पंचतत्व: साल के दस महीने समंदर तक पहुँचने से महरूम हो गयी है सिंधु


सिंधु नदी बेशक हमारी सभ्यता की सबसे अहम नदियों में से एक हो और वेदों में इसकी स्तुति की गयी हो, पर इसका अंत तेजी से नजदीक आ रहा है. सिंधु का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में है, लेकिन 50 साल पहले सिंधु जितनी मात्रा में पाकिस्तान को पानी देती थी वह मात्रा आज की तारीख में कम हो गयी है।

सिंधु नदी दुनिया की उन आठ नदियों में शामिल है जिनके अस्तित्व पर गहरा खतरा मंडरा रहा है। इस नदी पर 30 करोड़ लोगों का जीवन निर्भर है और जाहिर नदी के खतरे में आने से इन 30 करोड़ लोगों की आजीविका के साथ गहरा खाद्य संकट भी पैदा होगा।

विशेषज्ञ मोटे तौर पर यह मानते रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के साथ हिमालयी नदियों में पानी की मात्रा बढ़ेगी और सिंधु-गंगा के मैदान में बाढ़ का खतरा उत्‍पन्‍न होगा, लेकिन नये शोध कुछ अलग ही नतीजों की ओर ले जा रहे हैं।

पाकिस्तान के वॉटर ऐंड पॉवर डिवेलपमेंट अथॉरिटी, लाहौर में जलविज्ञानी डेनियल हाशमी और भारत में द एनर्जी ऐंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) के वैज्ञानिक श्रेष्ठ तयाल ने इस संदर्भ में सिंधु के पानी की मात्रा (वॉल्युम) में आ रही कमी पर अपनी रपटें दी हैं।

सिंधु नदी पाकिस्तान में जाकर समंदर में गिरने से पहले भारत, अफगानिस्तान और चीन से होकर बहती है। इस इलाके में, खासतौर पर पाकिस्तान में सिंधु नदी के पानी पर इतनी बडी आबादी के लिए पेयजल और खेतों की सिंचाई का दबाव इतना है कि साल भर में 10 महीने यह नदी समंदर तक नहीं पहुंच पाती है।

इंटरनेशनल वॉटर मैनेजमेंट इंस्टि‍ट्यूट, लाहौर का अनुमान है कि 2025 तक पाकिस्तान के सैंधव क्षेत्र में पानी की मांग में 30 फीसद का इजाफा होने वाला है।

Line graph shows the Indus River water flow rate from Kotri barrage during the period from 1937-38 to 2007-08. Average flow trend lines shows the average difference of decrease after or before mega projects. Courtesy Researchgate

पाकिस्तान में सिंधु के पानी का आयतन मापने पर हुए एक शोध के मुताबिक (सरकारी आंकड़ा सार्वजनिक स्पेस में उपलब्ध नहीं) के मुताबिक, सिंधु नदी के पानी में 1962 से 2014 के बीच 5 फीसद की कमी आयी है। शायद पांच दशकों में पांच फीसद कमी कोई बड़ी बात न लगे, लेकिन अगर यह पैटर्न बना रहा तो क्या होगा!

अब तक यह माना जाता था कि गंगा और सिंधु जैसी नदियों में पानी की आपूर्ति ग्लेशियरों के पिघलने से होती है, लेकिन अब यह शोध हुआ है कि इन नदियों में पानी का सिर्फ 15 फीसद (मोटे तौर पर) ग्लेशियरों से आता है, बाकी का पानी बरसात का होता है जो जलभरों (एक्विफर्स) में जमा होता है।

एक गलत अनुमान वैज्ञानिकों ने यह भी लगाया था कि 2035 तक हिमालय के अधिकांश ग्लेशियर पिघलकर गायब हो जाएंगे और तदनुसार यह माना गया कि अल्पकालिक या मध्यकालिक रूप से इस इलाके में पानी का कोई बड़ा संकट दरपेश नहीं होगा। इसीलिए यह चिंता का एक विषय है कि वैज्ञानिकों के कई सिद्धांतों में अब बदलाव की जरूरत आन पड़ी है।

सिंधु के मैदान (गंगा की बात फिर कभी) में पाकिस्तान का पेट भरने के लिए बड़े पैमाने पर खेती होती है और उसमें नहरों के साथ ट्यूबवेल भी लगाये गये हैं। ट्यूबवेल लगातार इन एक्विफर्स को खाली करते जा रहे हैं और नदियों में पानी की बड़ी मात्रा बरसात के समय इन जलभरों का पेट भरने में खर्च हो रही है।

इसके अलावा, सिंधु नदी का पानी जिस बड़े पैमाने पर पीने और सिंचाई के लिए खर्च होता है और इसकी धारी समंदर तक नहीं पहुंच पा रही है उससे नदी द्वारा ढोये जा रहे मलबे को भी समंदर से पहले रुक जाना पड़ रहा है। इससे भी नदी का आयतन घट रहा है। यह गाद आखिरकार कुदरती जलभंडारों पर असर डालेगी।

एक और अहम बात- सैंधव इलाके में जलभरों का सिकुड़ना जंगल की कमी की वजह से है। पाकिस्तान के सिंधु नदी बेसिन में जंगल पहले भी कम थे और अब तो नाममात्र के हैं। जाहिर है, भविष्य में सिंधु का क्षेत्र बुरे जलसंकट से दो-चार होने वाला है।

अगर पाकिस्तान अपने बांधों और जलाशयों में बुरे वक्त के लिए बरसात का पानी इकट्ठा करने की सोचे भी तो अभी उसके लिए मुमकिन नहीं होगा। पाकिस्तान के जलाशयों में सिर्फ 30 दिन तक का पानी भंडारण करने की क्षमता है जिसकी बनिस्बत भारत में यह क्षमता 150 दिन और ऑस्ट्रेलिया में 800 दिन की है।

सिंधु को बचाना है तो इसके आसपास के जलभरों को सूखने से रोकना होगा। सिंधु का भविष्य इसके वर्तमान में छिपा है।



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