा है.”
जानकार मानते हैं कि पत्थर ही किसी नदी की प्राकृतिक समृद्धि का बड़ा कारण होते हैं क्योंकि इन पत्थरों से जब पानी टकराता है तो पानी की ऑक्सीजन क्षमता बढ़ती है और पानी का शुद्धिकरण होता जाता है. वहीं दूसरी ओर पानी के टकराने से पत्थर धीरे-धीरे रेत में बदल जाता है और रेत नदी के किनारे आकर पानी के शुद्धिकरण में बड़ी मदद करती है.
स्थानीय जागरूक नागरिक अजय कुमार दुबे ने फेसबुक पर लिखा है, “चित्रकूट में दीनदयाल रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा पवित्र मंदाकिनी नदी के पत्थरों से संस्थान की बाउंड्री वाल बनायी जा रही है, यह जलीय जीवन और पर्यावरण के लिए घातक है.”
मसला सिर्फ इतना ही नहीं है कि नदी के पेटी में खनन हो रहा है. मंदाकिनी मध्य प्रदेश की उन 22 नदियों में शामिल है जिसके अस्तित्व को लेकर केंद्र सरकार ने चिंता जतायी है और यह प्रदेश की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों की श्रेणी में भी है.
इंडिया टुडे में मैंने एक रिपोर्ट देश में सदानीरा नदियों के मौसमी नदियों में तब्दील होते जाने पर की थी. मंदाकिनी भी उन नदियों की फेहरिस्त में शामिल है जिनमें साल भर में बहने वाले जल की मात्रा (वॉल्युम) में कमी दर्ज की जा रही है (यह डाटा केंद्रीय जल आयोग नामालूम वजहों से साझा नहीं करता है).
Physico_chemical_Characteristics_of_Surfमंदाकिनी की प्राकृतिक जलधारा टूट चुकी है. नदी का सारा बैंक-बैलेंस तो उसके जलागम क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) से आता है, जिससे बारिश का पानी बहकर नदी में आता है. नदी बहने के साथ भूजल को भी रीचार्ज करती है, लेकिन मंदाकिनी के कैचमेंट एरिया में अवैध कब्जे हैं, ढेर सारे आश्रमों और होटलों का निर्माण हो चुका है और लगातार पहाड़ों का खनन भी हो रहा है.
इस मामले में मध्य प्रदेश वाली मंदाकिनी का भाग्य उत्तराखंड वाली मंदाकिनी से जुदा नहीं है. उत्तरकाशी में ऐसे ही हिमालयी मंदाकिनी की पेटी में लोगों ने घर-द्वार, पार्क बना लिए थे. जब मंदाकिनी ने रौद्र रूप दिखाया तो जान-माल की भारी क्षति हुई थी.
वैसे, सती अनुसुइया ने अपने पति की प्यास बुझाने के लिए जिस नदी को जन्म दिया था, उस मंदाकिनी का पानी तो अब लोगों के पीने के लायक नहीं बचा है. 2018 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में बुंदेलखंड की मंदाकिनी समेत चार नदियों का पानी जहरीला बताया गया है. इन नदियों का पानी पीने से इंसानों को कई बीमारियां घेर सकती हैं. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2018 में पाया कि मंदाकिनी के पानी में टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस) की मात्रा 700 से 900 पॉइंट प्रति लीटर और टोटल हार्डनेस (टीएच) 150 मिलीग्राम प्रति लीटर से ऊपर पहुंच गया है.
इतने अधिक टीडीएस का पानी पीने से पथरी, किडनी और पेट संबंधी कई बीमारियां इंसानों को अपनी चपेट में ले सकती हैं. वैसे, 300 पॉइंट से ऊपर टीडीएस की मात्रा बेहद नुकसानदेह होती है. मंदाकिनी में टोटल हार्डनेस (टीएच) की मात्रा भी बढ़ गयी है. मंदाकिनी में 192.6 मिलीग्राम प्रति लीटर टीएच पाया गया है और जानकार बताते हैं कि आरओ लगाकर शुद्ध किए गये पानी में भी 100 से 200 टीडीएस रह जाता है.
बहरहाल, नदियों को जिस तरह उपेक्षा का दंश झेलना पड़ रहा है उसका असर यहां के लोगों को दिखेगा. कुछ साल के बाद यह जरूर महसूस होगा कि जिस नदी के किनारे लोकजीवन के पूज्य भगवान राम ने वनवास का बड़ा हिस्सा गुजारा, उसी मंदाकिनी को हमने अपने जीवन से काट दिया है.